Sunday, December 21, 2008

फिर वही शुरुआत

मैं फिर वही शुरुआत चाहता हूँ,
वो कॉफी, वो नोवेल और वो तुम्हारी सारी बात चाहता हूँ।

इतनी दूर आ गया हूँ की दीखता नहीं है कोई,
पर अभी भी अपने हाथों में तेरा हाथ चाहता हूँ।

रौशनी जब तक रही मैं चलता रहा,
बस अब एक न ख़त्म होने वाली रात चाहता हूँ।

तमाम उम्र कहाँ कौन साथ देता है,
मुझे मालूम है, पर मैं तेरा साथ चाहता हूँ।

आज बहुत दिनों बाद लेखनी उठाई है मैंने,
आज आंखों मैं तुम्हारा फिर से कोई ख्वाब चाहता हूँ।

9 comments:

Samrat Som said...

Wow beta...Mazaa aagaya bahut dino baat....likh raha hain...lekin haath main wohi cycle aur bag waala kala chupa hua hain...

Virag S said...

mast hai bjai(khus to bahut hoge tum haan )

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

bahut achchi rachna, jaise seene mein koi dard chhipaa baitha hai

meri shubhkaamnayein
Jyotsna

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@ सम्राट

हां दोस्त! जो मज़ा उस साइकिल और थैले मैं है वो इस ज़िन्दगी में नहीं। जैसे वो मज़ा जो हरी हरी घास पे सोने में है, वो बेड पे सोने में नहीं। धन्यवाद। मैं जनता हूँ तुम हमेशा रहोगे मेरी रचनाओं को एक एक्सपर्ट कमेन्ट देने के लिए।

@ विराग

तुमसे दोस्ती इन कवितायों ने ही करवाई थी और बाद में करीब भी इन्होने ने ही लाया। धन्यवाद मित्र।

@ ज्योत्सना जी

धन्यवाद, आपकी कवितायें पढीं। मैंने आपके सामने तो कुछ नहीं हूँ बस लिख लेता हूँ क्यूंकि अच्छा लगता है। आप ऐसे ही अपने विचार देती रहेंगी, तो आगे बढ़ता रहूँगा। सहस्त्र धन्यवाद ।

Anuj said...

nice one...dekher acha lag ki u r not confined to one tyoe of writing n giving varities....
simply fabulous bt perplexed by 2 lines

इतनी दूर आ गया हूँ की दीखता नहीं है कोई,
पर अभी भी अपने हाथों में तेरा हाथ चाहता हूँ।
can u explain ur messg wid these lines??

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@ Anuj

In poori lines ko ager aap is tarah se soncho ki, aap bhautiktawadi ho gaye wo aur na aisi jagah aa gaye ho jahan aapke sab kuch hai, bas log nahin tab aapko uski yaad aaati hai...kisi apne ki, ismein maine unhi sab baaton ko us jagah se yaad karne ki koshish ki hai.. Hope ki main vichaar sahi se samjha saka hoon :)

CapturedSunlight said...

lovely!

Anonymous said...

"badhai ho badhai" ;)))

अनूप शुक्ल said...

बहुत खूब!

यूं तो कोई उम्र भर साथ नहीं देता मगर फ़िर भी
हुश्न-ओ-इश्क यूं तो सब धोखा है मगर फ़िर भी।