वो दिन
जब मैं खुश था।
तब रीबोक् की टी शर्ट
नहीं पहनता था,
एक थान से कपड़े कटते थे,
और पूरे घर के कपड़े बनते थे।
पर मैं खुश था।
सिर्फ़ एक असेम्ब्लेड
ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था,
और उस पर भी सिर्फ़ दूरदर्शन
आता था।
पर मैं खुश था।
दिन भर की न्यूज़ रात
साधे आठ बजे आती थी,
और तब बातें करने से ,
पापा से डाट पड़ जाती थी
पर मैं खुश था।
सुबह सुबह माँ चाय
के साथ उठाती थी,
और हर एक घंटे पर जबरदस्ती
कुछ न कुछ खिलाती थी,
मैं लड़ता था उससे,
पर मैं खुश था।
हर सीज़न में,
नई सब्जियां आतीं थीं,
जो पापा बड़े प्यार से लाते थे और
खुश होकर अपनी बारगेनिंग स्किल्स
के बारे में बताते थे,
मैं बोर होता था :)
पर मैं खुश था।
बारिश में पकोड़ीयां बनती थीं,
सर्दी मैं मक्के की रोटी और
गर्मी में रूहाफ्ज़ा, और
बिजली हमेशा कम ही रहती थी,
पर मैं खुश था।
क्रिकेट मैचेज तो त्यौहार होते थे,
और विकेट गिरने पर,
मैं और पापा एक साथ चिल्लाते थे,
माँ को कुछ भी समझ में
नहीं आता था,
पर मैं खुश था।
माँ रात में बालों में,
सरसों का तेल लगाती थी, और
न जाने कब मेरी आँख लग जाती थी,
तब आंखों में इतने बड़े सपने
नहीं आते थे,
तब दस बजे सब सो जाते थे,
सुबह कुछ जल्दी ही हो जाती थी,
मैं हमेशा देर से ही उठता था, डाट
पड़ती थी, लेकचर मिलते थे,
पर मैं खुश था।
बहुत खुश था।।
7 comments:
शानदार
dhanywaad..
Sahi likha tune....Khusi kya hoti hain yeh abhi bhul gaya hoon...Thanks for reminding it again....
nice feelings but i cud never undstan y do ppl think that earlier they were happier???...
ab kya hua..
yaadon wali ek bhavbheeni post. khoobsoorat hai.
समय भी सीनियारिटी के हिसाब से खुशियां बांटता है। कुछ दिन बाद आज के दिनों से भी खुशियां मिलने लगेंगी!
सुन्दर पोस्ट! पुराने दिन के कुछ किस्से
यहां देखो!
1.तितली के दिन,फूलों के दिन
गुड़ियों के दिन,झूलों के दिन
उम्र पा गये,प्रौढ़ हो गये
आटे सनी हथेली में।
बच्चों के कोलाहल में
जाने कैसे खोये,छूटे
चिट्ठी के दिन,भूलों के दिन।
२.नंगे पांव सघन अमराई
बूँदा-बांदी वाले दिन
रिबन लगाने,उड़ने-फिरने
झिलमिल सपनों वाले दिन।
अब बारिश में छत पर
भीगा-भागी जैसे कथा हुई
पाहुन बन बैठे पोखर में
पाँव भिगोने वाले दिन।
सुमन सरीन
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