उनको याद करता हूँ
तो मन कहता है,
की जाकर मिल उनसे
कह दे, कि जो किया तुने
वो भावावेश में किया,
जो कहा तुने
वो भावावेश में कहा,
मान ले की हर गलती तेरी थी,
क्यूंकि...
अगर वो धरती बनी रही,
और तू अपने आप को
आसमा समझता रहा,
तो मिलोगे तो तुम दोनों
अवश्य ही,
पर कहीं....
दूर क्षितिज में........ ।
5 comments:
लगता है कि क्षितिज के पार ही तलाश पूरी होगी |
उत्तम |
हा हा, सही कहा आपने....
पढने के लिए धन्यवाद :)
लेकिन क्षितिज तो मात्र एक छलावा है...मिलना तो कुछ ऐसे होगा की या तो तुम बादल बन उठ जाओ...या आसमान से बारिश हो...और बूँदें धरती के अंतर्मन को भिगो दें. शब्द खूबसूरत हैं, भाव मोहक. ब्लॉग की तो कायापलट हो गई. बधाई हो.
Pankaj akada hua insaan jab jhukta hai to fir tootta hai dambh vyktitv me akdahat ke siva koi yogdan nahee karata . paristhitiyo ke sath adjust karna aur apane siddhant par atal rahnasath sath chalna chahiye .
सुन्दर! डा.पूजा की सलाह काबिले गौर है भाई!
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