Sunday, December 21, 2008

वो

आज बहुत दिनों के बाद फिर देखा उसे,
कहीं कुछ भी तो नहीं बदला........

वही बंधे हुए केस,
वही बार बार उठती गिरती पलकें,
वही खिलखिलाकर हँसना,
वही ह्रदय को भेदती निगाहें,
वही प्रेम से रक्त वर्ण होते कपोल,
वही अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानने का अहम,
वही तेवर
वही चंद्र सा शीतल चेहरा
वही मेरे नेत्रों को शीतलता देता उसका तन
वही सुन्दरता के अंहकार से भरा हुआ
गंगोत्री सद्रश स्वच्छ निर्मल मन
कहीं कुछ भी तो नहीं बदला................

वही उपर उठते रहने की इच्छा
वही बाधाओं को हटाने का साहस
वही निर्भीकता
वही अपराजेय बने रहने की कामना
वही कुछ कर दिखने का संकल्प
वही उसकी नज़रों की तलाश
वही किसी से मिलने की आस
वही मुझे चिढाती उसकी हँसी
वही बताना मुझे अपनी हर खुशी
कहीं कुछ भी तो नहीं बदला.......

हाँ गर बदलें हैं तो उसके कर्तव्य
बढ़ी हैं तो उसकी उम्मीदें
बढ़ा है तो मेरा विश्वास की
वो सक्षम है
इन उम्मीदों और कर्तव्यों को पूर्ण करने में ....... ।

1 comment:

अनूप शुक्ल said...

गजब का कोलाजी व्यक्तित्व है। गजब का विश्वास है।