आज जब मैंने उठाये अपने सारे ख़त
जलाने के लिए
तो वे बोले मुझसे
मत जलाओ हमें, मत सताओ हमें
सताओ उस बेवफा को जाकर
क्या मिलेगा तुम्हे हमको जलाकर।
मैंने कहा देखता हूँ तुम्हे
तो याद आती है वो जुदाई
जब होगे ही नहीं तुम तो
कैसे याद आएगी उसकी बेवफाई
अचानक चिल्लाया उसका पहला ख़त
"गर जलाकर हमें तुम भूल जाओगे उसे तो
तो बेशक जला दो हमें
मगर एक वादा करो ,
हमें जलाने के बाद
हमारी राख में
तुम ढूंढोगे नहीं
उसके हाथों से लिखा वो
तुम्हारा नाम,
या उसका बेवफाई भरा वो
आखिरी पैगाम........" ।
2 comments:
ख़त की तासीर ही ऐसी होती है कि याद रहती है..अच्छा लिखा है आपने
वाह खत की बात सु्नी गयी!
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