तुम्हारे प्यार से भेजे हुए पहले फूल जो अब सूख गये हैं, उनकी भीनी भीनी खुश्बू में डूबकर ये सोचती हूँ की क्या करूँ इनका..?
हमारे नये घर की बैठक में सज़ा दूँ..
या अपनी प्याज़ी रंग वाली उस साड़ी की किसी तह में दबा दूँ जो तुम्हे पसंद आई थी
या फिर इनको घोल कर इत्र बना लूँ, अपने दुपट्टे में लगा लूँ!
या पीसकर उबटन बना लूँ और गालों पे लगा लूँ!
या फिर तुम जब अबकी बार आओगे तो तुम्हारे लिए सुबह की पहली, फ्लोरल चाय बना दूँ, थोड़ी कम चीनी और ज़्यादा पत्ती वाली..!!
या इनको ढाल दूँ चन्द महकती मोमबत्तियों में, और करूँ इंतज़ार तुम्हारे ऑफिस से वापस आने का, अपने प्यारे से घर में साथ-साथ कंडिल लाइट डिनर खाने का,
या कि बगीचे की गीली मिट्टी वाले उस किनारे पर जहाँ धूप हल्की-हल्की आती है, इनको दबा दूँ और करूँ इंतज़ार नयी कोपलें फूटने का और उस पौधे में खिलने वाले पहले फूल का भी..जिसे चढ़ाएँगे उस पूजा में, जो हम सुबह उठकर साथ-साथ करेंगे, अपने नये घर में बनाए इक छोटे से मंदिर में..
और फिर सोचती हूँ की रखूं ऐसे ही इसे ज़िंदगी भर अपने पास, तुम्हारे प्यार की सौगात की तरह और महकने दूँ अपने कमरे और इस ज़िंदगी को इसी भीनी-भीनी खुश्बू से…..............................…ताउम्र !
--दीप्ति
“ये पोस्ट कुछ आइस-पाइस खेलती खुशियों के वास्ते, उस खुदा के वास्ते जो हमेशा ज़िंदगी में ’नहीं होकर भी रहा’ और इस ब्लॉग के वास्ते जिसे इसका को-राइटर मिल गया...”
--पंकज
23 comments:
काफी दिनों से ये कोना सूना-सूना सा था. अब जिंदगी के साथ हिस्सा ये भी गुलज़ार रहेगा आपके आने से दीप्ति !!!!
दोनों को बधाई !!!!
अब औकात पर आते हैं : ये चोरी की पोस्टें नहीं चलेंगी मालिक :) :) :)| पर अब कर ली तो कर ली | फटाफट इसका एक्सटेंशन लिखा जाए !!!!
ऐसा है गुरू कि ‘उनका’ ब्लॉग बनवाओ। पूजा ने अपने कुछ दोस्तों का ब्लॉग बनवाकर अच्छा काम किया कि नहीं ? दफ्तर के दो स्क्रिप्ट राइटरों को धकिया- मुकिया कर मैंने भी उनका ब्लॉग बनवाया। बिस्वजीत बैनर्जी और कपिल शर्मा। पहला अंग्रेजी में लिखता है और दूसरा हिंदी में। कपिल की मुकरियां पढ़ना, बढि़या लिखता है।
***
खैर.... सभापति संसद महोदय, आप भी हमारी मांगों पर मेज थपथपा कर समर्थेन करें और सभापति महोदय को राजी करें.
वाह...क्या बात है :) :)
हम आते हैं, मिलकर बधाई देंगे !! :)
हद ही हो गई.. ये सब का चोरी चपाटी है रे???
दीप्ति खुद का ब्लॉग बना कर खुद पोस्ट करे और तुम उस से इन्स्पायर हो कर 'ना हो कर भी बने रहो" तब बात है...
अब तो प्रेरणा भी मिल गई..खम लोगों के लिये नहीं तो दीप्ति के ऑनर में ही कुछ लिखो लडके...
Baaki Deepti is undoubtedly awesome... Bt i wud lyk to advice her ki aise tumhare dimaag kharaab na kare waise hi bhav badhe huye hain :P
दीप्ति की लिखी वो दो पंक्तियाँ भी बहुत पसंद आयी थीं...जहाँ उसका नाम लिखने में आप शरमा गए थे :)
ये ख्वाहिशों में लिपटे फूल…सुबह की ओस से निर्दोष और प्यारे लगे .
जय हो, सब आधा आधा बाँट लिया। लाखों शुभकामनायें, आप दोनों को, सदा ही भाव भरे रहें। एक उधार बाकी है, समय आने पर बताया जायेगा।
Dear Monali: पंकज के बिना अब सबकुछ बेमतलब सा लगता है हमें..लिखना भी और शायद अपना अलग ब्लॉग बनाना भी..जब से ये ज़िंदगी उनसे जुड़ी है, सबकुछ उनके साथ ही अच्छा लगता है.. :)
और पंकज, अभी देखा हमने की आपने पोस्ट के नीचे लिखा है कि इस ब्लॉग को उसका कोराइटर मिल गया..I am honoured..!! :)
इतना भी अच्छा नही लिखते हम..बस आपको पढ़कर ही सीखा है थोड़ा बहुत.. :) और आपको हमारी पर्मिशन है..आप ऐसी चोरी बार बार करना, अगर हमारा लिखा कुछ भी आपको 'हमारे ब्लॉग' पे डालने लायक लगे. :))
P.S. 'हमारा ब्लॉग' लिखना अच्छा लगा..हम फिर से अकेले मुस्कुरा रहे हैं.. :)
:)
ACHHI POST H.
mujhe to lagta hai 'jo nahi hokar bhi hota hai...uska vajood ...hamare 'hone' ke vajood se kahin jyda hota hai...bahut hi accha likha hai pankaj ji :)
Dearest Deepti... जानलेवा हो लडकी तुम वाकई... हम सब की बोलती बन्द.. चलो अब होकर भी ना होने पर कोई तो आता जाता रहेगा कुछ लिखने के लिए.. बस तुम पंकज जैसी आलसी ना हो जाना शादी के बाद.. ढेर सारा लिखती रहना.. :)
@दीप्ती - अकेले-अकेले कहाँ, साथ हम सब मुस्कुरा रहे हैं. :)
रिश्ता तो अब तय हुआ। लेकिन प्लान पंकज का साढ़े चार साल पहले का था जब उन्होंने लिखा था:
उसकी बिंदी के तो हिलने का
मैं इंतज़ार करता था, की कब वो
हल्का सा हिले और मैं बोलूँ
की "रुको! बिंदी ठीक करने दो"।
उसको याद भर करने से,
मुस्कराहट लबों पे अपने आप
आ जाती है,
इस सूखे फूल में वो मुझे दिखती है..........
लोग मुझसे पूछते हैं, की मैं क्यूँ
नहीं लिखता?,
मैं सिर्फ़ इतना कहता हूँ की
मेरी कविता ही नहीं है।।
अब जब सह-लेखिका तय हो गयी है ब्लॉग के लिये तब पंकज और विश्वास से कह सकते हैं - मेरी कविता नहीं (मैं तो बिंदी ठीक कर रहा था इस बीच दीप्ति ने लिख दी होगी)
तुम दोनों की हर ख्वाहिशें पूरी हों। खूब सारी मंगलकामनायें।
हमें तो पढने से मतलब है चाहे कोई लिखे.... पढ़ के अच्छा लगता है... हाँ अगर थोडा ज्यादा ज्यादा लिखा जाए और दोनों की तरफ से लिखा जाए तो क्या कहने.. :)
लाजवाब !!!
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बधाई हो आपद्वय लेखकों को :)
सबसे पहले तो हमारी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ स्वीकार करेँ। ऐसी भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।
behatreen...kuch man ki geeli si mitti mein nayi koplon se foot-te ye eksaas hai...zindagi bhar tum dono in ehsason ki ahmiyat samjhate raho...inmein doobe raho...yahi dua hai...
To kya Deepti tum itni jaldi Pankaj k rang me rang k ghor aalsi ho gayi ho ki is blog pe fir se ho kar bhi koi nahi .. m disappointed :(
लाजवाब !
हम्म, को-राइटर मिल गया, फिर भी पांच-सात महीनों में इस ब्लॉग को कुछ नहीं मिला.
अभी सब इश्क में डूबे है...
:)
डूबे रहिए... ब्लॉग वगैरह तो चलता रहेगा... Njoy the fullest... :)
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