Sunday, August 21, 2011

इति श्री रामलीला मैदान कथा…

दिन :- शनिवार, २० अगस्त, २०११

समय: शाम ७ बजे से ११ बजे तक

सीन १ -

वॉलंटीयर्स पूरियां, पानी बांटते हुए। जनता पूरी-पानी खा लेने के बाद पॉलीथीन्स को वहीं फ़ेंकती हुयी। वॉलंटीयर्स और कुछ भले लोग उन्हे वापस कूडेदानों में डालते हुये। मैं सोचता हूँ कि हमें इसी जनता के हाथ में जन-लोकपाल बिल देना है।

सीन २ -

स्टेज पर कोई कुछ भी बोलता हुआ, कोई आरक्षण पर तो कोई सेकुलरिज़्म पर। मुद्दे हाईजैक हो चुके हैं। अन्ना बेचारे चुपचाप लेटे हुए हैं। जनता हर थोडी-थोडी देर में ’वंदे मातरम’ के नारे लगाती हुयी। थोडी-थोडी देर पर देशभक्ति के गाने। आह, मुझे ’भीड’ से डर क्यूं लगता है मैं  उनपर विश्वास क्यों नहीं कर पाता।

सीन ३ -

एक बूढा आंदोलनकारी अपने तरीके से अलग-थलग कुछ मोमबत्तियां जलाये हुए अपनी दुनिया में खोया हुआ है। उसके ऊपर एक खायी पीयी घर की अमीर महिला झुककर ’से चीज़’ का पोज़ देती हुयी। बाकी दो हम - उम्र महिलायें तस्वीरें लेती हुयीं। पहली नज़र में मुझे लगा वो बूढे सज्जन इनके साथ हैं फ़िर अहसास हुआ कि ये तो 'OMG revolutionary. mumma look' वाली आंटिया हैं। कुछेक सभ्य और सेंसिटिव महिलायें लोगों के बैठने के लिये दरों को साफ़ करती हुयी, जोर शोर से देशभक्ति के गाने भी गाती हुयी।

सीन ४ -

’मैं अन्ना हूँ’ टोपी लगाये और बीईंग ह्यूमन लिखी टी-शर्ट पहने एक लडका मुझे अपनी तस्वीर खींचने के लिये कैमरा देता है। मैं एक तस्वीर लेता हूँ। वो कहता है थोडी पास से लीजिये और खुद ही पास वाली रेंज में आ जाता है। मैं एक तस्वीर लेता हूँ। जाने क्यों वो मुझे उस टोपी में एकदम नेहरु जैसा लगता है। मैं उससे मज़ाक करता हूँ कि अन्ना की टोपी में एकदम नेहरू लग रहे हो, वो थैंक्स बोलकर चला जाता है। अभी उसे और एंगल्स से तस्वीरें खिंचवानी हैं। उसे अन्ना की टोपी में नेहरू लगना भाता है। वहीं एक वॉलंटीयर जनलोकपाल और लोकपाल बिल के अन्तर बताने वाला पर्चा बांट रहा है। मैं सिर्फ़ उससे पूछता हूँ कि ये क्या है दोस्त? वो मुझे २ मिनट बहुत जोश से भरी कुछ बातें बताता है। मेरे हाथ आगे बढाने पर वो हाथ मिलाता है और तभी रुकता है। मैं उसे अप्रीशियेट करता हूँ वो मुस्कराता है। उसे खुशी है कि किसी ने उसे अप्रीशियेट किया। मुझे खुशी है कि वो खुश है।

सीन ५ -

भीड में मैं खडा हूँ, कुछ लोग स्टेज़ पर जाने के लिये रास्ता ढूंढ रहे हैं, उनके साथ एक अंग्रेज़ भी है। मैं जिधर खडा हूँ, उसकी दूसरी तरफ़ से स्टेज़ पर जाने का रास्ता है। मैं वहीं देशभक्ति के गानों में इन्वॉल्व हूँ। तभी अरविंद गौड अनाउंस करते हैं कि हमारी क्रांति विदेशों में भी फ़ैल चुकी है और यूके से हमारे साथ एक भाई जुडे हैं जो कुछ कहना चाहते हैं। ३-४ लोग स्टेज पर आते हैं, वो अंग्रेज भी उनके साथ है। अरविंद जी माईक पर धीरे से कहते चले जाते हैं कि हिंदी में बोलियेगा। यूके वाले एन आर आई भाईसाहेब जिनके साथ सबसे बडी बात यही है कि वो एन आर आई हैं। आकर कुछ कहने की कोशिश करते हैं, नहीं कह पाते तो अंग्रेजी में कहते हैं और फ़िर माईक उस अंग्रेज को दे देते हैं। वो कहता है आई लाईक इंडिया, आई लाईक इंडियन पीपल और बाकी सारे खुश होकर वंदे मातरम के नारे लगाते हैं। न्यूज वाले इसी घटना को ऎसे दिखा रहे होंगे कि एक अंग्रेज ने भी इस मुहिम को समर्थन दिया।

सीन ६ -

रामलीला मैदान से वापसी करते हुए नयी दिल्ली मेट्रो स्टेशन पर कुछ लडकों का जत्था ’हम होंगे कामयाब’ गा रहा है। रवि उस तरफ़ खिंचता है। मैं मना करता हूं थोडी खाली जगह भी है उससे कहता हूं वहीं खडे होते हैं। वो उधर ही जाना चाहता है| मैं भी उसका साथ देता हूँ। वो गा रहे हैं, वो नारे लगा रहे हैं। कुछेक लोग उनके पास खडे मुस्करा रहे हैं। मेट्रो आती है। वो पूरा जत्था उसमें घुसने लगता है। अंदर से एक बूढा उतरना चाह रहा है। मैं चिल्लाता हूँ अरे पहले उतरने तो दो। भीड मेरी नहीं सुनती। सब भीतर चले जाते हैं। मैं और रवि बाहर हैं। अंदर जाने को ही होते हैं कि रवि कहता है मेरा मोबाईल तुम्हारे पास है। मैं जेबें टटोलता हूं और ना में सर हिलाता हूँ। वो कहता है कि किसी ने मार लिया यार। बूढा तभी नीचे उतरता है। मैं सॉरी वाली नज़र से उससे आँखे मिलाता हूं। उसकी शर्ट के कुछ बटन्स खुल गये हैं और वो बुदबुदा रहा है जो मुझे एकदम समझ में आता है। मन में मैं भी शायद उन सो-कॉल्ड जोशीले युवाओं को वही सुना रहा हूँ। हम रवि का नोकिया एन ८ ढूंढ रहे हैं। फ़ोन गायब होने के बाद स्विच ऑफ़ हो चुका है। ’अन्ना तुम संघर्ष करो’ की सारी तस्वीरें और वीडियोज उसके साथ ही चले गये। आखिर क्रांति कुर्बानी माँगती है। रवि उदास है। कहता है कल भी आने का मन था अब शायद ना आ पाऊं। मन ही मन वो भी शायद वही बुदबुदा रहा हो।

सीन ७:

मेट्रो में भी हम ’मैं अन्ना हूँ’ वाली टोपी पहने हुये हैं। इसीलिये शायद एक सरदार लडका हमारे पास आता है और पूछता है कि रामलीला मैदान में क्या माहौल है? कुछ देर बात होती है। पता चलता है कि वो हमारे पास के सेक्टर में ही रहता है। बात धीरे धीरे खत्म हो जाती है और हम अलग अलग सीटों पर बैठ जाते हैं। उसे एम.जी. रोड उतरना है। वो उतरने से पहले हमारे पास आता है हाथ मिलाता है फ़िर पूछता है कि आईये, मैंने अपनी कार यहीं पार्क की हुयी है। आपको भी आपके घर ड्रॉप कर दूंगा। हम एक दूसरे को देखते हैं फ़िर उसके साथ उतर जाते हैं। वो हमें घर छोडता है, हमारा नं० लेता है, किसी वीकेंड पर मिलने का वादा भी करता है। हमें समझ नहीं आता कि हम शक्ल से इतने अच्छे थे या ये अन्ना टोपी या ये लडका ही इतना अच्छा है। लडके को ही अच्छा मानते हुये हम दोनो अपने घर चले आते हैं…