Tuesday, December 8, 2009

ज़िन्दगी हमारी रोज़ क्लास लेती है..

 

मै, तुम, बेटा और दीवारे….

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कभी कभी बस किसी का लिखा दिल को छू जाता है…कुछ लफ़्ज कभी नही भूलते, कुछ ज़ुमले बस जबा से लग जाते है…

ऐसी ही एक कविता मैने हाल मे ही पढी (चिट्ठाचर्चा के सौजन्य से)…और न जाने क्यू बार बार पढने को मन होता है…… मैने सोचा कि मै अपने ब्लाग के माध्यम से उन्हे प्रणाम कर सकू॥

http://tiwarimukesh.blogspot.com/2009/11/blog-post_30.html

“अक्सर,
रातों को
मैं, तुम, बेटा और दीवारें
बस इतना ही बड़ा संसार होता है
बेटे की अपनी दुनिया है / उसके अपने सपने
दीवारें कभी बोलती नही
और हमारे बीच अबोला
बस इतना ही बड़ा संसार होता है।


तुम्हारे पास है
अपने ना होने का अहसास /
बेरंग हुये सपने /
और दिनभर की खीज
मेरे पास है
दिनभर की थकान /
पसीने की बू
और वक्त से पीछे चल रहे माँ-बाप


ना,
तुमने मुझे समझने की कोशिश की
ना मैं समझ पाया तुम्हें कभी
तुम्हारे पास हैं थके-थके से प्रश्न
मेरे पास हारे हुये जवाब
अब हर शाम गुजर जाती है
तुम्हारे चेहरे पर टंगी चुप्पी पढ़ने में
रात फिर बँट जाती है
मेरे, तुम्हारे, बेटे और दीवारों के बीच…”

विराग जी की ये पन्क्तिया भी बहुत अच्छी लगी…

मत आओ मेरे जीवन में,मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा!!

“घर में लोग सिसकते हैं,
और जाने कितने भूखो मरते हैं!
कितने पापी पेट की खातिर,
जाने क्या क्या करते हैं!!
इस क्षुधा अग्नि के घर में रहकर मैं तुमको श्रंगार नहीं दे पाऊँगा!
मत आओ मेरे जीवन में,मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा!!”

मेरी चन्द त्रिवेणिया -

1- एक छटपटाहट सी हो रही है मन मे,
एक ज़माने के बाद आज अकेला बैठा हू।

डरता हू, कही तुम फ़िर से याद आ गये तो….

2- ख्वाबो की विन्डो बेतरतीब खुलती गयी,
और आपरेटिन्ग सिस्ट्म-ए-ज़िन्दगी हैन्ग हो गया।

ज़िन्दगी!! अब तो ctrl+alt+ delete भी काम नही करता….