Tuesday, February 24, 2009

रिश्वत कब तक ??

हमारे एक मित्र अपनी motorcycle से जा रहे थे की एक पुलिस वाले भाईसाहेब ने उनको रोका और ५० रुपया देने के लिए बोला।  आगे जानने के लिए यहाँ पढ़ें:-

http://rendezvous-with-rdx.blogspot.com/2009/02/no-bribe-please.html

“If asked to pay bribe by State Govt Employee, contact Anti Corruption Bureau on Toll Free number – 1800222021, Email: acbwebmail@gmail.com

- ACB, Mumbai ”

Wednesday, February 11, 2009

हमारे पिताजी!!

haathबचपन में हमें जहाँ देखो, अपने दोस्तों के सामने खड़ा कर देते थे और बोलते थे  “सोनू को २० तक टेबल आती हैं”. और उनके मित्रगण, कोई तुंरत बोलता 'सोनू '२' का सुनाओ' और बस हम तान लगाकर शुरू हो जाते।  फिर तो बस रंगारंग पहाडों का फरमाईशी प्रोग्राम शुरू हो जाता।  २, ४ , ६ और हम सुनाते जा रहे हैं और कुछ तो जानबूझकर १३, १७ और १९ का सुनाने को बोलते।

याद है की दसवीं तक रोज़ लाइट जाने के बाद छत पर बैठकर अंधेरे में पहाड़े सुनाते था और मार तो हमेशा खाते था।  एक बार मकानमालकिन आंटी ने न जाने क्या घुट्टी पिला दी पिताजी को, “लड़का बड़ा हो गया, अभी तक मारते रहोगे।”  बस उसके बाद से पहाड़े सुनाना बंद हो गया इस वार्निंग के साथ की अब वो सिर्फ़ मार्कशीट देखा करेंगे।  तब से रात में लाइट का जाना अच्छा लगने लगा।

उनके साथ क्रिकेट मैच देखना हमेशा दिलचस्प होता था।  सारे प्लेयर डांट खाते थे, अजय जडेजा तो बेचारा सिर्फ़ चयूइंग गम खाने के लिए भी डांट खाता था और गालों पर व्हाइट क्रीम लगाने के लिए भी डांट।

एक दर्जी था जो उनकी बड़ी इज्ज़त करता था, कपड़े कभी अच्छे नहीं सिल पाता था पर जाने पर चाय पिलाता था।  पचास बार तो बाबु जी करता था।  बस हमें ले जाकर नपवा देते थे वहां और हमारी कातिल जवानी जैसे चिल्लाती थी की नहीं आज तो बख्श दो।

बाल कटवाने ले जाते थे तो बस जैसे उन्हें एक ही हेयर स्टाइल पता थी - ‘छोटे कर दो’ और नाई को तो जैसे वीटो पॉवर मिल जाती थी।  हमारे अमिताभ और मिथुन बनने के सपने तो उन नाइयों ने ही चूर कर डाले नहीं तो हम भी आज बॉम्बे मैं इंजिनियर की जगह बॉलीवुड में होते।

अभी ड्राइंग रूम बना नहीं है तो उसी में थोडी खेती कर लेते हैं।  माँ का कहना है की इन्हे किसान होना चहिये था, ग़लत प्रोफेशन में आ गए हैं। उस छोटे से ड्राइंग रूम भर की जमीन से क्या क्या उगा देते हैं की बस पूछिए मत और जब भी कोई नया फल लगता है या पकता है तो बुला - बुलाकर दिखाते हैं - देखो सोनू, पपीता पक गया है।  उन आखों से बहुत कुछ सीखा है मैंने।  मुझे अभी भी याद है जब एक गाय आकर पूरा खेत बरबाद कर गई थी।  मैंने उनको आँखों में उस दिन अलग रंग देखे थे – दर्द के। 

अभी कुछ दिनों पहले जब घर गया था तो अपने साथ घुमाने ले गए थे, माँ को हमेशा पता रहता है की मैं कभी मोजे और रुमाल नहीं खरीद सकता हूँ, सो वही दिलवाने ले गए थे।  वो दूकान वाले अंकल उनके साथ कभी पढ़े हुए  थे और उनको बोले देखो रोज़ इसके बारे में बोलता हूँ, आज इसे ले आया।  मुझे समझ में आ गया की ये मेरे मुँह से आधी अधूरी बातें सुनकर यहाँ सुनाते होंगे।  मैंने तुंरत ही पैर छूए।  काफ़ी देर बैठकर उन लोगों की बातें सुनी, बहुत अच्छा लगा।

उस दिन फिर से पापा की नज़रों से सब कुछ देखा जैसे वो बचपन में दिखाते थे।  वो अपने कोर्ट ले गए।  आजकल वकील लोग तख्त पे नहीं बैठते हैं, सिविल कोर्ट में भी अब केबिन बन गए हैं।  वो मुझे कोर्ट ऐसे दिखा रहे थे जैसा न जाने कौन सा हिस्टोरिक प्लेस हो और मैं भी वैसे ही देख रहा था।  सवाल भी पूछ रहा था “पापा! वो क्या है?” और जवाब  भी सुने।

किसी दिन उन्हें ये पोस्ट जरूर दिखाऊंगा, उसके लिए बस थोडी सी हिम्मत चहिये. देखिये कब तक हिम्मत जुगाड़ पता हूँ।

एक SMS पर अभी निगाह गई :

"Memories play a very confusing role...They make you laugh when you remember  the time you cried together!! But make you cry when you remember the time you laughed together.."

Sunday, February 8, 2009

एक फ़ोन कॉल और एक बेनामी रिश्ता

“पंकज! उनका कॉल आ रहा है, मैं तुम्हे १० मिनट के बाद फ़ोन करती हूँ…”
“हम्म....ठीक है।”

लेकिन अभी तक ह्रदय में ‘उनका’ शब्द गूंज रहा था. मैं ‘पंकज’ ही रह गया और उसे एक रिश्ते ने ‘उनका’ बना दिया. वही सोंचते सोंचते मैं फ़ोन रखना भूल गया और उसने शायद ‘उनका’ कॉल पिक कर लिया।

“हेलो !!”
मैं कुछ नहीं बोल सकता था क्यूंकि मुझे पता था की ‘वो’ कॉल पर है और मैं उसकी इस नई ज़िन्दगी में कोई परेशानी पैदा नहीं करना चाहता था।

“हेलो !! क्या हुआ? बोलते क्यूँ नहीं..”
इन पंक्तियों में इतना प्यार था, जिन्होंने मेरे एक ‘ब्लू लागून’ और एक बियर के नशे को एकदम गायब कर दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा।

“ऐ क्या हुआ??”
मैंने फ़ोन रख दिया। उसको वापस कॉल किया और उसको बताया की लाइन पर ‘वो’ नहीं था ‘मैं’ था…

उसने पहले ‘उनसे’ बात की फिर मुझसे, और मैंने गुस्से में न जाने क्या क्या बोला उसे ?

४ साल पुराना रिश्ता अभी 'बेनाम’ हो चुका था और मेरे पास हमेशा की तरह कहने को कुछ भी नहीं था।

मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ !!

कुछ वर्ष पहले मैंने धर्मवीर भारती जी की 'गुनाहों का देवता' पढ़ी थी। बहुत ज्यादा पसंद तो नहीं आई थी लेकिन उनकी नारी पात्र 'सुधा' ने बस जादू सा कर दिया था :)। उन्होंने उस पुस्तक में एक कविता के माध्यम से एक रिश्ते को समझाने की कोशिश की थी। वो कविता किसी अंग्रेज़ी कविता का हिन्दी अनुवाद था। मैंने इसकी मूल प्रति को काफ़ी ढूँढा लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है। क्या आपको पता है?

"मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ, न ! मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ ।

फिर भी मैं उदास रहती हूँ, जब तुम पास नहीं होते हो।

और मैं उस चमकदार नीले आकाश से भी इर्ष्या करती हूँ,

जिसके नीचे तुम खड़े होगे और जिसके सितारे तुम्हे देख सकते हैं। "

"मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ, फिर भी तुम्हरी बोलती हुई आँखें;

जिनकी नीलिमा में गहराई, चमक और अभिव्यक्ति है -

मेरी निर्निमेष पलकों और जागते अर्धरात्रि के आकाश में नाच जाती हैं।

और किसी की आंखों के बारे में ऐसा नहीं होता...."

"न....... मुझे मालूम है की मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ, लेकिन फिर भी

कोई शायद मेरे साफ़ दिल पर विश्वास नही करेगा।

और अक्सर मैंने देखा है, की लोग मुझे देखकर मुस्कुरा देते हैं,

क्यूंकि मैं उधर एकटक देखती रहती हूँ, जिधर से तुम आया करते हो। "

-- Taken From 'Gunhaon Ka Devta'

इमोशनल अत्याचार

2655311426_ffdd156bec अभी अभी देव डी देखकर आया हूँ। इस फ़िल्म में शरत चंद्र के देवदास को आधुनिक रूप से दिखाने की कोशिश की है। मुझे इस फ़िल्म ने काफ़ी कुछ सोंचने पर मजबूर किया। हम देवदास से देव डी तक आ चुके हैं। हमारा आज का देवदास ड्रग और वोदका में जीता है। आज की चंद्रमुखी उन पुराने कोठों की जगह, नए युग के रेड लाइट एरिया में रहती है। हम सच में काफ़ी आगे आ चुके हैं।

कभी कभी मेरा भी मन करता था की इस तरीके से नशे में खो जाऊं की सब कुछ भूल जाऊं, सारी जिम्मेदारियां, सारे दुःख सब कुछ। सुबह से शाम तक बस कुछ भी न याद रहे, बस चलता रहूँ बिना किसी मंजिल को सोंचे हुए। चलता रहूँ जब तक थक न जाऊं और जैसे थकूं , फिर से नशा लिया और फिर चल दिए। चलता रहूँ जब तक, या तो ये दुनिया ख़त्म हो जाए या मैं। जो भी देखूं वो सब कुछ एकदम नया हो, कभी पहाड़, कभी समुद्र, कभी सूर्योदय तो कभी पूरा चाँद। सब कुछ ऐसे देखूं जैसे कभी न देखा हो, सब कुछ ऐसे सुनूं जैसे कभी न सुना हो।

फिर मैंने इन खानाबदोश फिरंगियों को गंगा किनारे पागलों के जैसे बैठा देखा, मुझे जिज्ञासा हुई ये जानने की की आख़िर इन्हे इस गंगा घाट से मिल क्या जाता है। मैंने बनारस की वो गलियां देखीं, जो मैंने सिर्फ़ कुछ किताबों में पढ़ी थीं और मुझे देखकर काफ़ी आश्चर्य हुआ की ये लोग उन गलियों के किनारों पे बनी सरायों में अपने घर के जैसे रहते हैं। वहां की चाय की दुकानों पर रेट चार्ट, इंग्लिश, चाइनीज और फ्रेंच में लिखे होते हैं। हमारा भारतीय संगीत वहीँ पर जीता है। वहां की म्यूजिक शोप्स पर जितने अच्छे गिटार होते हैं उतने अच्छे सितार, ढोलक और बांसुरी और ये फिरंगी लोग उनमें डूब जाते हैं। इन लोगों को देखकर मुझे लगा की जब ये लोग नशे और सेक्स से ऊब जाते हैं और जब ये चीज़ें भी इन्हे शान्ति नहीं दे पातीं तब इन्हे गंगा की आरती में सुकून दीखता है, तब इन्हे संगीत में सुकून दीखता है। तब इन्हे योग से शान्ति मिलती है।

फिर हम क्यूँ उस तरफ़ जा रहे हैं, जो राहें वो लोग छोड़ चुके हैं ? जाने हम में से कितने आज भी शरतचंद्र के देवदास को समझ सकते हैं? शरत चंद्र के नारी पात्रों को समझ सकते हैं?????

मजे की बात ये है की मैं ये सब तब लिख रहा हूँ जब मैंने ख़ुद दो बियर पी रखी हैं

Friday, February 6, 2009

देर से आया लेकिन दुरुस्त आया .....

जी हां, मैं आ चुका हूँ, आप सब लोगों को फिर से तकलीफ देने। काफ़ी दिनों तक मेरी रचनाओं ने आपकी फीड को बढाया नहीं होगा और आप खुश होंगे। वो मुझे पता है।

मैंने २ फरवरी को SCJP 1.6 (Sun Certified Java Programmer) ८६% के साथ पास किया और मेरा कुछ दिन तक न लिखना और अपने आप को थोड़ा समय देना काम आया। अगर आपको इस परीक्षा के विषय में कुछ जानना है तो इसे पढ़ें

अभी कुछ ज्यादा मेरे पास लिखने को है नहीं। बस एक पुस्तक मेला लगा था, हमने भी तीन किताबें ले डालीं:

१- दा व्हाइट टाइगर  - अरविन्द अदिगा

२- दा बुक ऑफ़ understanding ओशो

3- Head First JSP and Servlets

अब बस इन्हे पढ़ना शुरू करना है, वो हम भी नहीं जानते की कब करेंगे :)। अभी के लिए इतना ही है, आप चाहें तो अपने दिल पर पत्थर रखकर (क्यूंकि मैं वापस आ गया हूँ ), मुझे बधाई दे सकते हैं। :)

अलविदा, जल्दी ही कुछ अच्छे के साथ आता हूँ .