तुम्हारे प्यार से भेजे हुए पहले फूल जो अब सूख गये हैं, उनकी भीनी भीनी खुश्बू में डूबकर ये सोचती हूँ की क्या करूँ इनका..?
हमारे नये घर की बैठक में सज़ा दूँ..
या अपनी प्याज़ी रंग वाली उस साड़ी की किसी तह में दबा दूँ जो तुम्हे पसंद आई थी
या फिर इनको घोल कर इत्र बना लूँ, अपने दुपट्टे में लगा लूँ!
या पीसकर उबटन बना लूँ और गालों पे लगा लूँ!
या फिर तुम जब अबकी बार आओगे तो तुम्हारे लिए सुबह की पहली, फ्लोरल चाय बना दूँ, थोड़ी कम चीनी और ज़्यादा पत्ती वाली..!!
या इनको ढाल दूँ चन्द महकती मोमबत्तियों में, और करूँ इंतज़ार तुम्हारे ऑफिस से वापस आने का, अपने प्यारे से घर में साथ-साथ कंडिल लाइट डिनर खाने का,
या कि बगीचे की गीली मिट्टी वाले उस किनारे पर जहाँ धूप हल्की-हल्की आती है, इनको दबा दूँ और करूँ इंतज़ार नयी कोपलें फूटने का और उस पौधे में खिलने वाले पहले फूल का भी..जिसे चढ़ाएँगे उस पूजा में, जो हम सुबह उठकर साथ-साथ करेंगे, अपने नये घर में बनाए इक छोटे से मंदिर में..
और फिर सोचती हूँ की रखूं ऐसे ही इसे ज़िंदगी भर अपने पास, तुम्हारे प्यार की सौगात की तरह और महकने दूँ अपने कमरे और इस ज़िंदगी को इसी भीनी-भीनी खुश्बू से…..............................…ताउम्र !
--दीप्ति
“ये पोस्ट कुछ आइस-पाइस खेलती खुशियों के वास्ते, उस खुदा के वास्ते जो हमेशा ज़िंदगी में ’नहीं होकर भी रहा’ और इस ब्लॉग के वास्ते जिसे इसका को-राइटर मिल गया...”
--पंकज