Thursday, September 26, 2013

२६ सितम्बर

दिन २६ सितम्बर ।।

ऑफिस से जब घर लौटता हूँ और फेसबुक ओपन करता हूँ, कुछ नोटिफ़िकेशन्स हैं... उनमें से एक में, एक तस्वीर है| 'तुम्हारे' साथ की तस्वीर... 'हम सब' के साथ होने की तस्वीर..


...मैं उसकी तरफ देखता हूँ, वो किचेन में मुस्करा रही है|
फिर मैं तुम्हे देखता हूँ... तुम वहीं हो... उसी तस्वीर में... मुस्करा रही हो...

थोड़ी देर बाद बालकनी में हम हैं... तुलसी हैं, मीठी नीम है, ठंडी हवा है, बारिश की फुहारें हैं, सामने नाचता मोर है, २६ सितम्बर है और प्यार है। ...ढेर सारा प्यार।

Saturday, May 11, 2013

चंद ख्वाहिशों में लिपटे फूल…

303035_425333964229037_1430586196_nतुम्हारे प्यार से भेजे हुए पहले फूल जो अब सूख गये हैं, उनकी भीनी भीनी खुश्बू में डूबकर ये सोचती हूँ की क्या करूँ इनका..?
हमारे नये घर की बैठक में सज़ा दूँ..
या अपनी प्याज़ी रंग वाली उस साड़ी की किसी तह में दबा दूँ जो तुम्हे पसंद आई थी

या फिर इनको घोल कर इत्र बना लूँ, अपने दुपट्टे में लगा लूँ!
या पीसकर उबटन बना लूँ और गालों पे लगा लूँ!
या फिर तुम जब अबकी बार आओगे तो तुम्हारे लिए सुबह की पहली, फ्लोरल चाय बना दूँ, थोड़ी कम चीनी और ज़्यादा पत्ती वाली..!!
या इनको ढाल दूँ चन्द महकती मोमबत्तियों में, और करूँ इंतज़ार तुम्हारे ऑफिस से वापस आने का, अपने प्यारे से घर में साथ-साथ कंडिल लाइट डिनर खाने का,
या कि बगीचे की गीली मिट्टी वाले उस किनारे पर जहाँ धूप हल्की-हल्की आती है, इनको दबा दूँ और करूँ इंतज़ार नयी कोपलें फूटने का और उस पौधे में खिलने वाले पहले फूल का भी..जिसे चढ़ाएँगे उस पूजा में, जो हम सुबह उठकर साथ-साथ करेंगे, अपने नये घर में बनाए इक छोटे से मंदिर में..


और फिर सोचती हूँ की रखूं ऐसे ही इसे ज़िंदगी भर अपने पास, तुम्हारे प्यार की सौगात की तरह और महकने दूँ अपने कमरे और इस ज़िंदगी को इसी भीनी-भीनी खुश्बू से…..............................…ताउम्र !

--दीप्ति

 

 

“ये पोस्ट कुछ आइस-पाइस खेलती खुशियों के वास्ते, उस खुदा के वास्ते जो हमेशा ज़िंदगी में ’नहीं होकर भी रहा’ और इस ब्लॉग के वास्ते जिसे इसका को-राइटर मिल गया...”                       

--पंकज

Wednesday, March 13, 2013

नोट्स…

पीडी


पीडी एयरपोर्ट के बाहर खडा है…

वो हवा में हाथ हिलाता है मैं भी हाथ दिखाकर जवाब देता हूँ… और याद करने की कोशिश करता हूँ कि पीडी से कैसे परिचय हुआ? ब्लॉग से तो हुआ लेकिन कब, ये याद नहीं आता…

पहली मुलाकात याद आती है जब पीडी को गुडगांव आना था। उस सुबह मैं बहुत गहरी नींद में था और सुबह सुबह उसे लेने सेक्टर ४० मार्केट गया। फ़िर हम काफ़ी देर साथ बैठे.. कुछेक कप चाय पी और फ़िर दुनियादारी की कुछ बातें। दूसरी, जब मैं और सागर रिक्शे पर आगे बैठे थे और पीडी को उल्टा पीछे बिठा दिया था। रास्ते भर सागर उसे छेडता रहा.. रात में फ़िर गिटार को छेडा और उसके बाद दोनो भले मानसों ने मिलकर संगीत के रागों को भी जमकर तोडा छेडा..

बहुत पहले जब मैं बॉम्बे में था तब बातों बातों में हमने एक बाईक ट्रिप प्लॉन की थी। कह सकते हैं  मोटरसाईकिल डायरीज की तर्ज पर लेकिन उसका कुछ हो नहीं पाया। इस बार मुझे वीजा इंटरव्यू के लिये चेन्नई जाना था। मैंने दो दिन अपने पास और रख लिये और पीडी से फ़िर बात की। बात सिर्फ़ दो मिनट हुयी। सवाल था दो दिन.. एक बाईक ट्रिप… पांडिचेरी…? जवाब में पीडी हाथ हिला रहा है… मैं फ़िर हाथ उठाकर जवाब देता हूँ…

पांडिचेरी

सुबह से बारिश हो रही थी। चाय पीने के बाद हमने सोच लियाBike था कि भीगते हुये भी जाना हुआ तो जायेंगे। फ़िर बारिश हल्की हुयी… पीडी ने बाईक निकाली और हम निकल पडे सडक पर।

सडक, जिसके साथ साथ समंदर चलता था। समंदर, जिसके साथ साथ आसमान। आसमान, जिसके सहारे बारिश भरे बादल धीमे धीमे लेकिन बढते जाते थे। …और बाईक पर पीछे बैठा मैं, उन बादलो के पीछे बैठे ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि दुनिया सच में कितनी खूबसूरत है…

 

 

लॉस्ट इन ट्रांसलेशन @चेन्नई

१) उत्तर भारतीयों से इस शहर के काफ़ी किस्से सुने थे। शहर में जाता हूँ तो थोडी देर तो लगता है कि मैं भी Bill Murray साहेब की तरह लॉस्ट इन ट्रांसलेशन हो गया हूँ। भाषा जरूरी चीज़ प्यार में नहीं होती होगी, एक शहर में तो होती है खासकर तब जब आपको एक ऑटो वाले को फ़ोन करके ये कहना होता है कि जहाँ तुमने मुझे छोडा है वहाँ से सीधे सी.सी.डी. के सामने आ जाओ। ५ मिनट मेहनत करता हूँ… हारने पर एक सवाल उस बी़च (Beach) के कुछेक खोमचे वालों की झोली में फ़ेंकता हूँ.. हिंदी? एक भुट्टे वाला मुझे देखता है.. टूटी-फ़ूटी हिंदी में बात करता है मुझसे फ़ोन लेकर उस ऑटो वाले को जो मेरा इंतजार कर रहा है, उसे तमिल में कुछ समझाता है। मुस्कराता है और मुझे फ़ोन दे देता है। ऑटो वाला जबतक उस जगह पहुँचे, वो मेरे लिये भुट्टा भी तैयार कर चुका है… हिंदी में पैसे भी ले चुका है।

 

२) दोपहर में वीज़ा इंटरव्यू है। मेरे टाईम के अल्गोरिदम हमेशा गडबड रहते हैं। पीडी उन्हे सही बिठाने की कोशिश करता है लेकिन रास्ते में ट्रैफ़िक ज्यादा है। फ़िर कन्सलॆट को छावनी बना रखा है। यूट्यूब पर कोई वीडियो आया था, कुछेक आहत लोगों ने यहाँ तोडफ़ोड तो क्या, फ़ोटो खिंचवाने की कोशिश की होगी!… मेन रास्ता बंद है.. काफ़ी घूमकर जाना है। मैं पीडी से जाने को कहता हूँ। ट्रैफ़िक बहुत ज्यादा है… फ़्लाईओवर का एक सिरा वहीं खत्म  होता है। सडक के दूसरी तरफ़ यूएस कन्सोलेट है… मैं वैसे ही लेट हूँ… मुझे एक ही रास्ता दिखता है सडक कैसे भी पार करनी है। जैसे-तैसे आधी दूर पहुँचता हूँ… तब लगता है आगे जाना बहुत मुश्किल है। तभी पीछे से एक आवाज आती है। एक आईसक्रीम वाला काफ़ी कुछ तमिल में और बाकी इशारे से चिल्लाते हुये मुझसे कुछ कह रहा है। मुझे समझ आता है कि सडक क्रॉस करने का कोई रास्ता थोडा और आगे से है… उसे जल्दी जल्दी थैंक्यू बोलता हूँ वो पूरे हक से नाराज होता है… मैं सॉरी बोलकर आगे भागता हूँ… सामने एक सब-वे है… सडक के इस पार से उस पार तक जाने का एक अंडरग्राउंड रास्ता… भागते हुये मन ही मन उस भलमानस को धन्यवाद देते हुये मैं सोचता हूँ कि भाषा सच में इतनी जरूरी है?