Tuesday, June 28, 2011

बस नुमाइंदे कुछ नये होंगे…

 

प्रतीक उपाध्याय की आवाज़ में…

Shubham

7 comments:

सागर said...

जिंदगी की स्याहियों में उलझे बस नुमाईंदे कुछ नए होंगे.

अक्सर रात की नब्ज़ थामती है आवाज़... ये आवाज़ अच्छी है दफत में शाम को जब काम पीक पर होता है तब भी होल्ड कर के रखा. इसे कोई जल्दी नहीं है, होनी भी नहीं चाहिए. ये है पर नहीं है, नहीं है लेकिन है.

प्रतीक को बोलो उसका प्रतीक हमारे लिए अभी सिर्फ उसकी आवाज़ ही है. कुछ पिछले पॉडकास्ट के लिए भी हमारी तरफ से उसकी पीठ ठोक देना और ज़रा अज़दक के ब्लॉग पर जा कर साइड में जो पॉडकास्ट का पन्ना है उस पर "साढ़े तेरह रूपया में एगो माचिस" और "दीदी चलो ना" सुन लो... तसल्ली हो जायेगी.

इधर इसको भी मेल कर दें...

दीपक बाबा said...

प्रतीक कितना बेतुका सा लगता है जिंदगी के बारे में सोचना....... क्या ये जरूरी है .

हाँ शायद, जरूरी जैसे की पोडकास्ट की पोस्ट के साथ कमेंट्स बॉक्स में भी बजाये टाइप करने के वोईस रिकॉर्डिंग का ओप्शन होता...

आह जिंदगी

sonal said...

waah

richa said...

पॉडकास्ट पे पॉडकास्ट... वो भी सारी की सारी एकदम गज़ब टाइप :)
क्या बात.. क्या बात.. क्या बात !!!

डिम्पल मल्होत्रा said...

achhi baat ye hai unseen passage(zindgee) ke jwab passage me hi mil jate hai.ye alag baat hai kyee baar hmari nazar se chook jate hai...
PS:awaaz achhi hai :)

Stuti Pandey said...

प्रतीक की आवाज़ में जो दर्द है, वो इसे एक नए आयाम पर ले जाती है, बहुत सुन्दर!

love sms said...

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