- “ज़िंदगी कभी कभी किसी यू.एस.बी. डिवाईस जैसी होती जाती है। जब तक आप किसी से जुडे हुए न हों… कहीं प्ल्ग्ड न हों, आपके होने का कोई वजूद नहीं होता। भले ही आपने उस ज़िंदगी में दुनिया की सबसे कीमती चीज़ें संजोकर रखी हों पर जब तक आप किसी से जुडते नहीं, उन कीमती चीज़ों का कोई अस्तित्व नहीं।
और जब आप किसी से जुडते हो… उसे एक स्पेस देते हो और अपने होने को भी एक वजूद। फ़िर किसी एक दिन कोई कम्बख्त ’सेफ़ली रिमूव’ पर क्लिक करता है और आप अपने आप में उसकी कुछेक यादों के साथ सिमट जाते हो। क्या वो लोग आपको याद रखते हैं?
मैं भी वैसा ही हूँ, चाहता हूँ कि तुम्हारी ज़िंदगी में ऎसे रहूँ कि मैं वहाँ होकर भी न रहूँ। जब लगे कि तुम्हें मेरी जरूरत नहीं, मुझे ’सेफ़ली रिमूव’ कर सको। मैं तुम्हारी ज़िंदगी में बिना कोई कैओस लाये चुपचाप रहना चाहता हूँ।”
- “तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हें यू.एस.बी. डिवाईस जैसे ट्रीट करती हूँ? कि जब मुझे तुम्हारी जरूरत होती है, तुम्हारे पास आ जाती हूँ और जब नहीं होती…”
- “नहीं होना सबसे आसान है, होकर भी नहीं होना उससे बस थोडा सा ही कठिन… ’होना’ सबसे तकलीफ़देह है। उन सारी घटनाओं में, परिस्थितियों में, संबंधों में… होना जहाँ ’नहीं होकर’ आप जी सकते थे और ’होकर’ आप जीते नहीं।”
- “कभी कभी ’नहीं होने’ से भी मैं डर जाती हूँ। जैसे कोई फ़ोटो अलबम पलटते हुये अचानक कोई फ़्रेम आता है जो गलती से खिंच गया होता है। उसमें कोई नहीं होता… वो सारे लोग जो और तस्वीरों में थे, वहाँ नहीं होते। उनका नहीं होना डराता है। Death is simply getting out of the frame.”
“एक दिन इन सारी तकलीफ़ों को छोड, मैं भी नहीं रहूंगी”
- “अच्छा, ऎसे कैसे नहीं रहोगी?
- “पता है मुझे बचपन से एलियन्स अपनी तरफ़ खींचते थे। मुझे हमेशा से लगता था कि कोई एलियन स्पेसशिप से आयेगा और मुझे अपने साथ ले जायेगा। कभी मेरा स्पेसशिप आया तो मैं नहीं रुकूंगी। मुझे तब जाना ही होगा। उसके साथ… आसमां के पार…।”
- “एक ना एक दिन सबका स्पेसशिप आता है………”
ये कहते हुये या सोचते हुये, वो बगल में पडी यू.एस.बी डिवाईस को देख रहा था और वो दूर आसमान में अपने स्पेसशिप को ढूंढ रही थी।