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कई दिनो से वह बहुत खुश थी। आँखो की चमक काफ़ी बढ गयी थी, मुस्कराहटें मीलों जितनी चौडी हो गयीं थीं। एक हफ़्ते बाद उसके बच्चे इंडिया से उससे मिलने आ रहे थे। ऎसा उसने ही मुझे बताया था। वो अमेरिका में उनकी छुट्टियों भरे दिनों को प्लान कर रही थी। डिज़्नी लैंड के टिकेट्स भी ले डाले थे। मुझसे ये सब बताते हुये वो खो जाती थी शायद वहाँ चली जाती थी जहाँ अभी उसके बच्चे थे और उनके भी बच्चे, जो कहीं जाकर वहीं रह गये थे और वो यहीं रह गयी थी। वो मुझे अपने कंप्यूटर पर उनकी तस्वीरें दिखाती और कहती कि जब वो आयेंगे तो मुझे उनसे मिलवायेगी। मैं कहता कि मुझे अच्छा लगेगा जैसा मुझे उसके साथ अच्छा लगता है।
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वो मीरा की पहली इंटरनेशनल फ़्लाईट थी। नये देश जाने का भी एक एक्साइटमेंट था और ऊपर से अमेरिका। लेकिन वो अमेरिका गये लोगों की तस्वीरें फ़ेसबुक पर देख देखकर ऊब गयी थी। उसने सोच लिया था कि वो स्टेचु ऑफ़ लिबर्टी के पास वाली फ़ोटो चाहे फ़ेसबुक पर डाल दे लेकिन हॉलीवुड वाले पहाड के सामने तो फ़ोटो बिल्कुल भी नहीं खिंचवायेगी। जिसे देखो वही तो वहाँ की फ़ोटो डाले हुए है। नहीं… फ़ोटो ले तो लेगी ही बस उसे फ़ेसबुक पर नहीं डालेगी ये सब सोचते हुये उसने समीर की तरफ़ देखा। वो उसकी बगल की सीट पर बैठा हुआ मैगजीन पढने में लगा हुआ था। पेरिल्स ऑफ़ ऎन अरैंज्ड मैरिज – वो फ़िर सोच में डूब जाती है और खिडकी से बाहर बादलों को देखने लगती है।
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वो सोमवार का दिन था। उस दिन मैं थोडा लेट था। वीकेंड की फ़्रेश डार्क बीयर और आईरिश कॉफ़ी का कांबिनेशन अभी तक दिलोदिमाग पर छाया हुआ था। अपना कार्ड स्वाईप करके मैंने अपने फ़्लोर पर एंट्री मारी। कहीं एक बे(Bay) में काफ़ी सारे लोग जमा थे, शायद किसी का जन्मदिन था। मैंने दूर से ही उन्हे हाथ हिलाया और सोचा चलो कुछेक घंटे बिना काम के कटेंगे। दो कदम बढा ही था कि देखा सामने से वो चली आ रही थी। उससे थोडी दूरी बनाकर एक सिक्योरिटी वाला भी चल रहा था जिसे देखकर कोई भी यही समझता कि वो उस की हरकतों पर निगाह रख रहा था। मैंने हाथ के इशारे से उसे हेलो कहा। उसका चेहरा बाढ आने के ठीक पहले वाली अवस्था में था जब आँखों से बहने वाली नदी खतरे के निशान को बस पार करने ही वाली होती है। वो मेरे पास आयी और मुझे अपने गले से लगा लिया। सिक्योरिटी गार्ड अभी भी उसे देख रहा था।
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दोनों को फ़्लाईट से बाहर आये हुये तो आधे घंटे हो गये थे लेकिन उनका सामान अभी तक नहीं आया था। अपने सामान का इंतजार करते हुये समीर सोच रहा था - पेरिल्स ऑफ़ अ मैरिज। मीरा जे एफ़ कैनेडी एयरपोर्ट पर दौडते भागते विदेशियों को वैसे ही देख रही थी जैसे हम किसी नये शहर की एक एक चीज़ को देखते हैं… समझते हैं। विदेशी भी उसे वैसे ही देख रहे थे या शायद नहीं देख रहे थे, उसे सिर्फ़ लग रहा था कि वे उसे देख रहे हैं। समीर ने सामान उतारा, गिना और फ़िर उन्हे कायदे से मीरा के पास रखकर वो उसे ’दो मिनट’ कहकर वाशरूम की तरफ़ गया। जाते हुये उसने मोबाईल निकाला और वो मैसेज फ़िर से पढा जो अभी अभी आया था और जिसे पढकर उसने सबसे पहले मीरा को देखा था। और तब मीरा एयरपोर्ट की चकाचौंध में खोयी हुयी थी…
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वो सिर्फ़ इतना बोल पायी कि दे हैव फ़ायर्ड मी। उसके बाद के उसके शब्द हैप्पी बर्थडे की तालियों और उस खुशी भरे गाने के बोझ तले रह गये जैसे किसी कहानी के दर्दनाक मोड पर गलती से खुशियों भरा बैकग्राउंड संगीत बज उठे। बे से तालियां बजाते कुछेक लोग मुझे चिल्लाकर बुला रहे थे। मैं उनकी तरफ़ से नज़रें हटाकर उसकी तरफ़ देखता रहा। कितना अज़ीब होता है न कभी कभी एक ही कदम के फ़ासले पर सुख और दु:ख दोनो का होना? एक कदम आगे बढ जाओ तो सुख के साथ थोडा हंस बोल लो, एक कदम पीछे आओ तो दु:ख से गले मिल लो। मुझे पीछे आने की भी जरूरत नहीं थी। वो मेरे सामने थी और सिक्योरिटी वाला उसके क्यूबिकल से उसका सामान निकालकर पैक कर रहा था। मैंने उसके सर पर हाथ रखा। वो बोली कि सब खत्म हो गया। बच्चे आ रहे हैं आज। खुशी मनाऊं की दुख, मुझे समझ नहीं आ रहा? मैं उसके साथ साथ बाहर आ गया। उसे हिदायत दी गयी थी कि किसी को पता न चले वरना एक डर फ़ैल जायेगा और वो चाहते थे कि सारे प्रोग्राम्ड लोग अपनी प्रोग्राम्ड ज़िंदगियों को वैसे ही जीते रहें बिना इस डर का आभास किये हुये।
लेकिन उसकी ईमेल आईडी जब कल से काम नहीं करेगी, तो डर नहीं होगा? कल से जब वो अपने क्यूबिकल, अपने बे में नहीं दिखेगी तो डर नहीं होगा? डर को हम कैसे बाँध सकते हैं? रोक सकते हैं?
हम दोनो गेट पर खडे थे। सिक्योरिटी वाला उसका सामान पैक करके ला चुका था। मैंने उससे सामान लिया और उसकी कार तक आया। उसने मुझे फ़िर गले से लगाया और इस बार फ़फ़क फ़फ़ककर रो पडी। मेरे मुँह से बस एक लाईन बार बार निकल रही थी – आई विल मिस यू मिसेज खान।……
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वाशरूम में समीर ने पानी का टैप खोला, मुँह पर थोडा पानी डाला, थोडे से बाल गीले किये और फ़िर वो अपने आप को शीशे में देखने लगा, सोचने लगा…
बास्टर्ड्स, हाउ कैन दे फ़ायर मी विदआउट एनी नोटिस! अब मैं क्या करूं? मीरा से क्या कहूँ? उफ़्फ़!!
क्या करूं मैं? ऑफ़िस वालों ने जो घर दिया था वो भी अब मेरा नहीं रहा। अपनी बीवी को जिसको मैं इंडिया से ब्याहकर लाया है, उसे अमेरिका में कहाँ ले जाऊं? मैंने अभी शादी ही क्यों की? उस बेचारी का इसमें क्या दोष है? क्या क्या तो सपने सजाये होंगे उसने? आई एम अ मोरान।
मीरा सामान के पास खडी सोच रही थी कि इस घर में क्या क्या करेगी जिससे इंडिया वाली फ़ीलिंग रहे। पता नहीं यहाँ कोई हिंदी न्यूजपेपर आता भी होगा या नहीं वरना वही लगवा देती। सुबह सुबह चाय के साथ हिंदी अखबार हो तो लगता है जैसे घर में ही हैं। तुलसी का एक पौधा मिल जाय तो उसे भी एक गमले में लगा देगी। थोडी केयर करनी पडेगी लेकिन देखेगी, समीर से पूछेगी। एक तो ये बोलते भी कम हैं।
मैं मिसेज खान को विदा करके वापस ऑफ़िस में एंट्री कर ही रहा था कि देखा समीर का फ़ोन है। मैं उसकी शादी में भी जा नहीं पाया था, लगा कि गालियां देगा और फ़िर मिसेज खान के साथ जो कुछ भी हुआ मैं खास किसी से बात करने के मूड में नहीं था। पर जाने कैसे मोबाईल पर उंगलियां दबीं और फ़िर दूसरी तरफ़ उसकी कांपती आवाज़ थी और फ़िर आँखो के सामने एक के बाद एक बनते सीन। मेरा फ़्लोरिडा वाला घर अभी खाली पडा हुआ था। कुछेक महीने मुझे यहीं न्यूयार्क में क्लाईंट लोकेशन पर ही रहना था। मैंने उससे कहा कि रुक मैं एयरपोर्ट आ रहा हूं फ़िर तुम लोग फ़्लोरिडा चले जाना और वहीं मेरे घर पर ही रह लेना। मीरा को मत बताना कि वो घर तुम्हारा नहीं है और फ़िर अगले १-२ महीने में दूसरी नौकरी ढूंढते हैं।
समीर वाशरूम से आया। मीरा ने पूछा कि बडी देर हो गयी तो उसने मीरा को गले लगा लिया। मीरा कुछ भी नहीं समझ पायी और इससे पहले वो कुछ पूछ पाती, समीर ने कहा कि हमें फ़्लोरिडा जाना होगा। लेकिन आप तो एनवाईसी में रहते थे न? समीर मुस्कराया और उसे फ़िर गले से लगा लिया। मीरा का मुँह खुला लेकिन वो शब्द बाहर नहीं आये – पेरिल्स ऑफ़ एन अरैंज्ड मैरिज
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ब्लॉगर की कलम से: समीर से मिलने जब मेरा कॉलीग (जिसने जाने किस मूड में आकर मुझे ये रिसेशन कहानियां सुनायीं थीं और जो मैंने बिना उसे रॉयेलिटी दिये यहाँ छाप डालीं), एयरपोर्ट पहुँचा तो समीर ने उसे भी कुछ मीरा की तरह ही गले लगाया था। ना जी ना आप तो काफ़ी डीप जाने लगे।
मिसेज खान को ऑफ़िस से छुट्टी मिल गयी थी इसलिये उन्होने अपने बच्चों और उनके भी बच्चों के साथ फ़ुलटू मस्ती काटी और ढेर सारी तस्वीरें भी फ़ेसबुक पर डालीं। फ़ोटो एल्बम का शीर्षक था – आई एम फ़्री। बच्चों के जाने के बाद उन्होने फ़िर कुछेक कंपनीज में कोशिश की और कोशिश करने वाले की हार नहीं होती है कि तर्ज़ पर वो एक कंपनी से जुड गयीं, थोडे और ज्यादा वेतन पर।
सुनने में आया कि बाद में किसी बेनामी(हाँ यहाँ भी बेनामी) ने शिकायत कर दी कि बर्थडे सेलीब्रेशन से उसे और बाकी लोगों को काम करने में दिक्कत होती है (पक्का उसे केक नहीं मिला होगा) और उसके बाद से सारे सेलीब्रेशन कैंटीन/कफ़ेटेरिया में होने लगे और लोगों की आध्यात्मिक शांति के लिये बे को किसी भी प्रकार के सेलीब्रेशन से मुक्त कर दिया गया। काश ये थोडा पहले हो जाता।
समीर की जब नौकरी लगी और उसने जब मीरा से वापस न्यूयॉर्क चलने के लिये कहा तो मीरा ने वापस वही सोचा जो आपको तो पता ही है। लेकिन जब समीर ने उसे सारी कहानी सुनायी तो इस बार उसने उसे गले से लगा लिया। (फ़िर आप गलत दिशा में जाने लगे।) मीरा अभी समीर से पूछना चाह रही है कि तुलसी के पौधे को फ़्लाईट से ले जा सकते हैं क्या? लेखक (हाँ हाँ टेंशन क्यों ले रहे हैं? मुझे क्या पता था कि आप इतनी कायदे से पढेंगे। चलिये लेखक नहीं ब्लॉगर, खुश? हुँह!) ब्लॉगर को ,जो खुद कभी अमेरिका नहीं गया है, ये अभी तक पता नहीं है कि हिंदी अखबार अमरीका में आते हैं कि नहीं और जब मुझे ही नहीं पता है तो मीरा को कैसे पता होगा। आपको पता हो तो जरूर बतायें। हिंदी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय रहेगा।
जाते जाते: रिसेशन के नाम पर नौकरी से निकाले गये सारे लोगों की कहानी ऎसी हैप्पी इंडिग वाली नहीं होतीं। बैठे बिठाये जाने क्या क्या छिन जाता है- नाम, रुतबा, सपने, ज़िंदगी। कुछ चीजें नहीं छिनती और वो शाश्वत रहती हैं जैसे लिये गये लोन्स, क्रेडिट कार्ड की ई.एम.आई. और विदेश जाने और वहाँ बसे रहने की चाहत। कहानियों में भले कोई बौराया, बोर टाईप का ब्लॉगर (अपनी ही बात कर रहा हूँ साहेब, आप फ़िर दिल से ले बैठे) उन्हे किसी सरफ़िरे हंसीन मोड पर छोड आये लेकिन असलियत में ये कहानियां दु:खों, तकलीफ़ों की ऎसी ऎसी अँधेरी गुफ़ाओं से गुज़रती हैं जहाँ रोशनी तो दूर, साँस लेने के लिये ऑक्सीजन भी नहीं मिलती।
14 comments:
सब होने की संतुष्टि से कुछ न होने का भय, यात्रा दर्दभरी ही होती है।
सब कुछ ठीक होने और कुछ भी ठीक ना होने में एक पल का अंतर होता है .....कितने अपने गुज़रे है इसी हालात से
कहानी जानी पहचानी सी है.और अमेरिका में हिंदी अखबार आता तो है पर घर तक नहीं आता किसी मंदिर से लेकर आना पड़ता है :)
लेखक !..हाँ हाँ ब्लॉगर ..अब खुश ? हुह.
गज़ब का ताना बाना बुनते हो सांस लेने का भी मन नहीं करता.
हिंदी अखबार इंडियन ग्रोसरी स्टोर में फ्री में मिलता है :) और काहे इतनी भारी पोस्ट लिखते हो जी ? गनीमत है हैप्पी एंडिंग हुई :)
आज की सुबह इसी से हुई. खुशनसीबी कहिये. शिल्प और कथ्य की बुनावट बहुत सुंदर है. बधाई !
सबेरे-सबेरे पढ़ी थी चाय की चुस्की लेते हुये। सौ-दो सौ सांसें ली थीं पढ़ने के दौरान( एक सांस में पढ़ने वाले झूठ बोलते हैं। फ़ंसेगे लोकपाल बिल पास होने के बाद)। बाकी अब क्या कहें पोस्ट के बारे में- न सुबह है, न चाय की चुस्की और ....।
चलो अच्छा न हमारी न किसी और की। बीच का रास्ता निकालते हैं। मजेदार पोस्ट कहकर बात खतम करते हैं भाई! मस्त रहा जाये। :)
कहने का तरीका खूबसूरत है ....तुम्हारे लिखने में एक मेचुर टी आ रही है ..जो लगातार दिखती है ...सच कहूँ समझदार हो गए हो ...
आखिरी वाला हिस्सा न लिखते तो कसम से ओर किक देती ...
रोचक पोस्ट
एक सोफ्टवेयर इंजिनियर की पत्नी होकर इस पोस्ट को पढू तो सच में दर्द और घबराहट जैसा कुछ उछलता है दिल में ...और खुद एक लेखक नहीं नहीं ब्लॉगर होकर पढू तो लगता है पढने को कुछ अच्छा मिल गया आज सुबह सुबह .लहेरें सेयहाँ तक आना हुआ...और आकर अच्छा लगा
दीपावली की शुभकामनाएँ
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google ki nyi policy aa gyi hai tumhe shayd na pta ho..ghar gye the na tab hi ayi hai.."jo log 6 month tk blog update nhi krenge unka blog bnd kr diya jayega"foever:(
badhiya to nahi kahenge, o to hai hi.......
janm din ki subhkamnayen swikar ho..
sadar.
सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की १५० वीं पोस्ट पर पधारें और अब तक मेरी काव्य यात्रा पर अपनी राय दें, आभारी होऊंगा .
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