मुम्बई की बारिश कभी किसी को काम पर जाने से नहीं रोकती… ये या तो तब शुरु होती है जब आप सो रहे होते हो या तब जब आप ओफ़िस निकल चुके होते हो… इसलिये बारिश की छुट्टी लेने के ख्याल अकसर सूखे ही रह जाते है…
ओफ़िस से अभिषेक आज थोड़ी जल्दी निकल आया था। बाहर बारिश हो रही थी… अपने छाते से अपने को भीगने से बचाते बचाते वो उस रोड तक पहुँच चुका था जहाँ से उसे घर के लिये रिक लेना था… रिक दिखते ही वो उसे हाथ हिलाकर रोकने की कोशिश करता… पर काफ़ी टाईम से किसी रिक ने उसकी तरफ़ देखा तक नहीं था… इसी दौरान कभी कभार अपने छाते को हटाकर आसमान की तरफ़ देख लेता… ये बूँदें आखिर आती कहाँ से हैं … एक पल उसके और बादलों के बीच दूर दूर तक कुछ नही होता… फ़िर बूँदें न जाने कहाँ से अवतरित होती और धीरे धीरे बड़ी होती जातीं… फ़िर उन बूंदों का उसके चेहरे से ऎसे स्पर्श होता जैसे कोई बड़े प्यार से उसके चेहरे को हर तरफ़ से चूम रहा हो।
- आपको बोरीवली जाना है?
किसी मीठी सी आवाज़ ने उसकी एकान्तता मे दखल दिया था..
- क्या?
- आर यू गोइंग टु बोरीवली?
- या…
’क्यूं’ पूछने से पहले ही वो अगली लाईन बोल चुकी थी।
- आज रिक की काफ़ी शोर्टेज रहेगी सो अगर रिक मिलता है तो हम दोनो साथ जा सकते हैं…
उसने वो बात कहकर मुंह घुमा लिया… और आते हुए रिक्स को हाथ दिखाने लगी… अभिषेक फ़िर अपनी दुनिया में खो गया…कहीं मेरी शक्ल किसी और से नहीं मिलती न…?? न!, ये मेरे साथ तो नहीं हो सकता… ये मेरी किस्मत तो नहीं हो सकती कि हल्की हल्की बारिश हो… एक अन्जान लड़की हो… और वो भी एक रिक में जाने के लिये तैयार… नहीं नहीं … शी इज़ मिस्टेकिंग मी विथ समबडी…
- मै टाटा पॉवर से दूसरा रिक ले लूंगी। आप इसे लेकर निकल जाना…
दिखने में तो बहुत सामान्य है… आँखों पर स्पेक्स हैं और शरीर पर एक बहुत ही नोर्मल सा सलवार सूट… मुस्कराती है तो सारे दांत दिखते हैं… कम्बख्त दांत भी एकदम करीने से लगे हुये हैं… और मेरे…… जैसे जहाँ जिसको जगह मिली निकल लिया और जगह कब्जिया कर बैठ गया…
कहाँ पिछले आधे घंटे से उसे कोई रिक्शे वाले ने भाव नही दिया था और कहाँ उसे आये हुए अभी दो मिनट भी नही हुये थे कि अचानक ही एक टैक्सी अवतरित हुयी… पीछे वाली सीट पर एक आंटी अंकल पहले से बैठे हुये थे… ड्राईवर ने उसे आगे बैठने के लिये कहा। वो आगे बैठते हुये उससे बोली “कम ना? ही इज़ गोइंग तो टाटा पॉवर। वहाँ से रिक ले लेंगे…”
ये तो साफ़ साफ़ जाहिर था कि वो टैक्सी ’उसे’ लिफ़्ट देने के लिये नहीं रुकी थी… लेकिन वो तो बुला रही थी और वो भी इतने हक से… मना करना बनता भी नहीं था… वो मना करना चाहता भी नहीं था…
- कम ना? फ़ास्ट?
टैक्सी के आगे वाले पोर्शन मे आधी जगह ड्राईवर की थी और बाकी आधी जगह मे उसे, उस बन्दी के साथ एडजस्ट करना था… बीच बीच मे टैक्सी का रोटेटिंग गियर भी कभी कभी एक दो राउंड मार जाता था। वो खिड़की से चिपककर उसी मे सिमट गया था और उसकी एक बांह लड़की के पीछे से होते हुए ड्राईवर से कुछ पहले तक जाती थी… सबलोग टैक्सी मे बैठ चुके थे… टैक्सी के इंजिन की आवाज के साथ साथ उस टैक्सी मे मौन का एक निर्वात बन चुका था। सब उसी मे तैर रहे थे…चुपचाप… । अपनी खिड़की से चिपका हुआ अभिषेक बाहर एकटक देख रहा था और अपने ही मौन मे उस लड़की से पूछने के लिये सवालों की रूपरेखा तैयार कर रहा था… सवाल सोंच रहा था… उन्हें जरूरत के मुताबिक फ़िल्टर कर रहा था… वो उस एंजेल को जानना चाहता था जिसने एक पल को ही सही पर उस बरसती बारिश में उसकी धूल भरी किस्मत से धूल की एक पर्त झाड़ी थी…
अचानक ही उसे इस मौन से घुटन होने लगी…
- यू वर्क इन निर्लोन काम्प्लेक्स?
- यप, आई एम वर्किग विथ डायचे बैक
- ओह्ह… डायचे बैक… टेक्निकल ओर फंक्शनल साईड?
- फंक्शनल बेसिकली
- ह्म्म… ……अच्छा डोंट यू थिंक बॉम्बे की बारिश भागते हुये बॉम्बे को थोड़ा स्लो कर देती है…?
- तुम मुम्बई से नहीं हो??… ……फ़िर कहाँ से हो?
- लखीमपुर…
- क्या?
- लखनऊ के पास है… तुम कहाँ से हो?
- बोर्न एंड ब्रोट अप इन बॉम्बे… वैसे हम लोग राजस्थान को बिलोंग करते हैं…
- ह्म्म… मतलब ये बारिश तुम्हारे लिये नयी नहीं है?
- (मुस्कुराते हुये) यहाँ फ़ेमिली के साथ रहते हो?
- नहीं…… रूममेट्स के साथ
ये सवाल थोड़ा डायरेक्ट नहीं था… बंदियां कितना कुछ तो डायरेक्ट पूछ लेती हैं… लगती तो बैचलर है लेकिन सेल बार बार देख रही है जैसे कोई इंतज़ार कर रहा हो… माईट भी मैरिड… माईट भी बोयफ़्रेन्ड… हू नोज़?… कहीं वो ये तो नहीं चाहती कि मैं उससे उसका नंबर मागूँ…
- अभिषेक हीयर
- तिथी…
- तिथी, तुम न होती तो शायद मैं अभी भी वहीं रिक का वेट कर रहा होता…
- अभी नहीं कर रहे हो न? (अपनी करीने से लगी बत्तीसी दिखाते हुये)
यूं तो अभिषेक खिड़की से बाहर देख रहा था लेकिन पलटकर उसको मनभर कर देखना चाहता था… उस कन्जस्टेड जगह मे कभी कभी अभिषेक तिथी को छू जाता तो कभी कभी तिथी की गर्दन अभिषेक की बांह पर जैसे रह जाती … उस बरसती बारिश मे कितना कुछ तो उनके भीतर बरस जाता फ़िर भी दोनो सहज बने रहते। वो टैक्सी की सामने वाली विंडो से एकटक सामने देखती रहती तो वो साईड वाली विंडो से… कभी कभी वो सामने वाली विंडो से बाहर देखने की कोशिश भी करता…
- तुम बोरीवली मे कहाँ रहते हो?
- नेशनल पार्क
- नेशनल पार्क में ? (अपनी ट्रेडमार्क बत्तीसी दिखाते हुये)
- आई मीन नेशनल पार्क के पास… …और तुम?
- मुझे वेस्ट जाना है…
टाटा पॉवर आ चुका था। बारिश अभी भी हो रही थी। लोग वहाँ रिक्स के इंतज़ार में खड़े थे। वो दोनो टैक्सी से उतरे ही थे और उन सारे लोगों की किस्मत को दरकिनार करते हुये उसकी ख़िदमत में एक रिक हाजिर हो चुका था…
- मैं घर तक ड्राप कर दूं… वहाँ से रिक लेकर मैं अपने घर निकल जाऊगा।… (ओफ़र थोड़ा अटपटा था)
- अरे! ……मैं इधर जा रही हूँ और तुम्हें उधर जाना है… यू नो एकदम अपोजिट…
- कम्बख्त टाटा पावर को भी इतनी जल्दी आना था… अच्छा… ………तुम न मिलती तो शायद मैं अभी भी वहीं रिक का वेट कर रहा होता…
उसकी ट्रेडमार्क बत्तीसी सामने आ चुकी थी… उसने एक पल अभिषेक को देखा फ़िर अगले पल उसके पीछे खड़े एक बन्दे को… उसकी भी शक्ल से ही लग रहा था कि कितनी देर से वो अपनी धूल भरी किस्मत के सहारे एक रिक के लिये खड़ा है…
- आपको वेस्ट जाना है? आर यू गोइंग टु बोरीवली वेस्ट?
- हाँ…
- मैं भी उधर ही जा रही हूँ… कम ना? वी कैन शेयर दिस रिक।
…… इधर अभिषेक फ़िर रिक के इंतज़ार में खड़ा था।