वो हमारी कम्पनी का फ़ेस है… कम्पनी का मेन गेट खोलिये और दीवार पर लगे कम्पनी के एक बड़े लोगो(Logo) के साथ साथ, कानों में हेडसेट लगाये हुये उसकी मुस्कुराहट आपका स्वागत करती है। हमारी कम्पनी की सारी इनकमिंग और आउटगोइंग कॉल्स भी बिना उसकी इजाजत के कहीं कनेक्ट नहीं होतीं…
अभी एक हफ़्ते पहले ही एक ईमेल ब्राडकास्ट आया कि उसके शौहर इस दुनिया में नही रहे… पढते ही जैसे सब कुछ एक पल के लिये रुका था और फ़िर से उसी स्पीड से चलने लगा था। जो भी हुआ था उसकी गवाही देने के लिये फ़्रीज हुआ सिर्फ़ वो एक पल था जो इन दो-तीन दिन में आये असंख्य पलों में खो गया था। बस इतना ही हुआ था…
परसों से वो फ़िर से हमारा फ़ेस बन गयी है। मुस्कराहट शायद थोड़ी फ़ीकी है पर सारी कॉल्स वैसे ही कनेक्ट होती हैं।
दो दिन से मैं न उससे कुछ कह पाया था और न कुछ पूछ पाया था। सिर्फ़ ’सो सैड’ कहना मुझे आया नहीं और उन दो दिनों में जब भी अपनी निगाहें मिलीं मेरा सर एक आटोमैटिक मशीन की मानिंद नीचे झुक गया… बोलने को कुछ ढूंढा तो साले शब्द भी सर झुकाये कहीं कोने में घुसे मिले…
आज सुबह जल्दी ही ऑफिस चला गया था। अपनी फिंगर, ’स्वाईप मशीन’ में स्वाईप करने के बाद जैसे ही दरवाजा खोला वो सामने थी… निगाहें मिलीं… उसने ’हैलो’ बोला… मैने उसका हाल चाल पूछा…
उससे पता चला कि उसके पति को काफ़ी पहले से कैंसर था और उसके सास-ससुर मेडिकल ट्रीटमेन्ट को छोड़कर ब्लैक मैजिक में ज्यादा विश्वास रखते थे। इसके जबरदस्ती करने पर ऑपरेशन तो करवाया गया लेकिन बाद में कीमोथेरेपी में लापरवाही दिखायी जाने लगी और ओझाओं -तांत्रिकों पर ज्यादा विश्वास किया जाने लगा। उसकी हालत दिन पर दिन बिगड़ने लगी थी और वो ये सब देख पाने में असमर्थ थी। अपनी आँखों के सामने अपने ही शौहर को तिल तिल मरते देखना बहुत ही मुश्किल था। इनफ़ेक्शन दिमाग तक फ़ैल रहा था। वो सबसे लड़ -झगड़ कर फ़िर से उसे लेकर किसी बड़े न्यूरोसर्जन के पास गयी। न्यूरोसर्जन ने देखते ही हालात का अंदाज़ा कर लिया था:
- …… Go back to your Cancer Doctor
- OK…… any idea how much time he has now?
- To be honest, 4-5 months.
ये कहते कहते उसकी पलकें गीली हो चुकी थीं और आँखें एकदम लाल।
- पता है पंकज, मैं उसे घुट घुट कर मरता नहीं देख सकती थी। वो घर मुझे काटने लगा था इसलिये मैं अपने मम्मी-पापा के पास चली आयी और बेबी को भी ले आयी। हर वीकेंड उससे मिलने जाती थी तो सास-ससुर मुझे खूब सुनाते थे लेकिन तब भी जाती थी… बेबी को भी ले जाती थी…कि तीनो इन लास्ट मूमेन्ट्स में थोड़ा साथ रह लेंगे … शायद उसे अच्छा लगेगा… पर एक दिन मेरी सास ने बोला कि ’तू निकाहनामे के लिये आती है न? जा नहीं देंगे तेरा निकाहनामा… हराम की औलाद कहलायेगा न? हराम की औलाद है तो कहलाना ही चाहिये!!…’
उसकी गीली और लाल आँखों पर लगा स्पेक्स भी लाल होता जा रहा था… वो अपने दुपट्टे के किनारे से आंसू पोंछती जा रही थी और उसी बीच कॉल्स भी आ रहे थे और इंटरव्यू देने के लिये लोग भी… कम्बख्त कुछ भी नही थमता था…
- पता है वो हमेशा अज़ान के वक्त प्रेयर करना चाहता था लेकिन हम कभी इतनी सवेरे उठ नही पाते थे। मैने २-३ वीक्स से उसके घर जाना छोड़ दिया था। क्या कर सकती थी? उसे ऎसे मरते हुये नहीं देखा जाता था… पता है मैं उसे मिस नहीं करती इवेन मुझे खुशी होती है कि वो चला गया। वो बहुत तकलीफ़ में था… और मैं चाहती थी कि उसे कोई तकलीफ़ न हो…
- पता है सुबह की अज़ान के वक्त ही…… शायद, वो जाते जाते प्रेयर कर पाया……
कॉल्स अभी भी आ रहे थे और इंटरव्यू के लिये लोगों की भीड़ भी बढती जा रही थी… मै उससे ’बाय’ करके अपने क्यूबिकल की ओर बढ रहा था और पीछे इंटरव्यू के लिये आये लोगों को नियंत्रित करती, उसकी आवाज़ आ रही थी:
- Kindly take your seats. HR people will be coming in a while…
सच में वो लड़की नहीं पहाड़ है…
*नानावती हॉस्पिटल ओपीडी मे लिखी
26 comments:
वाकई..हिम्मत को दाद देनी होगी..सुना था जिन्दगी खुद से समझौता करना सिखा देती है..आपको पढ़कर लगा जैसे कि देख भी लिया.
...मर्मस्पर्शी रचना !
behad maarmik...zindagi me mushkilein aati hi rehti hain...par jo samhalna seekh gaya wo jeena seekh gaya
पहाड़ सा व्यक्तित्व सब सह लेता है । मार्मिक व हृदयस्पर्शी घटना ।
हमें भी सिर्फ "बढ़िया" कह पाना अभी तक नहीं आया है इसीलिए तुम्हारी कई पोस्ट को सिर्फ पढकर निकल लेते हैं..
Sach bole pankaj is post ko padh man bahut duki hua.....socha bina kuch kahe hi chale jaaye...Lekin sach bahut kaduva hota .....khyalo ki duniya se koi vasta nahi shayad....Haan! zindgi nahi rukti...Dekhna ab wo aur majboot ho jaayegi pahle se bhi zyada
मार्मिक......
सुना था ईश्वर जब दर्द देता है तो उसे सहन करने की शक्ति भी दे देता है... इस अनजान लड़की के बारे में पढ़ कर यकीन भी हो गया... सहानुभूति शायद ग़लत शब्द होगा... फ़क्र होता है ऐसे लोगों पे... और उनका पहाड़ जैसा व्यक्तित्व हमें भी बहुत कुछ सिखा जाता है... दुआ करते हैं वो और उसका बेबी इन मुश्किल हालातों से लड़कर और मज़बूत बन जाएँ.. और हमेशा ख़ुश रहें...
लड़कियाँ पहाड़ ही होती हैं...बिना उसके गुजर कहाँ इस दुनिया में... और क्या कहूँ?
क्या कहूँ मैं, समझ नहीं आ रहा...
ज़िन्दगी साली.. रूकती भी तो नहीं है..
लड़कियों को पहाड़ कह लो या चट्टान ..या बचपन से पत्थर खा खा कर इतनी मजबूत हो जाती है की उनसे दर्द को रिसने के लिए भी दरारे बनानी पड़ती है
वाकई बहुत दर्दीला बयान है। पता नहीं कहानी ही हो शायद। अच्छा है अगर कहानी ही हो और गुज़री न हो किसी पर - मगर ऐसी बे-बुनियाद ख़ाहिशों से क्या होता है - शायद सच हो? तब???
पंकज ऐसी रचनाएँ महीने में एक से ज़्यादा मत दिया करो भाई! ऐसी घटनाएँ तो ऊपर वाला ज़िन्दगी में एक भी न दे किसी को, यह दुआ है, मगर वो माने-न-माने, आप से तो इल्तिजा की जा सकती है…
:(
संकल्प की ईमेल से टिपण्णी:
Main kabhi kabhi ye soch leta hun ke tu agar nahin milta to .....
Shayad 'bahut kuch' se vanchit rah jata ...
Phir sochta hun ke main faaltoo ki baaten kyun sochta hun.... Fitoor kahin ke.... :-)
Luv
Sankalp
poignant !!penned up so nicely pankaj !
पढ़ते-पढ़ते मन दुखी हो गया।
समय के आरोह में जाने कितना कुछ टूटता जाता है.
पंकज, आपकी कविता और कहानी फिर ये संस्मरण पढ़ते हुए सोचता हूँ कि आप चाहे किसी भी प्रोफेशन में हों इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता, पानी खुद अपनी राह बना लेता है. बहुत अच्छा लिख रहे हैं शुभकामनाएं.
दुख को झेलने के अपने अपने तरीके हैं.....कोई अपने प्रिय का कष्ट नहीं देख पाता और दूर चला जाता है और कोई सबकुछ छोड़कर उसके पास चला आता है....दोनों ही स्थितियों में दुख का सैलाब ह्रदय को चट्टान बना देता है, आनेवाले झंझावातों को झेलने की खातिर.
बहुत ही संवेदनशील पोस्ट..
मन दुखी हो गया ... क्या कहें.. :(
सच में वो लड़की नहीं पहाड़ ही है........या फिर सागर का कोई गर्त.....जो सब कुछ समो ले !!!!!
आप जिससे प्यार करते हैं उसकी तकलीफ नहीं देख सकते.. ये भी सच है पंकज.. कभी-कभी मन करता है बुद्ध का सुझाया मार्ग अपनाने को.. पर................
आप लिखते अच्छा हैं, आपक सम्प्रेषण अच्छा है, शब्दों के जादूगर हैं और न जाने कितनी तारीफें यहाँ पर की गयी है, कुछ sms और काल्स भी आये होंगे तारीफों के... मैं इन सब बातों से पहले एक बात कहना चाहता हूँ.
इन सब से पहले आप एक अच्छे observer हैं observe करना और फिर उसे वाक्यों में ढालना आपकी खासियत है.
but मैं थोडा confuse हूँ की एक अच्छा observer एक अच्छा scientist बन सकता है... लेकिन आप तो अच्छे writer हैं... मेरा confusion थोडा दूर करेंगे..... please
मनोज K
साथियो, आभार !!
आप अब लोक के स्वर हमज़बान[http://hamzabaan.feedcluster.com/] के /की सदस्य हो चुके/चुकी हैं.आप अपने ब्लॉग में इसका लिंक जोड़ कर सहयोग करें और ताज़े पोस्ट की झलक भी पायें.आप एम्बेड इन माय साईट आप्शन में जाकर ऐसा कर सकते/सकती हैं.हमें ख़ुशी होगी.
स्नेहिल
आपका
शहरोज़
:(
santapt man kya kahe?
dil ko touch kar lene wali ek post , aabhar aapka .
Post a Comment