- ६० रूपीज फ़ोर अ वाटर बोट्ल? आप लोग एक्वागार्ड यूज करते है न अपने रेस्तरां में?
- यस सर…
- गुड, देन ब्रिंग प्लेन वाटर प्लीज़…
- तुम्हे प्लेन वाटर चलेगा न?
- या या… श्योर……
दोनो की वो पहली मुलाकात थी… दोनो को एक दूसरे के बायोडेटा में लिखा नाम बड़े सलीके से याद था…
प्रिया और गणेश…
कल रात ही प्रिया को उसकी माँ ने गणेश के नये ईमेल के बारे में बताया था… कुछ रोज पहले ही गणेश ने शादी डोट कॉम पर प्रिया को रिक्वेस्ट भेजी थी… पूरे परिवार की सोंचा विचारी के बाद इक मुलाकात फ़िक्स की गयी थी… पहली मुलाकात। गणेश एक आईआईएम पासआउट होने के साथ साथ एक आन्त्रेप्रेन्योर भी था और इसी साल उसकी कम्पनी को टाप २५ स्टार्ट अप्स मे नोमिनेट किया गया था… कुल मिलाकर ’एक शादीलायक मटीरियल’ था… थोडा अच्छे शब्दो मे कहे तो ’एन एलिजिबल बैचलर’…
प्रिया ने उसकी एक छवि बनाकर रखी थी… एक स्नोबी पुरुष जो हर बात पर अपनी ही करेगा… कहेगा कि ये ऎसे किया करो ये वैसे… वो कह देगी कि उसे कोई ऎसा वैसा न समझे… वो एक सॉफ्टवेयर इन्जीनियर है और अपने पैरो पर खड़ी है। तीन साल से नोयडा मे इन्डिपेन्डेन्टली रह रही है। …… उसने कुछ भी स्नोब्री दिखायी तो साफ़ साफ़ मना कर देगी।
लेकिन कभी कभी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा फ़ैसला लेने के लिये किसी की कही एक लाईन ही काफ़ी होती है और कभी कभी कहे गये लम्बे से लम्बे पैराग्राफ़्स भी टस से मस नही कर पाते…
गणेश ने उस वक्त ऎसी ही एक लाईन कह दी थी… उस अमेरिकन रेस्तरां में, स्नोब्री और शो-ओफ़ मछली मार्केट की बू जैसा हवा मे फ़ैला हुआ था और गणेश ने उस हवा को दरकिनार करते हुये कितनी सादगी से प्लेन वाटर के लिये कहा था…। प्रिया ने अपने माता-पिता को मन ही मन धन्यवाद कहा और अपनी उसी किस्मत पर बहुत नाज़ किया जिससे वो कुछ दिन पहले एक लव मैरिज चाहती थी… लव मैरिज… उससे… जो कभी उसके प्यार के लायक ही नही था…
वो अपने इन्ही विचारों में पर्त दर पर्त डूबती जा रही थी और उस टेबल पर वो दोनो पर्त दर पर्त खुलते जा रहे थे। उनकी बातों से बातें निकल रहीं थीं और निकली हुयी बातों से फ़िर ढेर सारी बातें… एक ही बात को सोंचते हुये दोनो की आँखों में अलग अलग आकृतियाँ बनती थीं वैसे ही जैसे बादल, आकाश में मोर्ड्न आर्ट बनाते रहते हैं… और हर देखने वाले को उनमें कुछ अलग ही दिखता है। उस अमेरिकन रेस्तरां मे दो बादल साथ मिलकर ऎसी ही कुछ तस्वीरें बना रहे थे……
- आई एम डन। तुम्हे कुछ और चाहिये?
उसने गर्दन हिलाकर ’ना’ कहा और वापस टेबल की ओर देखते हुये अपनी उन्ही आकृतियाँ में खो गयी।
- प्रिया…………?
- ………हाँ? (आँखें टेबल को छोड़ गणेश की आँखों को देखने लगीं)
- बिफ़ोर गोइंग अहेड, मैं तुम्हे एक बात बताना चाहता हूँ…
- हाँ … कहो……
- ……मुझे अर्थराईटिस है। …………मैं ज़िन्दगी के इस मोड़ पर जहाँ मुझे किसी के साथ जुड़ना है, इस सच्चाई से मुंह नहीं घुमा सकता और मुझे लगता है कि मेरे जीवन में आने वाली को, ये सब पहले से पता होना चाहिये।
प्रिया के लिये आसपास का शोर म्यूट हो गया था… दिमाग और दिल आपस मे किसी मुद्दे पर बात करना चाहते थे…
- …………गणेश! ………………… ऎसी बातें मेरे लिये मायने नहीं रखतीं …। अगर इन्सान तुम्हारे जैसा सुलझा हुआ और इतना समझदार है तो ये सब बातें बेमानी है। (उसका दिमाग और दिल अभी भी बातें करना चाह रहे थे)
- ह्म्म… तुम्हे ये बात अपने परिवार को भी बता देनी चाहिये जिससे कोई भी किसी कन्फ़्यूजन मे न रहे…
- ह्म्म…
- चलो तुम्हे घर ड्राप कर दूँ…
- ह्म्म…
पूरे सफ़र प्रिया ख्यालों के एक जाले में उलझी हुयी थी।
ये उसकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा निर्णय है आखिर शादी-विवाह रोज़ थोड़े ही होते हैं… लेकिन गणेश कितना सुलझा हुआ है… ज़िन्दगी नर्क बन जायेगी… उसका साथ रहा तो नर्क को भी स्वर्ग बना लेंगे… काश वो लड़का भागता नहीं … अच्छा हुआ जो सच्चाई बाहर आ गयी… लव मैरिज… गणेश… आप लोग एक्वागार्ड यूज करते है न अपने रेस्तरां में ?… प्लेन वाटर… अर्थराईटिस…
- तुम्हारा घर आ गया…
- ओह, हाँ … (कार से उतरते हुये)
- इट वाज़ अ नाईस इवनिग विद यू
- सेम हियर… …गुड नाईट…
- गुड नाईट…
वो मंजर अधूरा था, अधूरा ही रहा… गणेश की कार आगे बढ़ गयी… प्रिया ने उसे थोड़ी देर जाते हुये देखा फ़िर घर के अन्दर चली गयी। अधूरा मंजर एक अधूरी रात के साथ उस जगह कई सालों तक पड़ा रहा…
प्रिया आजकल यूएसए में है… उसके पति के पास ग्रीन कार्ड है… कुछ दिन में उसे भी मिल जायेगा… उसकी झोली में ढेर सारी खुशियाँ हैं लेकिन उसकी ज़िंदगी अभी भी कुछ अधूरी सी है… अभी भी वो फ़ेसबुक पर गणेश की पब्लिक अपडेट्स देखा करती है… फ़्रेन्ड रिक्वेस्ट आजतक नहीं भेज पायी… फ़ेसबुक प्रोफ़ाईल पर गणेश का मेराईटल स्टेट्स (marital status) ’मैरिड’ है…
गणेश की शादी तो हो गयी है लेकिन क्या वो खुश है? क्या वो अभी भी प्रिया को याद करता है?… काश फ़ेसबुक ये भी बता सकता!
और अक्सर ही ये सब सोंचते हुये प्रिया अपने मेलबाक्स में ’गणेश’ नाम से सर्च मारती रहती है और एक लम्बी साँस लेते हुये यही सोचती है कि उस आखिरी ईमेल का जवाब आजतक नहीं आया………
और वो अधूरा मंजर इतने सालों बाद भी उसी जगह अधूरा ही पड़ा है।