Sunday, November 1, 2009

मै और मेरी डल ज़िन्दगी!!

 

Lonely

वो पल
जो तुमने मुझसे
उधार मागे थे..
तुम्हारा बटुआ
घर रह गया था शायद
और तुम्हे घर वापस भी जाना था... 


मेरी ज़िन्दगी भी तुम्हारे
पास ही रह गयी है..
उस दिन तुम्हे पहनने को दी थी..
उस काफ़ी हाउस का एसी कुछ 
ज्यादा ही ठन्डा था न?

 

तब से ये मागी हुयी
ज़िन्दगी पहन रहा हू
न जाने कबसे धोयी भी नही है………
समय भी नही मिलता……, आजकल
काम भी बढ गया है……
और बाम्बे मे उतनी ठन्ड भी नही पडती…

 

सच कहू………..
तो नयी लेने की हिम्मत नही रही
आजकल गारन्टी भी तो नही रहती
और मेरी फ़िटिग की मिलनी भी
बहुत मुश्किल है……

 

कभी इधर आना हो तो
लेती आना……
अगर तुम्हारी विदेशी परफ़्यूम ने
उसे खुशबुओ से ना भर दिया हो तो…..
तुम्हे तो पता है ना कि मुझपर वो
डल (dull) और सादी ज़िन्दगी कितनी सूट करती है……

लोग कहते थे कि मै उसमे अच्छा दिखता था॥……..

23 comments:

Rishu said...

khoobsurat ehsas hain dost...
Aapki zindagi ne jaane kyu atit me pahucha diya...very nice blog.

Keep sharing!!:)

Puja Upadhyay said...

k purani jacket yaad aa gayi, jo kisi ke paas rah gayi hai...
pyaara likha hai.

रंजू भाटिया said...

काश यह सब इतना आसान होता ..पुराना वापस लौटना और उसको ओढ़ना :) बहुत कुछ याद आ जाता है इसको पढ़ते हुए ..शायद एक बार हर कोई इस राह से गुजरता जरुर है ..लिखते रहे ...

Gyan Dutt Pandey said...

उधार देने की सोच ही दुख का कारण है - जो दे दी, उसे वापस लेने का मन में न रहे तो ही सुख आयेगा।

अपने आस पास तलाशें - और बेहतर डल और बेहतर फिटिंग जिन्दगी जरूर मिलेगी। सब प्रकार की जिन्दगी मिलती है।

Urmi said...

पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए! मेरे इस ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ही सुंदर और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!

Arvind Mishra said...

आधुनिक बोध और आदिम अहसास की कविता !

रश्मि प्रभा... said...

प्यार यूँ हीं साथ चलता है,उसीमें सौन्दर्य निखरता है, उसीमें अपनी सजीवता बनी रहती है.........
बहुत ही अच्छी रचना.......प्यार में लिपटी

रश्मि प्रभा... said...
This comment has been removed by a blog administrator.
रश्मि प्रभा... said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Asha Joglekar said...

कमाल की अभिव्यक्ती है । सादी सी जिंदगी हरेक पर फबती है । सुंदर रचना के लिये आभार ।

डॉ .अनुराग said...

गजब है ......अपुन की माफिक गुलज़ार के फैन लगते हो ...सारी झकास है .खास तौर से
"और बाम्बे मे उतनी ठन्ड भी नही पडती…" वाली

TRIPURARI said...

बहुत खूब...

बेईमान शायर said...

लोग कहते थे कि मै उसमे अच्छा दिखता था॥……..

awe..ye aaakhiri line.....AWESOME..low on words to appreciate dis..

डिम्पल मल्होत्रा said...

bahut si post aj apki ik sath or pahli baaar padhi..bahut kuch miss kiya hua tha abhi tak maine..thanx 4 sharing....

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@Dimpal

धन्यवाद, मेरी तीन नज़्मे एक ही दिन मे झेलने के लिये :P ..
I know how difficult it would have been!! :) Glad you liked it...

संजय भास्‍कर said...

कमाल की अभिव्यक्ती है । सादी सी जिंदगी हरेक पर फबती है । सुंदर रचना के लिये आभार ।

richa said...

hmm... another gr8 piece... गुलज़ार साब की ख़ुशबू आई... पढ़ के ही लगता है आप भी उनके फैन हैं... :)

अनूप शुक्ल said...

मजेदार है। लोग यहां तक बांचने लगे।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

तुम्हे तो पता है ना कि मुझपर वो
डल (dull) और सादी ज़िन्दगी कितनी सूट करती है……
--वाह!
'अपूर्व' के ब्लॉग में आपका कमेंट पढ़कर यहाँ आ गया। खुशी हुई ।

दर्पण साह said...

ह्म्म्म...
आपके कमेन्ट कई जगह देख रहा हूँ, बेहतरीन होते हैं, आज अपूर्व से आपकी ये कविता पढने आया. फ़िर पता चला ये तो पहले ही पढ़ रखी है. कमेन्ट करने में मैं फिसड्डी हूँ. पर यकिन करिए आपके कमेन्ट (मेरी ही कविता पर नहीं हर जगह) पढ़ के अच्छा लगता है.

"तुम्हे तो पता है ना कि मुझपर वो
डल (dull) और सादी ज़िन्दगी कितनी सूट करती है…… लोग कहते थे कि मै उसमे अच्छा दिखता था॥"


आपको भी वो लिंक गिफ्ट करता हूँ जो अपूर्व को किया था...
:)

http://www.youtube.com/watch?v=vjmrmtHp4lM

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

दर्पण:
कोई बात नही.. तुम्हे पढना हमेशा एक ट्रीट होता है.. मै तुम्हे तब तक पढता रहूगा जब तक तुम ये ट्रीट देते रहोगे.. :) वीडियो बडा प्यारा है -

"Gotta change my answering machine
Now that I'm alone
Cause right now it says that we
Can't come to the phone"

woww... Thanks man!!

अपूर्व said...

शुक्र है कि कम-स-कम आपके लिंक के बहाने सही इस नज़्म तक तो पहुंचा..वगरना पहुँचता तो जरूर मगर थोड़ा सा वक्त लग जाता...और फिर मुट्ठी से फ़िसलती जिंदगी..
नज़्म के बारे मे क्या कहूँ बस अपने उजबक अल्फ़ाज मे कहूँ तो यूँ लगा गोया पूरी नज़्म गुलाब की बेहद नाजुक मगर मुरझाई सी कलम से किसी खुरदरे वर्क पर लिखी गयी हो और यूँ कि आखिर तक पहुँचने तक उस कलम का कोमल बदन बुरी तरह छिल गया हो..

तुम्हे तो पता है ना कि मुझपर वो
डल (dull) और सादी ज़िन्दगी कितनी सूट करती है…… लोग कहते थे कि मै उसमे अच्छा दिखता था॥……..

और यह लाइने कुछ और खास लगीं
और मेरी फ़िटिग की मिलनी भी
बहुत मुश्किल है……
जमाने के दस्तूर से अलग फ़िटिंग की जिंदगी पहनना आउट-ऑव-फ़ैशन नही वरन बियांड-दि-लिमिट्स-ऑव-यूजुअल्स जैसा कुछ लगता है मुझे..
इसी बिना पर दर्पण की दो नज़्में रिकमंड करूंगा आपको..संदूक और उधारखाता.. ’प्राची के पार’ पर
इतनी ही दिलफ़िगार फ़ीलिंग्स संजोये हुए..

anupama said...

Bahut hi sundar hai Pankaj :)