कुछ दुआये
मै एक गुल्लक मे
रखता था..
चन्द कौडिया थी,
रहमतो मे लिपटी हुयी..
बुजुर्गो ने बरकते दी थी..
उस बूढे फ़कीर ने,
जब सर पे हाथ रखा,
दुआ दी कि एक अच्छे इन्सा
बने रहना…
वो सारी कौडिया मै
उसके कासे मे डाल आया…..
आज…
आज मै वो गुल्लक फ़ोड आया…….॥
18 comments:
bahut sunder kavita..... man ko choo gayi.....
bahut achhi kavita..chhoo gai dil ko!! sadhuvad
kabhi mere blog par bhi aayen.. swagat hai..!!
bahut achhi kavita..chhoo gai dil ko!! sadhuvad
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bahut achhii kavita!! badhai!! kabhi mere blog par bhi aayen!!http://dankiya.blogspot.com/
बहुत ही गहरी और भावपूर्ण!!
गुल्लक फोड़ कर आपने एक नेक काम किया है...इसलिए बधाई...
बहुत ही बढ़िया....यह गुल्लक बहुत अच्छी है
sach kaha jameer ab utna pavitr nahi raha......
बहुत बढ़िया ..गहरे भावों से सजी है आपकी यह रचना शुक्रिया
thank you for this! its always pleasure visiting your blogs! Kamaal hae aap :) Hugs!
सच्चा सौदा कर लिया मित्र आपने!
classyy!!!! bahut acche upadhyayji!!!
कांसा शब्द पढ़कर राहत इंदौरी का यह शेर याद आ गया:
वो खरीदना चाहता था कांसा मेरा
मैं उसके ताज की कीमत लगाकर लौट आया।
उस बूढे फ़कीर ने,
जब सर पे हाथ रखा,
दुआ दी कि एक अच्छे इन्सा
बने रहना…
वो सारी कौडिया मै
उसके कासे मे डाल आया….
wonderful!
वाह! ये तो बांच चुके थे।
b'ful thought...
गुल्लक है या दुआओं का ख़ज़ाना... ऐसी एक गुल्लक तोड़ोगे तो हज़ार भर जायेंगी :)
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