कई  बार  यूँ  भी  होता  है  कि  ज़िन्दगी  कि  राह  पर  चंद  मुस्कुराहटें  पड़ी  मिल  जाती  हैं... कुछ  कुछ  उस  ५ रूपये के  सिक्के  कि  तरह  जो  मुझको कभी कभी  मोर्निंग ट्यूशंस  के  वक़्त  मिल  जाता  था  और  फिर  सुबह  सुबह  ही  उससे  जलेबियाँ  खायी  जाती  थीं...   
उस सिक्के ने मंगलवार के मेरे काफी व्रत भी तुडवाये हैं…
इन मुस्कुराहटो के लिये कभी कभी बस सर उठाकर अपने आस पास के लोगों को देखने भर की जरूरत होती है.. कभी कभी कुछ बातें करना भी जरूरी होता है.. ऐसे ही चंद मुलाकातें मैंने यहाँ सजाई हैं -
सब्जी वाली आंटी
अकेले लड़के होने के सुख कम होते हैं और दुःख ज्यादा जैसे आप खाना नहीं बना पाते और अपने कपडे तक खुद नहीं धो पाते.. रुमाल और मोज़े तो तब तक चलते हैं, जब तक आपकी आत्मा न बोल दे की बस भाई अब तो रहने दे..
मैं आजकल इन सो कॉल्ड सुखों से ऊपर उठने की कोशिश कर रहा हूँ... आर्गेनाईज़ और इन्डिपेन्डेन्ट बनने का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है.. आजकल डिनर खुद से ही बनाने की कोशिश करता हूँ.. और अपने जले हुए खाने को भी 'वाह वाह' करते हुए खाता हूँ :)
   
हाँ  तो  एक  दिन  चोखा  खाने  का  मन  था.. ऑफिस  से  आते  हुए  हम  सब्जी  वाली  आंटी  के  पास  पहुंचे  और  देखा  तो  वहां  टमाटर  का  नामोनिशान  नहीं.. ये  मेरे  साथ  होना  बहुत  ही  आम  बात  है.. मेरी  ख्वाहिशें  छोटी  हो  या  बड़ी, कभी  आसानी  से  पूरी  नहीं  होतीं..
   
- कुछ  और  ले  लो  
- नहीं, रहने  दीजिये.. आज  चोखा  खाने  का  मन   था  और  टमाटर   ही  नहीं  है  :(       
- वो  आज  जल्दी  ख़त्म  हो  गए  
- हम्म… लेकिन  आज  बड़ा  मूड  था… चलिए  कोई  बात  नहीं ।       
(उन्होंने  मराठी  में  अंकल को कुछ  बोला  और  किसी  बात  को  लेकर  दोनों में कुछ चर्चा हुई फिर  उन्होंने  अपना  पर्सनल  थैला  खोला  और  उससे  एक  टमाटर  निकाला)
- २  ही  टमाटर  बचे  थे, मैंने  आज  रात  के  खाने  के  लिए  रख  लिए  थे.. एक  आप  ले  लो.. वैसे  भी  एक  से  काम  हो  जायेगा..      
- नहीं, नहीं.. आप अपने टमाटर रखिये.. मैं कल ले लूँगा..       
- अरे   ले  लो.. इसका पैसा भी मत  देना  :)       
- नही, बिल्कुल नही… आपको पूरा नहीं  होगा.. (मेरी बात काटते हुए)        
- बैग लाये  हो… रुको, (पोलिबैग  में  एक   टमाटर  रख  दिया  उन्होंने… )
     
फिर  मैंने  उनसे  बाकी  सारी  सब्जी  ली..     
वो  सिर्फ  एक   टमाटर  नहीं  था.. वो  उन  'दो' टमाटरों  में  से  एक  टमाटर  था  जो  उन्होंने  खुद  के  खाने  के  लिए  बचाया  था..
   
मैं  अगर  ज़िन्दगी  भर  भी  वहां  से  सब्जियां  लेता  रहूँ  तब  भी  उसका   मोल  नहीं   चुका  सकता॥
   
बाबु  साहिब
अपना बनाया खाना खाने का एक दर्द भी है.. आप गलती से ज्यादा बना लेते हैं और फिर 'बर्बाद न हो जाए' के डर से सब खा जाते हैं… और फिर वो होता है जिसकी कल्पना मात्र से भी डर लगता है… ये पापी और जालिम पेट अपना अस्तित्व दिखाना शुरू कर देता है…
   
आजकल  जिम नहीं  जा  पाता… योग  भी  धीरे  धीरे  'रेगुलरली  इरेगुलर' होता  जा  रहा  है.. लास्ट  टाइम  बाबु  सी  मिश्रा  के  ब्लॉग  पर  ही  कपालभाती  की  थी :P  तो  पेट  का  निकलना  स्वाभाविक  है  इसलिए  आजकल  अपनी  हेल्थ  कांशस आत्मा  को  ब्रेकफास्ट  के  नाम  पर  कुछ  फल  खिलाकर  चुप  करवा  देता  हूँ…
   
एक  फल  वाले  बाबा  से  रोज  सेब  या  केले  खरीदता  था… कभी  पर्सनल बात  नहीं  होती  थी… बस  वो  बोलते  थे  की  आज  अनार  खाइए  तो  अनार  खा  लिए… आज  अंगूर  अच्छे  लाया  हूँ, तो  अंगूर  ले  आया… 
एक दिन:
   
- आप  क्या  करते  हैं  साहिब?      
- कंप्यूटर  इंजिनियर  हूँ  (सॉफ्टवेयर  इंजिनियर  बोलना  सवाल  जवाब  को  और  बढ़ाना  होता)        
- अच्छा… हमारे  लड़के  भी  CA हैं      
- अरे   वाह  (मैंने  एक  ब्रोड  स्माइल  के   साथ  उन्हें  पूरा  अटेंशन दिया)        
- बनारस  के  रहने  वाले  हैं  हम  लोग, बहुत  पहले  हम  हियाँ  आये  थे.. पहले  रिक्शा  चलाते  थे, उसके बाद ये फ़ल बेचने का काम शुरु किये…   
- अच्छा, और  आपके  बच्चे  आपसे  कुछ  नहीं  कहते?       
- गुस्सा  करते  हैं  ऊ  सब, कहते  हैं  की  काहे  जाते  हो.. हम  लोग  क्या  कम  कमा  रहे  हैं... लेकिन, हम  भी  बोल  देते  हैं  की  भाई उम्र  भर  हम  यही  सब  किये  हैं, अब  आखिरी  वक़्त  कैसे  बदल  जायेंगे...       
- बात  सही  है!       
- इसलिए  जब  बच्चों  के  दोस्त  या  जानने  वाले  आते  हैं  तो  हम  उनसे  नहीं  मिलते  और  हमारे  जानने  वालों  से  उन्हें  नहीं  मिलाते (उफ़्फ़्, ये बडे बडे शहरो की समझदारी )। हम  उनसे  बोल  देते  हैं  की  इसी  ठेले  से  तुम  लोग  बाबु  साहिब  बने  हो…      
- एकदम  सही.. हम  जितना  ऊपर  उठ  जाएँ  हमें  अपनी  मिट्टी को नहीं  भूलना  चाहिए॥       
- साहिब, हम  बैठ  जाते  हैं  तो  हमारी  चाय  और  बीडी  का  पैसा  निकल  आता  है... अब  ज़िन्दगी  भर  इसी  ठेले  से  उन्हें  बनाये  हैं  तो  आखिरी  वक़्त  अब  बीडी  के  लिए  भी  उनसे  पैसे  माँगना  अच्छा  नहीं  लगता… आप  आज  बेर  लीजिये… बम्बइया बेर  है…एकदम मीठे..
कभी कभी कुछ बातें आपको वो समझा देती हैं जिन्हें दूसरों को समझाने के लिए आपके पास बोल नहीं होते.. उस दिन कुछ ऐसी ही चीज़े समझी थी मैंने..
नालायक
दिसम्बर के आस पास मैं ज़िन्दगी के एक 'कम अच्छे दौर' से गुज़र रहा था… ख़राब दौर नहीं कहूँगा…
ज़िन्दगी हंग हो गयी थी… उस वक़्त इच्छाशक्ति ढूंढ रहा था… जो मेरे लिए ctrl alt del का काम करे.. लेकिन हंग स्टेट में कभी कभी टास्क मैनेजर भी हंग हो जाता है, तब इम्प्रोपर शट डाउन के अलावा कोई आप्शन नहीं बचता...
   
जब  भी  सोचने  बैठता  था  तो  सोंचता  था  की  क्या  सोंचूं… 
रात्रिचर होता जा रहा था.. और उसी वक़्त बतियाने के लिए याहू रूम्स की शरण ली.. एक बंदी मिली (नाम उसने आजतक नहीं बताया) जिसके फलसफे बड़े अजीब थे… कभी मुझसे हनुमान चालीसा सुनाने को बोलती तो कभी खुद भजन सुनाती… रात के तीसरे पहर ऑफिस से आने के बाद मैं उसे याहू पर हनुमान चालीसा सुनाता, 'द स्पीकिंग ट्री' पर कुछ बातें होती और उसके बाद सुबह सुबह 5:15 बजे मैं वाक के लिए चला जाता… मै उस आध्यात्म को याहू पर ए़क्स्प्लोर कर रहा था जो मै अपने उस छोटे से शहर मे छोड आया था…
बाहर सुबह की एक चाय होती, नेशनल पार्क के सामने वाले मन्दिर मे सुबह सुबह शिव दर्शन और फ़िर हमउम्र बुद्धों के साथ नेशनल पार्क के अंदर की एक सैर…
वहां एक dogy मिल गया था मुझे… उसका नाम मैंने रखा था 'नालायक'… जिनती गालियाँ मैंने उसे दी होंगी उतनी शायद ही किसी को… मै उसके कान पकड़ के उसे थप्पड़ मारता और मेरी इन सैडिस्टिक हरकतों के बावजूद वो मुझसे चिपक जाता और कभी 'पार्ले -जी' तो कभी 'टाइगर' बिस्किट्स खाता…
   
अभी सुबह की चाय कम ही हो पाती है, लेकिन आज भी वो जब भी मुझे बाहर पा जाता है… बस चढ जाता है मेरे ऊपर… कई बार तो मैं जान भी नहीं पाता और एकदम से मेरे पीठ पर कोई दो पैर रख देता है… पलटता हूँ तो वो आँखें चुराता है…
अब उसे कभी कभी 'गुड डे' भी खिला देता हूँ आखिर वो 'नालायक' मेरे कम अच्छे दिनों का साथी है… और कम अच्छे दिनों में नालायक दोस्त ही साथ निभाते हैं…
P.S. आज अंगूर लेते समय एक अपडेट मिली कि फ़ल वाले बाबा के लडके की सेलरी बढ गयी है :)