Monday, May 31, 2010

आधी अधूरी ज़िन्दगी…

- सर, मिनरल वाटर ओर प्लेन वन? painting

- ६० रूपीज फ़ोर अ वाटर बोट्ल? आप लोग एक्वागार्ड यूज करते है न अपने रेस्तरां में?

- यस सर…

- गुड, देन ब्रिंग प्लेन वाटर प्लीज़…

- तुम्हे प्लेन वाटर चलेगा न?

- या या… श्योर……

 

दोनो की वो पहली मुलाकात थी… दोनो को एक दूसरे के बायोडेटा में लिखा नाम बड़े सलीके से याद था…

प्रिया और गणेश…

कल रात ही प्रिया को उसकी माँ  ने गणेश के नये ईमेल के बारे में बताया था… कुछ रोज पहले ही गणेश ने शादी डोट कॉम पर प्रिया को रिक्वेस्ट भेजी थी… पूरे परिवार की सोंचा  विचारी के बाद इक मुलाकात फ़िक्स की गयी थी… पहली मुलाकात। गणेश एक आईआईएम पासआउट होने के  साथ साथ एक आन्त्रेप्रेन्योर भी था और इसी साल उसकी कम्पनी को टाप २५ स्टार्ट अप्स मे नोमिनेट किया गया था… कुल मिलाकर ’एक शादीलायक मटीरियल’ था… थोडा अच्छे शब्दो मे कहे तो ’एन एलिजिबल बैचलर’…

प्रिया ने उसकी एक छवि बनाकर रखी थी… एक स्नोबी पुरुष जो हर बात पर अपनी ही करेगा… कहेगा कि ये ऎसे किया करो ये वैसे… वो कह देगी कि उसे कोई ऎसा वैसा न समझे… वो एक सॉफ्टवेयर इन्जीनियर है  और अपने पैरो पर खड़ी है। तीन साल से नोयडा मे इन्डिपेन्डेन्टली  रह रही है।        …… उसने कुछ भी स्नोब्री दिखायी तो साफ़ साफ़ मना कर देगी।

लेकिन कभी कभी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा  फ़ैसला लेने के लिये किसी की कही एक लाईन ही काफ़ी होती है और कभी कभी कहे गये लम्बे से लम्बे पैराग्राफ़्स भी टस से मस नही कर पाते…

गणेश ने उस वक्त ऎसी ही एक लाईन कह दी थी… उस अमेरिकन रेस्तरां में,  स्नोब्री और शो-ओफ़ मछली मार्केट की बू जैसा हवा मे फ़ैला हुआ था और गणेश ने उस हवा को दरकिनार करते हुये कितनी सादगी से प्लेन वाटर के लिये कहा था…। प्रिया ने अपने माता-पिता  को मन ही मन धन्यवाद कहा और अपनी उसी किस्मत पर बहुत नाज़ किया जिससे वो कुछ दिन पहले एक लव मैरिज चाहती थी… लव मैरिज… उससे… जो कभी उसके प्यार के लायक ही नही था…

वो अपने इन्ही विचारों में पर्त दर पर्त डूबती जा रही थी और उस टेबल पर वो दोनो पर्त दर पर्त खुलते जा रहे थे। उनकी बातों से बातें निकल रहीं  थीं और निकली हुयी बातों से फ़िर ढेर सारी बातें… एक ही बात को सोंचते हुये दोनो की आँखों  में अलग अलग आकृतियाँ बनती थीं  वैसे ही जैसे बादल, आकाश में मोर्ड्न आर्ट बनाते रहते हैं… और हर देखने वाले को उनमें कुछ अलग ही दिखता है। उस अमेरिकन रेस्तरां मे दो बादल साथ मिलकर ऎसी ही कुछ तस्वीरें बना रहे थे……

- आई एम डन। तुम्हे कुछ और चाहिये?

उसने गर्दन हिलाकर ’ना’ कहा और वापस टेबल की ओर देखते हुये अपनी उन्ही आकृतियाँ  में खो गयी।

- प्रिया…………?

- ………हाँ?  (आँखें टेबल को छोड़ गणेश की आँखों को देखने लगीं)

- बिफ़ोर गोइंग अहेड, मैं तुम्हे एक बात बताना चाहता हूँ…

- हाँ … कहो……

- ……मुझे अर्थराईटिस है। …………मैं ज़िन्दगी के इस मोड़ पर जहाँ मुझे किसी के साथ जुड़ना है, इस सच्चाई से मुंह  नहीं घुमा सकता और मुझे लगता है कि मेरे जीवन में आने वाली को, ये सब पहले से पता होना चाहिये।

प्रिया के लिये आसपास का शोर म्यूट हो गया था… दिमाग और दिल आपस मे किसी मुद्दे पर बात करना चाहते थे…

- …………गणेश! ………………… ऎसी बातें  मेरे लिये मायने नहीं रखतीं …। अगर इन्सान तुम्हारे जैसा सुलझा हुआ और इतना समझदार है तो ये सब बातें  बेमानी है। (उसका दिमाग और दिल अभी भी बातें  करना चाह रहे थे)

- ह्म्म… तुम्हे ये बात अपने परिवार को भी बता देनी चाहिये जिससे कोई भी किसी कन्फ़्यूजन मे न रहे…

- ह्म्म…

- चलो तुम्हे घर ड्राप कर दूँ…

- ह्म्म…

 

पूरे सफ़र प्रिया ख्यालों  के एक जाले में उलझी हुयी थी।

ये उसकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा  निर्णय है आखिर शादी-विवाह रोज़ थोड़े  ही होते हैं… लेकिन गणेश कितना सुलझा हुआ है… ज़िन्दगी नर्क बन जायेगी… उसका साथ रहा तो नर्क को भी स्वर्ग बना लेंगे… काश वो लड़का  भागता नहीं … अच्छा हुआ जो सच्चाई बाहर आ गयी… लव मैरिज… गणेश… आप लोग एक्वागार्ड यूज करते है न अपने रेस्तरां में ?… प्लेन वाटर… अर्थराईटिस…

- तुम्हारा घर आ गया…

- ओह, हाँ … (कार से उतरते हुये)

- इट वाज़ अ नाईस इवनिग विद यू

- सेम हियर… …गुड नाईट…

- गुड नाईट…

वो मंजर अधूरा था, अधूरा ही रहा… गणेश की कार आगे बढ़ गयी… प्रिया ने उसे थोड़ी देर जाते हुये देखा फ़िर घर के अन्दर चली गयी। अधूरा मंजर एक अधूरी रात के साथ उस जगह कई सालों तक पड़ा रहा…

 


प्रिया आजकल यूएसए में  है… उसके पति के पास ग्रीन कार्ड है… कुछ दिन में उसे भी मिल जायेगा… उसकी झोली में ढेर सारी खुशियाँ  हैं लेकिन उसकी ज़िंदगी अभी भी कुछ अधूरी सी है… अभी भी वो फ़ेसबुक पर गणेश की पब्लिक अपडेट्स देखा करती है… फ़्रेन्ड रिक्वेस्ट आजतक नहीं  भेज पायी… फ़ेसबुक प्रोफ़ाईल पर गणेश का मेराईटल स्टेट्स (marital status) ’मैरिड’ है…

गणेश की शादी तो हो गयी है लेकिन क्या वो खुश है? क्या वो अभी भी प्रिया को याद करता है?… काश फ़ेसबुक ये भी बता सकता!

और अक्सर ही ये सब सोंचते हुये प्रिया अपने मेलबाक्स में ’गणेश’ नाम से सर्च मारती रहती है और एक लम्बी साँस लेते हुये यही सोचती है कि उस आखिरी ईमेल का जवाब आजतक नहीं  आया………

 

और वो अधूरा मंजर इतने सालों बाद भी उसी जगह अधूरा ही पड़ा है।

40 comments:

दिलीप said...

aah dil ko choo gayi ye laghukatha...ant tak baandhe rakha...aur ant me priya ki jo harkatein bayan ki wo to lajawaab thi...aisa hi hota hai...

Bhawna 'SATHI' said...

vqt gujrne ke bad kuch email or fone jindgi bhar ke intjar ke bad v nhi aate hai dost...kabhi hm nhi kabhi vo nhi.ese hi aadhi adhuri si gujr jati hai jindgi bina sachchi khushiyo ka status jane hue.
dil ko chu gya..sunder.

@ngel ~ said...

Wait! dnt tell me u wrote this story?? When did u become a writer pankaj? I knew a poet... I must say this is very polished story...
Apart from many thoughts... I was wondering how our stories reflect our real life and how technology (facebook, internet, mobile) has become an integral part of our lives...
I tried many times to write a story without mentioning them but .... :)

पंकज मिश्रा said...

वाह क्या कहने। बहुत सुंदर। बहुत ही सुंदर। क्या वर्णन है। मैं तो अभी तक सोच ही रहा हूं। क्या। ये तो मुझे भी नहीं पता।
http://udbhavna.blogspot.com/

shikha varshney said...

कहानी के एक एक शब्द में सच्चाई और आज का परिवेश झलकता है..बेहतरीन ढंग से अपनी बात रखी है आपने..बेहद रोचक और मन को छूने वाली रचना

richa said...

बहुत कुछ अधूरा सा है इस कहानी में... एक अधूरा इंतज़ार, एक अधूरी मुलाक़ात, अधूरे मंज़र की एक अधूरी रात, एक अधूरी सी ज़िन्दगी और जवाब के इंतज़ार में एक ई-मेल ... कहानी अंत तक बांधे रखती है... मन होता है ये जानने का की उसके बाद क्या हुआ... क्या कभी वो दोनों फिर मिले या बात हुई... इसका "sequel" ज़रूर लिखना प्लीज़ :)

वैसे ये कहानी पढ़ के अहमद फ़राज़ साहब की एक ग़ज़ल याद आ गयी, शायद पढ़ी हो आपने भी फिर भी शेयर करने में क्या जाता है...

फिर उसी रहगुज़ार पर शायद
हम कभी मिल सकें मगर, शायद

जिनके हम मुन्तज़र रहे उनको
मिल गये और हमसफर शायद

जान पहचान से भी क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त, ग़ौर कर शायद

अजनबीयत की धुन्ध छँट जाये
चमक उठे तेरी नज़र शायद

ज़िन्दगी भर लहू रुलायेगी
यादे-याराने-बेख़बर शायद

जो भी बिछड़े, वो कब मिले हैं "फ़राज़"
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मंजे हुए कहानीकार की लिखी कहानी लगी...एक एक शब्द मन मस्तिष्क में एक गूँज छोड़ गयी...बहुत ...बहुत ही अच्छी कहानी ...सुन्दर कहानी के लिए बधाई

आचार्य उदय said...

मनभावुक ।

दीपक 'मशाल' said...

उफ्फ्फ्फ़!!!!!!!! क्या कहूं पंकज भाई.. बस दिल की धड़कन बढ़ गई.. एक सफल कहानी, खूबसूरत शिल्प के साथ

अनूप शुक्ल said...

कैसे निर्मोही ब्लॉगर हो जी। बेचारे अच्छे-खासे जोड़े को अलग करके क्या सुख मिला ?

उनको मिला दो जल्दी वर्ना समझ लो। ईश्वर के यहां अगर देर है तो समझ लो अंधेर भी कम नहीं है।

वैसे भैया आर्थराइटिस भी कौनौ शादी टूटने वाली बीमारी होने लगी क्या?

मजेदार लेख। जवान-जहान टाइप! :)

अपूर्व said...

मजे की बात है कि मेरा एक दोस्त इसी वीकेंड पे कुछ मिलते-जुलते सीन से दो-चार हुआ था...!
वैसे अब इस खास इश्टाइल से ’इश्टोरी-टेलिंग’ मे उस्ताद होते जा रहे हो आप..कीप इट अप!!
.. स्नॉब्री वो होती है जो जब होती है तो दिखती नही...मगर अपनी मौजूदगी दर्ज करा देती है हर जगह..!!
घर, खुशियाँ, यू एस, ग्रीन कार्ड...!..’तेरे बिना जिंदगी से कोई..’..संजीव कुमार के लबों पर गुल्ज़ार साब के यह लफ़्ज़ इतना हांट क्यूँ करते हैं..पिछले दिनों एक दोस्त से यह सवाल कर रहा था..शायद कोई तयशुदा जवाब नही है..अगर होगा भी तो कितना गैरजरूरी लगेगा!...वो किसी शेर का टुकड़ा है ना..’नामुकम्मल हर कहानी रह गयी’!
..जिंदगी भी ऐसी ही कहानी लगती है!..कोई तो होगी जो अधूरे मंजर के बीच गणेश की अर्थराइटिस के साथ जिंदगी का मीजान बिठा रही होगी..

संजय @ मो सम कौन... said...

कुछ जवाब कभी नहीं आते बॉस। और आ जायें तो सुनामी ले आते हैं अपने साथ।

बहुत शानदार।

Sanjeet Tripathi said...

jiyo raja jiyo, ise kahte hai bhavnao se lipta hua lekhan, aakhir me to aur bhi.......

vaise Richa aur anoop ji ke kathan pe dhyan diya jaye balak......

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@अपूर्व:

’स्नोब्री’ शब्द के बारे मे बताने का शुक्रिया.. ’स्नोबीनेस’ को फ़िक्स कर दिया गया है :)

गणेश चला जाता है.. प्रिया घर के अन्दर आती है और उसी समय अपने परिवार को फ़ोन करके पूरा किस्सा सुनाती है.. अनूप जी सही कहते है कि अर्थराइटिस से कोई शादी टूटती है भला... लेकिन फ़िर भी प्रिया का परिवार शादी तोडता है.. प्रिया विरोध करती है लेकिन ’परिवार’ दस्ता(बाम्ब स्क्वैड के जैसा) ऎसे विरोध तोडने मे बडा सक्षम होता है और ऎसे कई विरोध तो ज़िन्दगी के साथ साथ ताउम्र चलते है... हो सकता है प्रिया वो विरोध अभी भी घरवालो से जताती हो... हो सकता है ये रिश्ता जोडने की हिम्मत प्रिया खुद न कर पायी हो...

प्रिया का आखिरी ईमेल का जवाब नही आता.. और जैसा ’मो सम’ जी कहते है कि आता तो शायद सुनामी ले आता... या हो सकता है कि दूर कही शायद ग्लेशियर्स पिघलते..

’तेरे बिना जिंदगी से कोई’ के साथ साथ ’भगवान जो करता है, अच्छा ही करता है’ भी हांट करता है... गणेश को अक्सर करता होगा.. ज़िन्दगी भी तो हांट करती है अक्सर.. गुलज़ार के ही शब्दो मे कहे तो ’शतरंज पर खाली खाने रखे है.. न कोई खेलता है बाजी, न कोई चाल चलता है..’

प्रिया खुद की उस बाजी के बारे मे सोचती रहती है जो उसने कभी खेली ही नही और गणेश शायद हमेशा से ही अपने प्यादे हटाने को तैयार था...
(अब पानी पी लू :))

तुम्हारी टिप्पणी हमेशा कहानी को नयी दिशाये दे जाती है और कहानीकार को बोलने का एक आखिरी मौका :)

ऋचा ने फ़राज़ साहेब की जो गज़ल शेयर की है उसकी आखिरी लाईन्स फ़िर से कोट करूगा-

"जो भी बिछड़े, वो कब मिले हैं ’फ़राज़’
फिर भी तू इन्तज़ार कर शायद।"

सतीश पंचम said...

बढिया लिखा है।

प्रवीण पाण्डेय said...

ईमानदारी और विनम्रता देर तक प्रभावित करती हैं । साथ रहे न रहे, व्यक्तित्व याद रहता है ।

Manoj K said...

US, green card, software engineer phir bhi facebook pe ganesh ko dekhna...

pankaj its very contemporary, pls do this more often

best
manoj k

रंजू भाटिया said...

एक बढ़िया कहानी जो कई दिन तक नहीं भूल सकती ......हर ज़िन्दगी यूँ ही श्याद आधी अधूरी बढती है ...

rashmi ravija said...

बिलकुल ,सत्य के करीब..आज के परिवेश में गुंथी कहानी...

वह अधूरा मंज़र शायद कभी पूरा होने के लिए था ही नहीं...अगर गणेश को आर्थराइटिस नहीं होता...तब भी प्रिया झट से हाँ बोल देती...इसमें शक था...भले ही चार और प्रपोज़ल के बाद उसे गणेश ही ठीक लगता...यह लड़के/लड़कियों दोनों पर ही लागू होता है...सहजता जल्दी आकर्षित नहीं करती...पर लौंग रन में वही साथ देता है...लेकिन जबतक उतनी समझ आती है...वक़्त निकल जाता है..और फिर फेसबुक और ऑर्कुट पर अपडेट्स देखे जाते हैं...
(या फिर ब्लॉग पर लिखी कवितायेँ ,खुद पर लिखी सोच ठंढी आहें भरी जाती हैं...:) :))

rashmi ravija said...

सॉरी...मैने सिर्फ कहानी पढ़कर..टिप्पणी की है...
अभी आपके कमेन्ट में कहानी का विस्तार पढ़ा...ये एंगल भी अच्छा है..

vandana gupta said...

kya kahun?............sach kaha hai kuch zindagiyan yun hi adhuri rah jati hain aur waqt ke aaine mein apne adhurepan ko khojti hain.

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@Rashmi ji:
सॉरी की कोई बात नहीं... इस कहानी में काफी कुछ अधूरा है| आपकी टिप्पणी इसे एक और एंगल देती है|
और अपने कमेन्ट में मैंने कहानी को डिफाइन करने की बजाय सिर्फ उसके और एंगल्स पर प्रकाश डालने की कोशिश की है|

जैसे हर कहानी से कई कहानियां निकलती हैं.. गणित के 'ट्री' के जैसे.. वैसे इससे भी निकलें.. इसके पात्र काल्पनिक होते हुए भी आस पास दिखें.. इससे ज्यादा क्या चाहिये

स्वप्निल तिवारी said...

wallaaaaaaaaaah...kya likhta hai mere sher.... zabrdast yaar... waise to "aakhiri e mail " ki detaiol bhi janna chah raha tha..par chaddo kisi ki personal life me kyun jhanka jaye..behad solid bhai ... waqt ke sath chalti hui kahaani...

सज्जन कुमार said...

One of my friend, PD, attached your short story in his Google's Buzz .. Padha dil ko chu gayi aap ki yeh laghu katha .. bahut hi khubsurat .. aise hi likhte rahiye ...

डिम्पल मल्होत्रा said...

और वो अधूरा मंजर इतने सालों बाद भी उसी जगह अधूरा ही पड़ा है..घड़ी की सुइयां नहीं रूकती,वक़्त नहीं थमता.ज़िन्दगी के दिन हर गुजरते पल के साथ पहले से थोड़े होते जाते है और ये थोड़े पल भी किसी इक खास के बिना क्यूँ?
प्रिया आजकल यूएसए में है… उसके पति के पास ग्रीन कार्ड है… कुछ दिन में उसे भी मिल जायेगा… उसकी झोली में ढेर सारी खुशियाँ हैं लेकिन उसकी ज़िंदगी अभी भी कुछ अधूरी सी है कभी कभी अनजाने चेहरों से बिछड़कर अजीब अकेलेपन का अहसास होता है.
अभी भी वो फ़ेसबुक पर गणेश की पब्लिक अपडेट्स देखा करती है,और अक्सर ही ये सब सोंचते हुये प्रिया अपने मेलबाक्स में ’गणेश’ नाम से सर्च मारती रहती है और एक लम्बी साँस लेते हुये यही सोचती है कि उस आखिरी ईमेल का जवाब आजतक नहीं आया ,
दिल नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है,
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है.

मीनाक्षी said...

जितना इस कहानी ने हिला दिया उतना ही अनूपजी की टिप्पणी ने राहत दी...खास आभार उनका...

Kapil Sharma said...

Wahh Lekhak!!!
Ekdam kamaal!!! office mein login karne se pehle socha ek nazar ghumayin jaye google reader pe...aur IS KAHANI SA ne login mein late kara diya...Jst cudnt help :P

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

संकल्प की ईमेल से टिप्पणी:

Oh man.... you are !@$%^#*@#%@#^#@!*)&#$!*)(&)(* [Jo bhi gaaliyaan tujhe achhi lagti hon...add kar lena....]

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

गूगल बज़ से आपकी टिप्पणिया यही सहेज रहा हू कि बाद मे कभी अपनी पोस्ट पढू तो सनद रहे..
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Dr. Mahesh Sinha - छा गए :)

Somyaa mehta - really agree wd mahesh ji... :) Saw ur published poem ... ur dng awesome job... my best wishes r wd u

anuj gupta - kya bakwas likhtye rehte ho yar...sala insaan is life me waise hi paresan hain n sonchte sonchte mara ja rha hai ki kya sahi hai n galat n tum kahani me baht kuch sonchne wala chod ker aur paresan ker rahe ho....sale mare jaoge kisi din aur sabse phle kaan ke neche 2 main lagaunga

Sanjeet Tripathi - jiyo raja jiyo, ise kahte hai bhavnao se lipta hua lekhan, aakhir me to aur bhi.......


HIMANSHU MOHAN - मुझे अनुज गुप्ता जी से सहमत होना पड़ रहा है, इतना अच्छा लिखा है कि तंग कर दिया। ऐसे में गुप्ता जी के पीछे-पीछे मैं भी…
तुम्हें पीटने वालों की लाइन न लग जाए! :)

प्रिया said...

आपकी कहानी के किरदार जाने - पहचाने हैं ........जिंदगी की तरह यहाँ भी कुछ सवाल अधूरे ही हैं ....क्या गणेश भी वैसा ही सोचता हैं प्रिया के बारे में ? कहानी में तो दोनों की जिंदगी आगे बढ़ गई .......अगर दोनों का आमना-सामना हुआ तो प्रतिक्रिया कैसी होगी ? रिश्तो की सीमाएं तय हो चुकी हैं शायद.... हाँ कुछ मंजर ...कुछ क़िस्से, कुछ यादें अधूरे ही रह जाते हैं कहानियों के लिए .....आखिर दास्ताँ तो होनी हीचाहिए

Udan Tashtari said...

ये कहानी तो जेहन में एक नई कहानी को जनम दे गई...

बहुत बढ़िया लिखा है...अभी तक चल रही है दिमाग में.

बहुत खूब!

कुश said...

फाड़ डाला है जानी..
सिक्वल या यु कहू दूसरा पहलु.. मस्त लिखा है बॉस

Asha Joglekar said...

achchi kahanee hai. aakhir tak bandhe rakhtee hai. fir bhee kuch adhoora sa chod jati hai.

kshama said...

Bahut baandhe rakha is katha ne..kabhi,kabhi lagta hai,technology ek aag ki tarah hai...khana paka sakti hai aur jeevan khaak bhi kar sakti hai..

abhi said...

:) ye smiley kaafi hoga shayad pankaj comment ke liye :)

रंजन said...

बहुत सुन्दर..

Manish said...

अभी भी वो फ़ेसबुक पर गणेश की पब्लिक अपडेट्स देखा करती है… फ़्रेन्ड रिक्वेस्ट आजतक नहीं भेज पायी… फ़ेसबुक प्रोफ़ाईल पर गणेश का मेराईटल स्टेट्स (marital status) ’मैरिड’ है… गणेश की शादी तो हो गयी है लेकिन क्या वो खुश है? क्या वो अभी भी प्रिया को याद करता है?… काश फ़ेसबुक ये भी बता सकता! और अक्सर ही ये सब सोंचते हुये प्रिया अपने मेलबाक्स में ’गणेश’ नाम से सर्च मारती रहती है और एक लम्बी साँस लेते हुये यही सोचती है कि उस आखिरी ईमेल का जवाब आजतक नहीं आया………
ye toh har insaan ke saath hotaa hai...
kaafi achchhi story.....

Abhishek Ojha said...

कुछ अपडेट्स तो हम भी देखा करते हैं पता नहीं वो देखा करते हैं या नहीं !

Anonymous said...

ये तुम्हारे लिए कह कर,
मेघा के गर्जन को सुनाते हो तुम,
मच्छ के समान अपने छटपटाते
अंन्त को सुनाते हो तुम,
जल के घाघर मे ना जाने
कितनी ङुबकी लगाते हो तुम,
बिन निमंत्रण के ही
तुम बारिश क्यो बुलाते हो तुम
तुम हो कौन
जिंन्दगी से क्यों नंही मिलती,
तुम खुशी होना,
हंसी से क्यों नंही मिलती!

Neelima

Anonymous said...

Hi Pankaj,

Your story is pretty true.....
aaj k time may ayssa hi hota hai...
logo ko face book or u say book of your face, in which there is lot to express but nothing to show at end...

Great going...
Jugnu... Neelima friend