- समुद्र कितना इन्ट्रोवर्ट होता है न?
- ह्म्म???
- भीतर कितना कुछ छुपाये रहता है और ऊपर से एकदम शांत… कमबख्त कभी किसी से मिलने कहीं जाता भी नहीं… जब देखो गधे लड़कों की तरह़ यहीं पड़ा रहता है… मूडी भी है…
- ह्म्म???
- कभी एकदम शांत और गंभीर, तो कभी जैसे अपनी लहरें गुनगुनाता रहता है… म्यूट रातो मे जैसे किसी को पुकारता रहता है… और दिन निकलते ही एक गहरी नीद मे सो जाता है… जैसे एक मजदूर दिन भर काम करने के बाद रात मे सोता है… जैसे २ बजे के बाद बोरीवली स्टेशन पर लोकल ट्रेन्स सो जाती हैं… जैसे सवेरे सवेरे सारी ट्रैफ़िक लाईट्स एक साथ सो जाती हैं…
- ह्म्म्म्म……
(वो समन्दर मे सैडनेस देखती थी और मै उस सैडनेस मे एक समन्दर को… उसकी टी पर लिखा था – नो वकिंग फ़रीज (No Wucking Furries) पर उसे सारे संसार की चिंता थी… मेरी तो हद से ज्यादा…)
- तुम्हारी मेरे बारे मे कोई फ़ैन्टेसी है?
- ह्म्म??? (ये लडकी पागल है)
- फ़ैन्टेसी लल्लू…???(जैसे मैं PSPO नहीं जानता था) ब्वायेज विल भी ब्वायेज… कुछ तो सोचते होगे? पता है मैं क्या सोंचती हूँ?
- क्या? (फिंगर्स क्रास्ड)
- पहाड़ो के बीच एक डाकबंगला हो जहाँ खिडकी और दरवाजो से सिर्फ़ संगीत भीतर आता हो… अपने बेडरूम मे एक कोने मे एक फ़ायरप्लेस हो और उसमे कुछ लकड़ियाँ, कुछ कुछ हम दोनो जैसे ही सुलग रही हों… अपने बेड के पास एक खिड़की भी हो और उस खिड़की से बर्फ़ीले पहाड़ हमारे बेडरूम मे झाँकते हों जैसे वो सब कुछ देखना चाहते हों… यू नो वोयेरिज्म… और हम दोनो इन सबसे बेफ़िक्र सब कुछ करते रहें… सब कुछ… और फ़िर उस खिडकी पर साथ बैठकर उन बर्फ़ो का पिघलना देखें…
कहाँ खो गये?
- यहीं हूँ..
- मुझे तो बर्फ़ीले पहाड़ पिघलते दिख रहे हैं… ब्वायेज विल भी ब्वायेज…(खिलखिलाते हुये)
चलो अब तुम्हारी बारी?
- ह्म्म…। अहेम अहेम…(गले को तरल करने की कोशिश जिससे फंसे हुए शब्द आसानी से बह सकें )…
नवी मुम्बई के एक आलीशान अपार्ट्मेन्ट के ३०वें माले पर एक फ़्लैट… फ़्लैट से बाहर झाँकती बालकनी और उसके साथ दूर तक देखने की कोशिश करता हुआ एक हैंगिंग सोफ़ा… एक कोने में अपनी बारी का इन्तजार करता हुआ एक छोटा सा फ़्रिज… उसमें ठंडाते हुये आइस क्यूब्स और उनके ठंडे होने के इन्तजार में बैठी स्काच… बैकग्राउन्ड मे मेरे कुछ फ़ेवरेट गाने… और उस फ़र्श पर हम तुम…
- सब कुछ करते हुये? (क्यूरियसली)
- ह्म्म……
- और? (वेरी क्यूरियसली)
- और उसके बाद हम दोनो एक चादर में लिपटे सारी रात उस हैंगिंग सोफ़े में झूलते रहें… तुम मुझे सुलगाती रहो और मैं अपनी गोल्ड फ़्लैक लाईट्स… सारी रात…
- ब्वायेज विल भी ब्वायेज (खिलखिलाकर हँसते हुये)
…………………
…………………
…………………
- हैलो?
- हे… कैसी हो?
- बढिया… लॉन्ग टाइम न?
- ह्म्म…
- मरीन डाईव अभी भी जाते हो?
- ह्म्म… नही…
- गोल्ड फ़्लैक लाईट्स के क्या हाल हैं?
- काफ़ी टाईम हो गया.. छोड दी है…
- ओह… और कहाँ हो आजकल? बोरीवली?
- नहीं… पहाड़ो में एक घर ले लिया है… एक वुडहाऊस है… तुम?
- इन्होने नवी मुम्बई में एक फ़्लैट ले लिया है… बस वहीं ३०वें माले पर रहती हूँ…
- ह्म्म……
- ह्म्म……
* picture courtesy: Mr. Nag via ‘Varansi’ - a Facebook group
33 comments:
waah kitni rochak lekhni hai ek baar shuru bhar kiya aur padhta hi gaya...aur koshish karunga ki ye sab kuch wali pustak padh sakun...
३० वें माले पर एक चादर में, वाह वो भी हैंगिंग सोफ़े पर सबकुछ करते हुए.., सिंपली जोरदार चाहत :)
आखिर "ब्वायेज विल बी ब्वायेज"
hmm...
Jeevan ke safar mein rahi , milte hain bichhad jane ko...
All are strangers..
We come alone and we alone...
मन में तेरे बने महल,
कर लेती हो चहल पहल,
कहती हो तुम रहने को,
कैसे टाल सकूँ कहने को ।
पर सुस्ता लो, और सोच लो,
मेरा चंचल मन मुझको उकसाता है,
नभ के नीचे दौड़ लगाना भाता है,
बन्द घरों में कमरों में रह अलग-थलग,
मुक्त पवन से जोड़ा अपना नाता है ।
हम्म, ब्वॉयज़ विल बी ब्वॉयज़ !
@प्रवीण जी:
वाह, बहुत सुन्दर :) आफ़्टर आल ’ब्वायेज विल बी ब्वायेज’ ;)
@Zeal
glad you arrived here too :) and nice start with the 'hmm' :P
@दिलीप:
धन्यवाद!! ये पुस्तक ’स्टीफ़न हाकिग’ ने लिखी है.. नाम है ’द थ्योरी ओफ़ एवरीथिन्ग(सब कुछ)’.. इस पुस्तक मे कुछ लेक्चर्स की मदद से ये यूनीवर्स के निर्माण की व्याख्या करते है.. होप तुम निराश नही हुये होगे ;)
kidding...
hmmmm
सबसे पहले तो ज़ोरदार बधाई पंकज!
इतनी अच्छी लिखाई जो बज़ से सीधे यहाँ खींच लाई। पहले भी कई बार ऐसा हुआ है कि मैं आपके ब्लॉग तक आया बज़ से पोस्ट की उँगली पकड़े-पकड़े, मगर यहाँ आकर कभी कमेण्ट किया, कभी नहीं किया - लगा कि शायद मैं आउट-ऑव-डेट हो गया हूँ, नैइ पीढ़ी से!
मगर इस बार ऐसा नहीं हुआ।
तीसवें माले पर…
पूरी पोस्ट जो माहौल बनाती है, कविता सा, उसे कहानी के अच्छे चरमोत्कर्ष सा यह तीसवाँ माला देता है। इन अंतिम छह-सात पंक्तियों के संवाद में ग़ज़ब की चमत्कारपूर्ण संभावना दिखी।
बहुत अच्छे - कविता जैसी कहानी या गद्य रचना - इसे अतिशयोक्ति मत समझना, कमलेश्वर और गुलज़ार से इतना प्रभावित हुआ हूँ पहले, ख़ासकर कथोपकथन - डायलॉग्स से…
मेरी दिल से लिखी बात कहाँ गई? अब दोबारा वही नहीं लिख पाऊँगा, काश कि पंकज तुम ऐसा लिखते रहो… भले ही इधर-उधर टिप्पणियाँ थोड़ी कम करो। पर अपनी इसी शैली को बरक़रार रख कर, ख़ासकर डायलॉग्स का सब कुछ कह जाना… कोई कहानी लिखो, फिर कहानियाँ। मेरी इच्छा भी है, और दुआ भी…
'समुद्र कितना इन्ट्रोवर्ट होता है न?'
हम्म..क्या लगता है कि इस पहली लाइन के ’बार्बवायर्स’ से कोई बच कर आगे निकल पायेगा..?
और सच कहूँ तो फिर पूरी पोस्ट ही किसी क्रास-कंट्री रेस मे तब्दील होती जाती है..म्यूट रातें, स्लीपिंग ट्रेनें, वॉयरिस्टिक पहाड़ (इन फ़ैक्ट पूरी कायनात), सैड-समंदर और चेन-स्मोकिंग (वो>तुम>गोल्ड-फ़्लेक>रात)..
..फ़िर उन फ़ैंटेसीज का इतना कैजुअल इंड कितना कुछ अनकहा छोड़ देता है..और यही इस कहानी की जान है...वैसे एक्स्टेंशन की पूरी गुंजाइश थी..मगर लेखक के आलसत्व को पूरा खतरा भी ;-)
हाँ इस ’गधे-लड़के’ टर्म को और स्पष्ट किया जाय..कि एक्चुअली किसके अधिकारों का हनन हो रहा है..पुरुषाधिकारों का या गर्धभाधिकारों का? ..कहीं ऐसा न हो गधे ही आप पे मानहानि का केस कर दें!
और मुझे यह लग रहा है कि दर्पण को एक कम्पिटीटर मिल गया है..ए टफ़ वन!!
..तुमसे उम्मीदें बढ़ती जाती हैं कामरेड!!
hmm... captivating... boys will be boys :)
by the way nice song too par story se connect kuchh samajh nahi aaya...
नवी मुम्बई के एक आलीशान अपार्ट्मेन्ट के ३०वें माले पर एक फ़्लैट… फ़्लैट से बाहर झाँकती बालकनी और उसके साथ दूर तक देखने की कोशिश करता हुआ एक हैंगिंग सोफ़ा… एक कोने में अपनी बारी का इन्तजार करता हुआ एक छोटा सा फ़्रिज… उसमें ठंडाते हुये आइस क्यूब्स और उनके ठंडे होने के इन्तजार में बैठी स्काच… बैकग्राउन्ड मे मेरे कुछ फ़ेवरेट गाने… और उस फ़र्श पर हम तुम…
gr8 sir............
क्या लिख डाला है पंकज..! ये वही राईटिंग है जो मुझे पसंद आती है.. या कहू बहुत पसंद आती है.. म्यूट राते.. समुन्द्र का इन्ट्रोवर्ट होना.. खिड़की से सिर्फ संगीत का आना.. कितना कुछ तो कह गए यार... मुझे म्यूट कर डाला है.. अपने अन्दर बहुत कुछ सुलगा रखे हो.. गोल्ड फ़्लैक लाईट्स की तरह..
इस पोस्ट को अपनी फेवरेट लिस्ट में डाल रहा हूँ.. ज्यादा इतराना मत..! :)
attendance lga li jaye.abhi sirf barfeele pahaad pighlate dikh rahe hai,unhe dekh lun jee bhar ke to koee or baat ho.
boys will b boys...no doubt
and girls will b girls....more practical..
nicely written....njoyed so much :)
हम्म...
मे बी आफ्टर लॉन्ग टाइम... लेट्स सी !
सही कहा ..रोचक लिखने का तरीका यही इस ब्लॉग की हर पोस्ट से बाँध लेता है ..माहौल बहुत बढ़िया रच देते हैं आप लफ़्ज़ों से ....बेहतरीन पोस्ट है यह भी आपकी ....पहली पंक्ति ही कभी नहीं भूलने वाली ....समुन्द्र कितना इन्ट्रोवर्ट होता है ..और हम्म
Life and time changes!
Very nice work done :)
Simply fantastic title and wonderful content !!
Regards,
Dimple
रुचिकर आलेख ।
हमारे तुम्हारे फ्लीकर से लिए हुए कुछ चित्र एक से है....कई पोस्टो पे ........
ये पोस्ट तुम्हारी बेहतरीन में से एक है .....तुम्हारे मेच्योर ओर बोल्ड होते स्टाइल को भी कई जगह पकडती है ....ठहरती है .ओर एलान करती है अपनी पीड़ी की उस सोच का जिसके अपने पंख है अपने आसमान ......कुलमिलाकर एक अच्छा कोलाज़ !!!!
hmmmmm amazing post Pankaj !!great n let the emotions flow!!
@अपूर्व:
तुम एक स्टार ब्लागर के साथ साथ एक स्टार टिप्पणीकर्ता हो.. कई बार टिप्पणिया यूनीवर्स के उन कोनो तक पहुच जाती है जहा तक लेखक ने खुद नही सोचा होता है...(स्टीफ़न हाकिग नही अपने डॉक्टर साहेब ऐसा बोलते है) तुम्हारे पहली लाईन= ’बार्बवायर्स’ और ’चेन स्मोकिग’ = (वो>तुम>गोल्ड-फ़्लेक>रात) जैसे सूत्र इस पोस्ट की कैलकुलेशन को बडे अच्छे से समझने की कोशिश करते है..
तुम्हारा मेरे ब्लाग पर आना, मेरे लिये तो कम से कम बहुत अच्छा हुआ है :)
और हनन तो गर्दभाधिकारो का ही है ;) अब उनकी भर्त्सना हो या जयजयकार.. मुझ तक तो ऎट लीस्ट नही पहुचेगी.. हा तुम उनके इशूज को आगे लाओ तो अलग बात है ;)
@रिचा: शायद वो वीडियो भी एक फ़ैन्टेसी है.. पात्रो की नही तो लेखक की ;)
@कुश: रियली???? इतरा नही रहा हू :P
@Dimple: :)
@Rashmi ji:
:) Thank you!!
@डॉक्टर साहेब:
शुक्रिया!! हाँ कुश ने भी मुझे एक बार यही बोला है शायद राशियों (Aries) का इसमें कुछ हाथ हो नहीं तो वाइब्स का :)
सबका बहुत बहुत शुकिया... :)
What next Pankaj?
Will the boys grow up?
Years after years....same 36th floor....empty bottles.....broken glasses...
any hope?
ye main dusri baar padh raha hun pankaj bhai :)
Boyz vil alwayz be Boyz :P
जबरदस्त!! क्या चित्र उतारा है..बेहतरीन और रोचक!
Loved it :)
Gazab ki FENTACY buni hai shabdon se ..
bhaaiya ji sanjeet ji ne bataya ki apne kuch bahut hii accha likhna suru kar diya dai-so dekh liya-sach me yaar, u turned into a great writer-god bless
aapne woodhouse le liya hai aur woh 'unke' ssath 36th floor par rahti hai..
ironical but true..
good one, acha laga
i know boys will be boys- sirf do line meri taraf se-
mai ek pahad hoon mujhe mutt maaro please, arjun ki tirr se bhi tej delhi ke cab aate hai idhar jissse mai bacch nahi paa raha hoon
बहुत प्रभावशाली
http:// adeshpankaj.blogspot.com/
http:// nanhendeep.blogspot.com/
समुद्र इन्ट्रॉवर्ट और पहाड एक्स्ट्रॉवर्ट फैन्टेसी में भी तालमेल नही बैठता हम्म.................... बहुत सुंदर और बोल्ड ।
waah...bahut effective tareeke se likhi gayi hai ..kahaani ka ant jaise apne paas bula ke bitha hi lega... :)
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