- हेलो सर! मैं ___ बोल रही हूँ ___ बैंक से
- हम्म…
- सर, आपको पर्सनल लोन की रिक्वायरमेंट है?
- नहीं।
- सर , कोई रेफेरेंस ?
(रेफेरेंस?? मैं जानता ही किसे हूँ… मुझे भी तो कोई नहीं जानता… मैं खुद भी तो खुद को ही नहीं जानता… फिर किसका रेफेरेंस दूं…)
- ...............नहीं, नो रेफेरेंस।
फेसबुक पर रोज़ ही एक दो नयी फ्रेंड रिक्वेस्ट्स आ जाती हैं… फ्रेंड काउंट बढ़ता जा रहा है… ब्लॉग का फीडकाउंट भी बढ़ ही रहा है…
बस मैं घटता जा रहा हूँ … रोज़ रोज़… थोडा सा… जैसे, नयी सरकारी रिपोर्टों में गरीबी घटती जा रही है…… जैसे नक्शों पर से गाँव घटते जा रहे हैं…… जैसे मुम्बई से यूपी/बिहार के लोग घटते जा रहे है…
वैसे ही मेरा आसमान भी छोटा होता जा रहा है… मेरे समुन्द्र भी सिकुड़ते जा रहे हैं… जैसे, ये कोने में पड़ा ख्वाहिशों का गुब्बारा सिकुड़ता जा रहा है, जो श्रीकांत ने इजिप्ट जाने से पहले अपने पैसों से मेरे लिये खरीदा था और शायद पहली बार 'डिवाइड बाई टू' भी नहीं किया था…
बस साँसें वैसी की वैसी हैं… मेरी ज़िन्दगी मे उलझी हुई, लेकिन चलती हुई…… जैसे, सीडी ड्राइव में एक सीडी फंसी हो और बार बार बाहर निकलने की कोशिश कर रही हो… जैसे कमरे में गलती से कोई फतिंगा फंस गया हो और हर दीवार में एक खिड़की/रोशनदान ढूँढने की कोशिश कर रहा हो… जैसे कोई बंधुआ मजदूर मजूरी करता ही जा रहा हो… जैसे मेरी लिखी कुछ इधर उधर की लाइने एक कविता बनना ही चाह रही हों...
इन्हें भी तो थोडा आराम चाहिए…
तो क्या मैं भी ’प्यासा’ के किरदार की तरह सारी दुनिया के सामने ये चिल्लाकर कह दूँ कि ’जो तुम मुझे समझ रहे हो, वो मैं नहीं हूँ। वो तो कबका मर चुका है।’ लेकिन फ़िर वो पूछेंगे कि कैसे मरा तो क्या जवाब दूँगा? आगजनी के आरोप मे अन्दर न कर दे…? आत्मदाह ही तो किया था… कुछ आत्माये ही तो जलाये थी…
या आसमान की तरफ़ देखते हुये कह दूँ कि ’तलाक, तलाक… तलाक’
या चिल्लाऊ जोर से कि ’आई नीड सालवेशन’……
चंद रेखाओं में सीमाओं में
ज़िन्दगी कैद है सीता की तरह,
राम कब लौटेंगे मालूम नहीं,
काश, रावण ही कोई आ जाता.......- कैफ़ी आज़मी
29 comments:
मेरे पास जब कभी फ़ोन आता है तो मैं खुद ही कोई प्रोडक्ट चिपकाने लगती हूँ या उन्ही से कोई रेफेरेंस मांगने लगती हूँ! निकल लेते हैं पतली गली से.
बहुत उम्दा लेखन....भावनाओं को महसूस करवा गया...
और कैफी आज़मी की पंक्तियों ने बात पूरी कर दी:
चंद रेखाओं में सीमाओं में
ज़िन्दगी कैद है सीता की तरह,
राम कब लौटेंगे मालूम नहीं,
काश, रावण ही कोई आ जाता.......
शानदार!!!
कुछ लोगों को जाहिर होने के लिये बस एक स्पार्क की जरूरत होती है, आप उनमें से एक हैं।
फ़ोन तो हमें भी रोज़ आते हैं, लेकिन आपके पास आये एक फ़ोन ने इतने जबरदस्त ख्यालों से रूबरू करवाया, उसके लिये आभार स्पार्क का ही करना चाहिये न?
बहुत सुन्दर।
तलाक तलाक तलाक
बढ़िया है पर इस मनोस्थिती में ज्यादा दिन भी नहीं रहना चाहिये।
superb
तड़प इसे ही कहते हैं । किधर किधर से बँधे हैं और कितने ऋणों को उतारना है । मन पर यह तड़प क्यों छोड़ दी बनाने वाले ने । केवल सताने के लिये । नॉट फेयर ।
उदास कर दिया दोस्त. कभी-कभी ऐसी बातें क्यों कर जाते हो? सबको आईना दिखाने वाली... अपने अन्दर झाँक कर देखने को मजबूर करने वाली...
इस उम्र में ऐसी बातें... संन्यास लेना है क्या? :-)
फेसबुक पर रोज़ ही एक दो नयी फ्रेंड रिक्वेस्ट्स आ जाती हैं… फ्रेंड काउंट बढ़ता जा रहा है… ब्लॉग का फीडकाउंट भी बढ़ ही रहा है…....
''मगर जिन रिश्तों से प्यार करते हैं उनके कमेंट्स ही नदारद हैं''.....सिर्फ अकाउंट ही अकाउंट चल रहा हैं...कमेंट्स की भीड़ बढ़ गई है मगर...जो कमेंट्स हमें हँसा दे वों कमेंट्स नहीं है...
बस मैं घटता जा रहा हूँ … रोज़ रोज़… थोडा सा… जैसे, नयी सरकारी रिपोर्टों में गरीबी घटती जा रही है…… जैसे नक्शों पर से गाँव घटते जा रहे हैं…… जैसे मुम्बई से यूपी/बिहार के लोग घटते जा रहे है…...
सच में ....''जब मैं जिन्दा हूँ तो मुझ में मर जाता है कौन?'' .....
जूठे..! मेरा रेफरेंस नहीं दे सकते थे..
kya likha hai bandhu!
bhavnao ko shabdo me shandar tarike se piroya hai.
पहली बार आपकी पोस्ट में ज़िन्दगी से ऊबा हुआ इंसान देखा... झूठ नहीं बोलूंगी, मिल के अच्छा नहीं लगा...
हाँ... ज़िन्दगी आसान नहीं है... किसी के लिये भी... पर यूँ हार मानना... वो भी ख़ुद से...
जितना भी थोड़ा बहुत जाना है आपको आपकी पोस्ट्स से ... ये आप तो नहीं हैं शायद...
वैसे ऐसे नेगेटिव थॉट्स सबको आ जाते हैं कभी कभी... हमें भी आते हैं... और तब ऐसी कुछ इन्करेजिंग लाइंस पढ़ लेती हूँ
उम्मीद है आपका भी मूड कुछ चेंज होगा :)
दिल में तूफ़ान है और आँखों में तुग़यानी है
ज़िन्दगी हमने मगर हार नहीं मानी है।
ग़मज़दा वो भी हैं दुश्वार है मरना जिन को
वो भी शाकी हैं जिन्हें जीने की आसानी है।
दूर तक रेत का तपता हुआ सहरा था जहाँ
प्यास का किसकी करश्मा है वहाँ पानी है।
-- शहरयार
और हाँ कुछ और गुब्बारे चाहियें तो हम दिला सकते हैं... डिवाइड बाए टू भी नहीं करेंगे... पक्का :)
कीप स्माइलिंग आलवेज़ :)
और हाँ... टाइटिल मिस्लीडिंग है... गॉसिप तो पूरी पोस्ट में कहीं नहीं मिली :)
वैसे ही मेरा आसमान भी छोटा होता जा रहा है… मेरे समुन्द्र भी सिकुड़ते जा रहे हैं… जैसे, ये कोने में पड़ा ख्वाहिशों का गुब्बारा सिकुड़ता जा रहा है,
aisa kyun Pankaj ?
man udaas hai kya jo ye likha hai..? sab theek ho jaayega..
khair kabhi kabhi ho jaata hai...
lekin jo bhi likha saccha laga..bahut khoob ...
di..
काश रावण ही कोई आ जाता -हाजिर हैं !
अपनी आदमियत को बचाये रखना शायद इस कोकटेल युग मे सबसे बड़ी लड़ाई है ....ओर कब तक....ये उससे बड़ा मुद्दा ....
उदास पोस्ट ..पढ़ते ही लगा जैसे कुछ हाथ से लम्हा फिसल गया ...इसी तरह की तरंगे अक्सर मन में उठती है पर यूँ लिखी कम ही जाती है ..उदास था पर अच्छा लगा इस को पढना ..
किसी ने तुम्हें "ज़िन्दगी से ऊबा हुआ इन्सान" कहा है, सरसरी तौर पर इतना ही देख पाया।
अगर ऐसा है तो अच्छी बात नहीं है।
मगर मैं तो यह कहने आया था कि आपकी लिखाई से आपकी सोच झलकती है, और सोच से व्यक्तित्व। तो ऐसा लग रहा है कि -
"भरा-पूरा है सब कुछ
मगर कुछ है जो कम है"
तो ये कमी दूर होनी चाहिए। जल्दी हो ऐसी हमारी दुआएँ हैं। फिर आगे चलकर वह वक़्त भी आएगा जब यह कहने का अर्थ बदल जाएगा, और फ़िराक़ साहब की परिपक्वता भरी सोच से उगा हुआ ये ख़्याल लागू होगा आपके कथन पर - (और तब यक़ीनन अच्छा लगेगा):
"मिटता भी जा रहा हूँ - पूरा भी हो रहा हूँ
मैं किसकी आरज़ू हूँ? मैं किसका मुद्दआ हूँ?"
शुभकामनाएँ,
कभी कभी अच्छा लगता है यूँ बैठकर अपने आपको थोड़ी दूरी से देखना...पर फिर पास आओ...और ज़िन्दगी का हाथ थाम, आगे बढ़ जाओ..ऐसे लम्हे आते ही रहते हैं...पर ज्यादा देर ठहरने नहीं चाहिए .
क्या भाई?!
सब ठीक तो है ना? नहीं है, तो हो जाएगा! मेरा वादा!
होठ घुमा, सीटी बजा, सीटी बजा के बोल: आल इज वेल!!!
श्रीकांत की इजिप्ट से टिप्पणी:
"शायद पहली बार 'डिवाइड बाई टू' भी नहीं किया था… "
साले, नही ही किया था.. ’शायद’ क्या??
वाह क्या अंदाज़ है ......!!
और इसे जुमले ने तो लूट ही लिया ......
आसमान की तरफ़ देखते हुये कह दूँ कि ’तलाक, तलाक… तलाक’
गज़ब लिखने लगे हैं .....
फिर आना पड़ेगा इक बार ......!!
आपके मूड का ये हिस्सा पसंद आया हमको...जों है जैसा है सच्चा है और बोले तो बिंदास ......अरे लोन ही सेल कर रही थी ना.....सुन लेते उसकी भी बात....उसकी तो जॉब है :-) ख्वामखाह कीबोर्ड से मेहनत कराई .....चलिए मेहनत रंग लाई :-)
ये पॉलिसी बेचने वालों से कष्ट तो है, पर यह भाव भी मन में आता है कि कम से कम वे यह तो मानते/मानती हैं कि हमारे पार खर्च करने/निवेश करने के पैसे हैं! :)
kya likhu dost..teri es udasi ne mn me kuch geela- geela sa kr diya hai,kash koi hota tere pas hm jaisa....to facebook or blog ke ye chahne bale v apne se hi lgte.
भई यह तो कन्ज्यूमर राइट्स का सरासर वॉयलेशन है..बोले तो पैकेट पर कुछ और और अंदर कुछ और..हम भी गॉसिप का बोर्ड समझ कर अंदर आये थे..मगर कुछ भी हो गॉसिप तो नही मिला...वैसे तो हमारे जैसे पलायनवादी हर उस बिल्डिंग मे घुसने से डरते हैं..जिसकी कोई खिड़की अपने ही अंदर की साइड मे खुलती हो..और यहाँ तो मेन-इंट्रेंस से सीधा दिल के तहखाने मे इंट्री हुई..नॉट ए गुड थिंग..कुछ मसाला-वसाला लाओ यार..या कोई आइटम डांस..वी नीड एन इस्केप-रूट..यू सी..मोर रिक्वेस्ट्स, मोर फ़ैंड-काउंट्स, मोर पर्सनल लोन्स, मोर फ़ैंटेसी आउट ऑफ़ रियलिटी, ख्वाहिशों के बलून मे मोर एयर.....नो साउल-सर्चिंग!!
..इमोशनल बना देते हो भई!!
der se aane ke liye maafi chahta hoon..
aap salvation chahte hain.. mukti.. mukti to insaani shareer ko chodkar hi milti hai.. aapko lagta hai hai aapne jeevan mein itna kuch dekh liya hai aur itna kuch kar liya hai ki aap mukti chahte hain..
i think u need some good friends and a circle.. no on the internet but real ones.. try to figure out...
zindagi abhi baaki hai dost...
bahut kuch karna baki hai
bahut kuch likhna baaki hai..
best
Manoj K
premchand jese tinko ko jodkar kahani bunte thee, tum bhi kam nahi ho, nice one pankaj-ruppuin(rupesh here). i still do not how to overcome the anoymous, open id ya jo bhi
is zara si gossip k ebahen kya kya kah gaye..
जिंदगी के मायने खुद टटोलती जिंदगी.....
फसबुक और ओरकुट के बहाने से ही सही..........
खुद को तलाशती जिंदगी.
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