Thursday, May 20, 2010

अधूरी बातें…

- पता है, छोले बना रही हूँ!starfish 2
- हम्म....एक दिन वो तुम्हे बनायेंगे
- तुम पागल हो चुके हो...
- दुनिया भी यही समझती है
- तो क्या मुझे इस दुनिया से परे मानते हो?
- कुछ मान ही तो नहीं पाता
- तुम्हारी आँखें कुछ ढूंढ रही है...?
- हडप्पा… मोहनजोदडो…
- वो क्या हैं?
- नष्ट हो चुकी सभ्यताएं
- मैंने नष्ट नहीं की
- लेकिन तुम सभ्य हो
- तुम्हे कैसे पता?
- क्यूंकि तुमने सभ्यताएं नहीं नष्ट की
- रहने दो...तुम नहीं समझोगे
- काश....तुम भी समझ पाती
- सब समझ रही हूँ
- कुछ नहीं समझ रही हो
- तुम्हे ऐसा लगता होगा…
- मुझे ऐसा नहीं लगता… इन्फैक्ट मुझे कैसा भी नहीं लगता…
- लेकिन मुझे तो सब कुछ लगता है… ऐसा कैसे? लेकिन……शायद तुम सही कह रहे हो…
- मैं गलत कह रहा हूँ…… तुम सही सुन रही हो
- नहीं नहीं… अब सही सुनूंगी
- मैं गलत कहूँगा ही नहीं
- मुझे पता है
- और क्या क्या पता है तुम्हे?
galaxy - क्यूँ मुझे छूना  चाहते हो?
- नहीं, कुछ भी नहीं चाहता मैं
- चीख रहे हो… या कह रहे हो?
- सिर्फ बुदबुदाया मैंने ...और तुमने सुन भी लिया?
- छुआ भी तो...तुम्हारे लफ़्ज़ों को...शब्दों को...बुदबुदाने को...  मेरे हाथों में खरोच भी है।  तुम छू लो तो ये घाव भर जाए…
- कैसा घाव?
- शक्कर का...एकदम मीठा सा
- शक्कर कम कर दो, अपने आप भर जायेगा
- तुम छू लो तो काफी कुछ कम हो जायेगा। शक्कर भी… मैं भी, तुम भी और ये दूरी भी
- कम होना कहाँ अच्छा है ?
- तुम्हारी आँखें बहुत अच्छी है ...
- डूब जाओ उसमे
- उफ़...सारे रास्ते बंद हैं....अब निकलूँ कहाँ से?
- आंसू के साथ बह जाना… वो तो हमेशा निकलते रहते हैं
- नहीं… फिर तुम्हे मेरे लिए रोना पड़ेगा…वो मैं नहीं चाहती! फिर कहाँ से निकलूँ?
- निकलना ज़रुरी है?
- नहीं...बिलकुल नहीं...कभी नहीं!

29 comments:

nilesh mathur said...

कमाल की रचना है भाई, डूब सा गया था

दीपक 'मशाल' said...

दोस्त.. तुमने मेरे मजाक को इतनी गंभीरता से ले लिया??? :) जबकि यही मेरे साथ है जब भी कुछ लिखता हूँ, लोग यही समझ कर समझाने लगते हैं कि ये मेरी आपबीती है.. हा हा हा
ये भी सुन्दर रचना लगी.. वैसे शायद तुम सुनकर हंसो कि मैंने तुम्हारे बारे में ब्लॉग पर बाद में पढ़ा पहले समीर जी से तुम्हारी तारीफ़ सुनकर यहाँ आया हूँ..

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@नीलेश जी:
धन्यवाद :)

@दीपक:
इसमे हंसने वाली कोई बात नही है दोस्त... समीर जी बडे अच्छे इन्सान है.. हर बार उनकी टिप्पणिया हमेशा एक उत्साह से भर देती है.. वैसे मै तुम्हारे ब्लॉग पर पीडी की वजह से पहुचा था.. वो बज़ पर काफ़ी कुछ शेयर करता है.. और अब मेरी भी छानबीन की आदत हो गयी है.. लगा रहता हू उसीमें.. हमे झेलने का और जर्रानवाजी का शुक्रिया... :)

दिलीप said...

waah kahin kho sa gaya...umda lekhan...

Kapil Sharma said...

Pankaj Ji,
Lekhan ka pravah bahut hi umda hai,
seere se ant tak rachna ki bahdayi, bunayi dono hi kaabile tarif hai. aapko padhna hamesha ki tarah romanchak laga :)

M VERMA said...

निकलना ज़रुरी है?
नहीं...बिलकुल नहीं...कभी नहीं!

जी हाँ निकलना बिलकुल जरूरी नहीं है
बेहद सुन्दर शैली.

स्वप्न मञ्जूषा said...

bahut sundar ...

प्रवीण पाण्डेय said...

इस शैली में एक और रचना पढ़ी थी, गौरव सोलंकी की । बन्धुओं, हिन्दी में पठनीयता का उत्कृष्ट उदाहरण है यह मौन संवाद । सम्प्रेषण का चरम । मन बतियाता है तो हम उसे चिंतन प्रक्रिया में निचोड़कर कविता या लेख बनाते हैं । यह सीधा सीधा मन का बतियाना ही है, अपने प्राकृतिक सौन्दर्य में ।
पंकज एक चिंतनशील लेखक, कवि और व्यक्तित्व हैं । लेखनी से कुछ भी निकले, हृदय तक समाता है ।

विवेक रस्तोगी said...

वाह मजा आ गया, क्या लिखा है, डूब जाते हो लगता है लिखते लिखते और पाठक को भी डुबा देते हो।

Stuti Pandey said...

वाह! बहुत ही प्रभावशाली लेखन.

anjule shyam said...

उफ़...सारे रास्ते बंद हैं....अब निकलूँ कहाँ से?
- आंसू के साथ बह जाना… वो तो हमेशा निकलते रहते हैं
- नहीं… फिर तुम्हे मेरे लिए रोना पड़ेगा…वो मैं नहीं चाहती! फिर कहाँ से निकलूँ?
- निकलना ज़रुरी है?
- नहीं...बिलकुल नहीं...कभी नहीं!...........
एक अंतहीन बहस...और इस बहस में छिपी है...जिन्दगी......यू र ग्रेट सर....

ZEAL said...

निकलना ज़रुरी है?
नहीं...बिलकुल नहीं...कभी नहीं!
hmm..
kya kaid me rehna pasand hai?
haan,..tumhari hun, samarpit hun.
kya yahi samarpan hai?
haan, ..ye mera pyar hai.
hmm..
Ye pyar nahi, abhilasha hai..dabi hui
Pyar unmukt hota hai,
Pyar swacchand hota hai,
pyar kaid nahi,
pray mein azadi jaroori hai,
Main chahta hun..
Tum udo..khilkhilao..
Duniya dekho..seekho..mujhe bhi batao..
tum jao..aur baar-baar aao
mere paas !
mujhe maaloom hai tum aaogi,
kyunki tum mujhe pyar karti ho

hmm...ab samjhi !

bhool gayee?...tumhi ne to samjhaya thaa, kuchh din pehle..

Divya

सागर said...

सारे छांटे हुए लोग आजकल इधर ही हैं... कभी कभी तो लगता है क्लोन काम कर रहा है... आदमी एक ही है... समझ रहे हो ना ?

Unknown said...

sagar ji ham bhi samajh rahe hai...

jabardast lekhan...

kunwar ji,

rashmi ravija said...

बहुत ही धडकता अहसास लिए हुए है ..लेखन का यह अंश...दुबारा-तिबारा पढने को मजबूर करती हुई

वैसे किसके क्लोन की बात हो रही है... :)...ये राज़ खुलेगा,कभी??

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@दिलीप:
शुक्रिया दोस्त..

@नुक्ता:
तुम्हारी टिप्पणिया भी कम रोमान्चक नही है :)

@M Verma:
शुक्रिया...

@अदा दी:
एक बडा सा धन्यवाद :)

@प्रवीण जी:
गौरव सोलंकी का लिखा तो जबरदस्त था.. उसके अलावा जो मुझे पसन्द है उनमे एक दर्पण की ’चैट रूम (लघु कथा)’ है और सागर की एक पोस्ट जिसमे बाप और बेटे के बीच सम्वाद है... ’मेरी पसन्द’ मे आप इन सारी पोस्ट्स को पा सकते है... शुक्रिया हौसलाअफ़जाई के लिये.. :)

@विवेक जी:
शुक्रिया

@स्तुति जी:
धन्यवाद!!

@Anjule:
ज़िन्दगी भी तो एक बहस है.. कभी खुद से तो कभी किसी और से तो कभी खुदा से..

@दिव्या/ज़ील
बहुत सुन्दर.. सच्चा प्यार वापस लौट के आयेगा नही भी आया तो यादो मे तो रहेगा.. हमेशा हमारे साथ.. प्यारी लाईन्स.. और एक प्रोफ़ाईल बनाओ प्लीज़ (चाहो तो एनोनिमस ही रखो).. इतना अच्छा लिखती हो.. start writing.. now you have a great fan base also..

@सागर:
न.. समझदार होता तो शादी हो गयी होती.. तुम कितने समझदार हो.. तुम्हारी तो कितनी शादिया हो चुकी है.. :)

@कुंवर जी:
धन्यवाद!!

@रश्मि जी:
दुबारा, तिबारा पढने का शुक्रिया :) और सारे राज सागर के पास कैद है.. कमबख्त ने मुझे तक नही बताये :(

आप सबका शुक्रिया.. :D

richa said...

- कमेन्ट करना ज़रुरी है क्या?
- नहीं...बिलकुल नहीं... कभी कभी ख़ामोश भी रहना चाहिये...
- हाँ... कभी कभी बस एक मुस्कुराहट काफ़ी होती है... :)

Bhawna 'SATHI' said...

AGR YE SACH HAI TO KHUBSURAT HAI OR KALPNA HAI TO BHUT KHUBSURAT HAI.KISI KA CHU LENA HI BHUT SARI CHIJE KM KR DETA HAI..DURI,MAIN V TUM V,OR SAKKR V.PR EK SAGAR DE JATA HAI DUBNE KO TAIRNE KO...
SUNDER HAI..

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

क्या लिखते हो यार!
कब लिखते हो!?
मैं हमेशा देर से ही आता हूँ.
फीड सबस्क्राइब कर लेता हूँ.
वही ठीक रहेगा.

ZEAL said...

Pankaj ji, I'll learn typing in Devnagri and then will think of writing a blog. I often feel like expressing my views in my own blog .Your suggestion has been noted. Thanks .

As far as profile is concerned, i had that, but removed all information.Dunno why i fear people in virtual world. But soon i will put the basics there, at least.

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@निशान्त भाई:
धन्यवाद!! :)

@दिव्या/ ज़ील:
I was just suggesting to create a blog with an anonymous profile.. No need to put any information if YOU don't feel secure in this virtual world.

Regarding 'hindi typing', Gyan ji had shared a beautiful presentation with me. You can ask him for the same or let me know if I can send that to you.

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

कुछ के साथ होने वाले लम्बे, बहकते, वर्तुल घूम घूम एक खास जगह आते चैट याद आ गए । :)
इतनी गहनता के साथ ऐसी प्रस्तुति!
वाकई कवि परकायाप्रवेशी होता है।
मुझे अपनी ई मेल फीड दे दे पंकज !

Manoj K said...

book it

bas itna kehna hai

manojkhatrijaipur.blogspot.com

स्वप्निल तिवारी said...

woooooooowwwwwwwwwwwww......kya likha hai mere bhai ... tumhari post padhne me jo maza milta hai wo ..hadppa mohan jodro agar main dhundh lun to bhi nahi milega..keep writing ..god bless

Amrendra Nath Tripathi said...

क्या यह किसी चैट की अविकल ( बगैर काट-छांट के ) प्रस्तुति
है अथवा कलात्मक ? जवाब अपरिहार्य नहीं !

Abhishek Ojha said...

कुछ लाईने और बातें... शाश्वत होती हैं.... सभी कहते हैं कभी न कभी. अलग अलग परिपेक्ष्य में. वैसे कुछ लाईने मिली इस पोस्ट में.

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

bahut hi sundar rachna!!!!!padh ke maza aa gaya.......

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@गिरिजेश जी:
आपके हरेक खूबसूरत लफ्ज़ के लिये शुक्रिया.. ईमेल फीड भेज दी गयी है :)

@मनोज
शुक्रिया दोस्त

@स्वप्निल
शुक्रिया दोस्त :)

@अमरेन्द्र भाई
बस ऑफिस में बैठके खाली शैतानी दिमाग दौड़ गया, फिर उसे थोडा बहुत काटा छांटा और पेश कर दिया|

@अभिषेक
:) साफ्टवेयर वाले रियूज तो जानते ही हैं एट लीस्ट

@वंदना
शुक्रिया

अनूप शुक्ल said...

वाह!

हमारी मानो तो एक ठो सीबीआई और दू ठो जांच आयोग बैठा दो। सब पता चल जायेगा किसने नष्ट किया मोहन्जोदाड़ो और किसने निपटाया हडप्पा!

जय हो!