Friday, April 23, 2010
अहसान फरामोश सा एक दिन..
Monday, April 19, 2010
सबसे बडा टिकट..
कहते है एक तस्वीर कई हज़ार शब्दो के बराबर होती है… :)
बहुत खुश हू और बहुत एक्साईटेड भी… दिमाग मे तरह तरह के विचार भी आ रहे है.. जैसे बैनर पर क्या लिखू.. क्या पहनकर जाऊ.. इत्यादि… इत्यादि… :)
वैसे काफ़ी तमन्नाये ऐसी भी है जिनका पूरा होना बहुत मुश्किल दिखता है जैसे:
- ओल्ड ट्रैफ़र्ड स्टेडियम मे बैठकर रोनाल्डो को मानचेस्टर यूनाईटेड के लिये खेलते हुये देखना.. (आजकल ये रीयाल मैड्रिड मे है..)
- किसी टेनिस स्टेडियम से फ़ेडरर और नडाल को किसी ग्रैंडस्लैम के लिये जूझते हुये देखना…(उन दोनो की फ़ार्म और अपनी जेब, दोनो को देखकर ऐसा होना बडा मुश्किल लगता है…)
(*If I am violating any kind of law by putting this image over here. Kindly let me know. I will surely do the needful.)
Sunday, April 18, 2010
तुरई पुराण…
४ दिन पहले तुरई/तरोई खाने का बहुत मन कर रहा था… बनाये भी, खाये भी और साथ मे बज़ पर बजबजाये भी… ससुर (अजदक बाबा का फ़ेव शब्द) अब तक कोई न कोई उसपर टुनटुनाये जा रहा है…
आप भी इस तुरई पुराण का लुत्फ़ उठाईये, टुनटुनाईये/बज़बज़ाईये और देखिये की छोटी छोटी बाते भी ज़िन्दगी मे कितना तुरई - स्वाद लाती है… :)
हम तो चले फ़िर से तुरई बनाने :)
अभी तुरई की सब्जी बनाने जा रहा हू... यहा के रेस्टरा मे न जाने तुरई क्यू नही मिलती है :D
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Stuti Pandey - तुरई यहाँ पे मिलती है! :)Apr 14
Manisha Pandey - अब रेस्तरां में जाकर भी तुम तुरई ही खाना चाहो तो तुम्हारा भगवान ही मालिक है। तुरई कोई खाने की सब्जी होती है। इतनी बेकार।Apr 14
Praveen Pandey - तुरई पौष्टिक तो है । बाहर तो हम वही जाकर खाते हैं जो घर में बनाना कठिन होता है । जैसे पिज्जा व चाइनीज़ ।
बाहर के 70 रु के पराठे से घर का तो बहुत अच्छा होता है ।Apr 14
प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI - तुरई ....शायद तरोई है जिसे चिकने और नसहे दो रूपों में जाना जाता है .......चिकनी वाले को तो इलाहाबाद में घिया कहते थे शायद ?
काहे मनीषा जी ?
बाकी तो हम रेस्टोरेंट में केवल किसी की जेब हल्की करने या अपनी करवाने ही जाते हैं !
सच्ची कसम से !Apr 14
Pankaj Upadhyay - घर की तरोई/तुरई ज़िन्दाबाद... पौष्टिकता अमर रहे.. सिकुड के इतनी रह गयी थी कि लगा की म्यूज़ियम मे लगा दे.. अचार की तरह से फ़िर सब्जी खायी गयी..
अभी कुल्फ़ी का प्लान है.. रात की कुल्फ़ी खाने बोरीवली - वेस्ट जा रहे है... :DApr 14
Stuti Pandey - हा हा ... तुरई हवा की तरह गायब हो जाती है कडाही में जाते ही! इसलिए उसमे थोडा सा चना दाल ड़ाल के बनाया जाता है - क्वान्टिटी बढ़ने के लिएApr 14
Prashant Priyadarshi - हम इंतजार कर रहे हैं कि आज कुल्फी वाला आता है कि नहीं.. :D
लगभग हर रोज इसी समय यहाँ से गुजरता है..Apr 14
Prashant Priyadarshi - यहाँ तुरई होटल-हाट कहीं भी नहीं मिलता है.. :(Apr 14
प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI - :)
ई गुरु अब सही चीज लाये हो निकाल के !
नेनुआ
हाँ यही तो इलाहाबादी नाम है !
घिया के लिए मुआफी !
प्राइमरी के हैये हाँ !
वहु पूरी ठसक से !Apr 14
Manisha Pandey - बेशरम, अकेले-अकेले कुल्फी। मैं मुंबई में थी तो एक बार भी मुंह से नहीं निकला कि बोरीवली वेस्ट आ जाओ, तुम्हें कुल्फी तो खिला दूं कम से कम। नहीं, सवालै पैदा नहीं होता। अब जनाब कुल्फी चाभेंगे। भगवान करे, देही में लगे ही नहीं। पेट खराब हो जाए।Apr 14
Prashant Priyadarshi - टेंसन मत लो मनीषा.. उसे नहीं मिलेगा.. वो तो सिर्फ चेन्नई में मेरे घर के बाहर मिलता है इस समय..Apr 14
प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI - ऐ भैया ई गुरु !
ज़रा हमको लखनवी प्रकाश कुल्फी का फोटो तो दिखाओ
इन्हा सब ललचवा रहें है !Apr 14
Pankaj Upadhyay - हा हा हा :)
मनीषा - मैने सबको बोल रखा है कि मैने तुम्हे इनआर्बिट के पीछे कुल्फ़ी खिलायी है.. अब झूठ बोलकर मेरा नाम मत खराब करो!
पीडी जी - मै तो चला कुल्फ़ी खाने.. :)
मास्साब - :) फ़ोटुवा तो हमारे इस CDMA वाले डब्बे से नही आयेगी.. ब्लैकबेरी लेने दीजिये, फ़िर भेजते है.. और ’नेनुआ’ ही तो असल नाम है.. :DApr 15
Stuti Pandey - इ लीजिये... हम इहाँ वाले का दरसन करवाते हैं - दुकान का नाम है "cold stone creamery" गजबे का स्वाद रहता है !
http://z.about.com/d/raleighdurham/1/0/s/0/-/-/cold-stone.jpgApr 15
100 din - https://mail.google.com/mail/?shva=1#buzz/114995198774335996683
आप लोग समझ लीं कि ई कुल्फी ई-गुरु की तरफ से है, हम समझ सकत हैं ऊ अपने आठ ब्लॉग में बिजी होइहयं.Apr 15
Prashant Priyadarshi - ए स्तुति.. काहे चिढा रही है रे? पटने में घर है ना? आओगी तो खियार के मारेंगे.. :(Apr 15
Stuti Pandey - हा हा ...ऐ परसांत ..काहे ;ला टिडिंग भिडिंग कर रहे हो... जरंती हो रहा है का? जहिया आयेंगे तहिया न ? तब देखल जायेगा :-DApr 15
Prashant Priyadarshi - चलो जाओ कामिक्स पढ़ो.. नयका बला कामिक्स भेज रहे हैं.. :DApr 15
Stuti Pandey - हाँ...हाली हाली भेजोApr 15
प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI - @ 100 दिन !
भैया वा प्रकाश कुल्फी का असली फोटूवा या लिंक मा है
http://aromacookery.com/wp-content/uploads/2008/05/vintageindia_08.jpgApr 15
Sanjeet Tripathi - aur kauno sabji nai mili torai ke alava, ek no k mamu ho yar...i hate this sabji....
;)Apr 15
Pankaj Upadhyay - बाहर निकले तो अमूल का शो-रूम अभी भी खुला हुआ था लेकिन अब सोचे थे कि वेस्ट जाना है तो गये वेस्ट ही.. बटर स्काच खाये और साथ मे फ़ालूदा भी.. अब पेट अच्छा लुक दे रहा है.. सोया जाय..
@Sanjeet - ha ha.. अरे नही.. काफ़ी दिनो से नही खाये थे.. सोचा, चलो आज बनाते है.. बस तो बना के हम तो मगन हो लिये..
@पीडी - भैया, तुमरी कुल्फ़ी आयी की नही? इतना रस्ता तो किसी लडकी के लिये देखे होते तो वो आ गयी होती :DEditApr 15
Sanjeet Tripathi - kya yar ek to बटर स्काच aur upar se फ़ालूदा भी, sahi hai chidhao, chidhao....brahmin aadmi ki laar tapakwao.....;)Apr 15
प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI - @Sanjeet Tripathi - पंडित जी ! की कीमती लार !!Apr 15
Manisha Pandey - @ pankaj - झूठे, कब खिलाई कुल्फी। इनऑर्बिट के पीछे तो जाने तो तुमने तो भैंस वाले तबेले के आगे भी नहीं खिलाई। ऐसे सार्वजनिक मंच से झूठ। तौबा-तौबा।Apr 15
Praveen Pandey - अब जो भी असत्य सिद्ध होगा, उसे सारे कमेंटकर्ताओं को कुल्फी खिलानी पड़ेगी । हमारी तिथि बता दी जाये, हम पहुँच जायेंगे ।Apr 15
पद्म सिंह - तुरई और नेनुआ में फरक ?? बताएगा कोई ?........... (नही तो हम बताऊं)Apr 15
पद्म सिंह - क्या हुआ बाबू ?Apr 15
Prashant Priyadarshi - Office में होगा जी.. काहे को परेशान कर रहे हैं बाबू को?Apr 15
Pankaj Upadhyay - @PD - haan ji office mein hi hain..
@ Padm Singh - bataiye saheb aap bhi bataiye.. wasie bhi aap jo batate hain, achha hi batate hain :DApr 15
पद्म सिंह - भईया लोगन !
हम कौनो सब्जी-गुरु तो हैं नहीं .... ई तो शादी करके सिखा दिए गए हैं (नून, तेल और गैस का दाम भी पता है)
वैसे तो दोनों को लोग एक ही चीज़ जानते हैं लेकिन थोड़ा सा फरक है .... नेनुआ चिकना और गहरे हरे रंग का होता है ... जब कि तोरई या तोरी की धारियां उठी हुई होती हैं और वो कम हरे रंग का होता है .... नेनुआ और तोरी में तोरी ज्यादा मंहगी होती है और सब्जी भी बेहतर बनती है .... ज्यादातर जगहों पर दोनों को तोरी ही कहते हैं .... (आवा समझ में)Apr 15
प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI - तरोई ! मतलब नसही (तरोई की धारी) अधिक गुणकारी और फायदेमंद मानी जाती है ....सो मंहगी !Apr 15
Sameer Lal - तुरई तो हमें भी प्रिय है. वैसे कहते हैं कि तुरई पसंद आने लगे मतलब या तो घर से दूर हो या फिर उम्र बढ़ रही है. :)Apr 15
अजित वडनेरकर - तुरई, तोरी को जीरा और घी के साथ छौंकिए कि अहा अहा।
मछली को जल तुरई भी कहा जाता है:)Apr 15
पद्म सिंह - तुरई के छिलका की तल के सब्जी भी बहुत मजेदार बनती है .... सप्लीमेंट्री की तरहApr 16
Dr. Mahesh Sinha - राज रसोई का . बड़े बड़े विशेषज्ञ हैं यहाँ :)Apr 16
HIMANSHU MOHAN - ये तुरई…उफ़
ये पोस्ट लगता है म्यूट करनी पड़ेगी
हमारे घर में भी तुरई को खूब पसन्द किया जाता है।
और ये उबाल के बनती है - सो ये भी नहीं कह सकते कि "भाड़ में जाए तुरई"4:08 pm
Stuti Pandey - हमने कल रात को ही तुरई बनायीं थी थोड़ी बच गयी है, आज भी चलेगी!6:41 pm
Sanjeet Tripathi - राम-राम, और कौनो सब्जी नई मिली आपको?6:58 pm
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Friday, April 16, 2010
ख्वाहिशो की स्टेटस रिपोर्ट
आसमान तब भी उतना ही बड़ा था… बारिशें तब भी पूरा ही भिगोतीं थीं… वो पानी के बताशे तब भी लार गिरवाते थे… और वो आइसक्रीम तो उफ़्फ़…
अस्थमा मरीज होने के कारण ठंडी चीज़ें खाना मना था… मतलब घर वालो के सामने खाना मना था… बाहर तो बस कुल्फियों के दौर चलते थे… तबियत खराब होने पर पुछाई होती थी कि क्या खाया, कब खाया… तो हम कोई हरिश्चन्द्र थोडे ही थे…
सपनो की एक दुनिया थी जहा के हम सिकंदर थे… सपनो मे हम स्ट्रीट हॉक की बाईक चलाते थे… तो कभी एक ओवर मे छह छ्कके मारते थे… आस पास काफ़ी काल्पनिक पात्र थे- सुपर कमांडो ध्रुव तब इसलिये अच्छा लगता था कि उसके पास कोई स्पेशल पावर नही थी और वो हमारे जैसा आम इन्सान ही था… ईश्वर जैसे काल्पनिक पात्र से तो हम घन्टो बतियाते रहते थे और बात बात पर कुछ न कुछ माँगा करते थे…
फ़ूफ़ा जी इरीगेशन डिपार्ट्मेन्ट मे इन्जीनियर है… हमे लगता था कि बडे पैसे वाले है… एक बार चुपके से खत लिखकर दांत चियारते हुये कुछ बोर्ड गेम्स की ख्वाहिश जाहिर कर दी… बोर्ड गेम्स तो आये पर माता श्री ने हमारी अच्छी क्लास ली और इन ख्वाहिशो को वहीं विराम लगा… अभी कुछ दिन पहले बनारस गया था… बोर्ड गेम्स की उमर तो निकल गयी थी… फ़ूफ़ा जी बोले चलो आज तुम्हे ज़िन्दगी की सच्चाई दिखाये… कुछ फ़िलोसोफ़िकल मूड मे थे… नही तो हम कुछ अज़ीब से मूड मे रहे होगे जो उन्होने पढ लिया होगा…
जो भी हो, थोडी देर मे हम लोग मणिकर्णिका घाट पर खड़े थे… लाशें धू धू करके जल रही थी… लोग बिलख रहे थे… वहीँ कुछ लोग लकड़ियाँ बेच रहे थे… चन्दन की वीआईपी लकड़ियाँ भी थी… फ़ूफ़ा जी हमको समझा रहे थे कि ये कटु है लेकिन सत्य है… सबको यही आना है…
और हम सोच रहे थे कि ख्वाहिशे भी कैसी कैसी… कुछ ख्वाहिशे जो जल रही है और कुछ वही तराजुओ पर तौली जा रही है…
ज़िन्दगी की इस रेलगाड़ी में ख्वाहिशो को हर प्लेट्फ़ार्म पर चढ़ते-उतरते देखा है… बुद्धा की तरह मैं भी पशोपेश में हूँ कि ज़िन्दगी का लक्ष्य क्या होना चाहिये?
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अपनी पहली कविता जो मैने ८-९ साल की उम्र मे लिखी थी और जो लखीमपुर खीरी के एक लोकल डेली मे छपी थी… बडे बडे कविगण किसी बात का कोई शक न करे… उस जमाने मे वो पेपर वकीलो को फ़्री मे मिलता है… यानी उसे कोई नही पढता था… वैसे पढता उसे अभी भी कोई नही है :)
मेरे घर मे आयी टीवी
मैने उसमे देखी बीवी
’चित्रहार’ मे आया गाना
कल – परसो तुम भी ले आना॥
सब – पढ्ते है उपन्यास
सोमवार को आया ’उपन्यास’,
मंगलवार को आये ’हमराही’
बुधवार को ’तलाश’ की बारी
गुरुवार को ’बानो – बेगम’
शुक्रवार को ’संघर्ष’ का कार्यक्रम
नाट्क देखो बडा विशाल,
शनिवार को आया ’मशाल’,
समाचार मे आया टैंकर
रविवार को आये ’अम्बेडकर’
फिर बच्चो कि चुनिया मुनिया
सोमवार को ’नन्ही दुनिया’॥
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नवम्बर २००६ मे पहली पोस्ट डालने के बाद आज अप्रैल २०१० मे हमने सैकड़ा पूरा किया है… अपने आलसीपने पर फ़िर कभी बात करते है… फ़िलहाल बधाई के अलावा आप हमारी गुल्लक मे अपने तजुर्बे की कौडिया डाल सकते है…
ज़िन्दगी का लक्ष्य क्या होना चाहिये?
……
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Monday, April 12, 2010
दोस्ती की कॉकटेल!!
जिंदगी का मतलब....
जिंदगी का मतलब
जिंदगी का मतलब
जिंदगी का मतलब
जिंदगी का मतलब ...
जिंदगी का मतलब ......................................दोस्ती है
और सच्ची दोस्ती वो है कि 'भगा साले आगे स्विफ्ट में मस्त माल है..':)