आजकल तन्हाई का फ़ैशन है। मेरे हम उम्र दोस्त जिनके तकरीबन १०० से ज्यादा फ़ेसबुक फ़्रेन्ड्स है और तकरीबन उससे ज्यादा कान्टेक्ट्स सेल फ़ोन मे है, तन्हा है..और उन्हे नही पता कि ऎसा क्यू है?
कभी कभी मै भी सेन्टियाता हू तो पूरी कान्टेक्ट लिस्ट छान डालता हू, बात करने वाला कोई नही मिलता। कभी कभी लगता है कि “मै कौन हू? किसलिये धरती पर आया हू और मेरा मक्सद क्या है?” कभी कभी हिमालय अपनी तरफ़ साधू बनने के लिये बुलाता है और कभी कभी ये जिप्सी समुदाय प्रभावित करता है..कभी कभी सात्विक ज़िन्दगी अपनी तरफ़ खीचती है और कभी कभी ’हेडोनिज़्म’ समझने का मन करता है..कभी ओशो अपनी तरफ़ खीचते है तो कभी ये राबिन शर्मा..
आज की युवा जेनेरेशन इतनी ट्र्ब्लड क्यू है? कही पढा है कि क्रिस्टीन हास्लर ने इस पर एक बुक लिखी है ”20 something, 20 everything”..पढ्नी है लेकिन मै आपसे पूछता हू कि ऐसा क्यू है??
क्यू मेरे फ़ेसबुक के सारे साईड ऎड्स ’Are you Single?’ बोलते है..क्यू मेरे सेलफ़ोन पर इस तरीके के मेसेज आते रहते है-
“Tired of sitting alone on a Saturday night??? Wanna know when will you find the Love of your life? To know SMS LUV (Ur Name) to blah blah”
“Ab Akelapan Chodiye aur Chat kijiye. Dial … for Yuvika, …. for siya..blah blah”
“Someone Somewhere is Made for Me?? When Will I find My True Love?? SMS LUV (Ur Name) to blah blah”
क्या आजकल सब कुछ बिकाऊ है, इन्सान का अकेलापन भी? आज का युवा ट्र्ब्ल्ड है, कन्फ़्यूज्ड है, अकेला है और बोरड(Bored) है…
इसके लिये कौन से कारक जिम्मेदार है??
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P.S. २-३ दिन से फ़्लैट मे अकेला हू, रूममेट्स घर गये हुए है तो काफ़ी समय मिल गया एक इन्ट्रोस्पेक्शन के लिये..काफ़ी दिनो के बाद आज हिन्दी ब्लाग्स पढ्ने का समय मिला..बहुत तकलीफ़ हुई, यहा आता था लोगो से सीखने लेकिन ये दुनिया भी हमारी असल दुनिया ही निकली..वही ग्रुपिज़्म, वही जाति, धर्म, लिन्ग और भासा विवाद…मन छुब्ध है..
अदा दी ने एक अलग मिसाल दी है… हैट्स आफ़ दी..
कल से ज़िन्दगी की एक नयी शुरुआत कर रहा हू, नये ओर्गेनाईज़ेशन मे पहला दिन है..आप लोगो के आश्रीवाद की कामना है… और सबको मेरी तरफ़ से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये…