१- ज़िन्दगी क्या है जानने के लिये,
ज़िन्दा रहना बहुत ज़रूरी है।
आजतक कोई भी रहा तो नही॥
२- आओ हम सब पहन ले आईने,
सारे देखेगे अपना ही चेहरा।
सबको सारे हसी लगेगे यहा॥
३- लब तेरे मीर ने भी देखे है,
पन्खुडी एक गुलाब की सी है।
बाते सुनते गालिब हो जाते॥
४- ऐसे बिखरे है रात – दिन जैसे
मोतियो वाला हार टूट गया।
तुमने मुझको पिरोके रखा था॥
त्रिवेणी आखिर क्या है??
गुलज़ार खुद कहते है-
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काश मेरी भी ऐसी आवाज़ होती!! :)
गुलज़ार साब की आवाज़ मे उनकी इक नज़्म सुनिये –
मकान की ऊपरी मन्ज़िल पे अब कोई नही रहता,
वो कमरे बन्द है कबसे…..
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नाम सोचा ही नही था, कि है कि नही
‘अमा’ कह के बुला लिया किसी ने,
‘ए जी’ कह के बुलाया दूज़े ने,
‘अबे ओ’ यार लोग कहते है,
जो भी यू जिस किसी के जी आया,
उसने वैसे ही बस पुकार लिया॥
तुमने एक मोड पर अचानक जब,
मुझको गुलज़ार कह्के आवाज़ दी,
एक सीपी से खुल गया मोती,
मुझको एक माणी मिल गया जैसे॥
आह!! ये नाम खूबसूरत है..
फिर मुझे नाम से बुलाओ तो………
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मेरी पहली त्रिवेणी -
आजकल घन्टो आईना देखता रहता हू,
आखो के पास एक दाग सा बन रहा है।
कभी किसी ने बडे प्यार से मेरी आखे चूमी थी॥