पता नहीं कौन हो तुम मेरी    
किस जन्म का है ये बन्धन     
क्यों मिलती हो मुझसे     
क्यों फिर चली जाती हो     
क्यों मुझे सिर्फ़ तुम     
सिर्फ़ तुम याद आती हो..
   
मैं तुम्हारे दीवानों में     
एक अदना सा दीवाना हूँ........
   
चाँद जैसा आवारा नहीं     
जो रातों मैं तुम्हरे घर     
के चक्कर लगाऊ,     
पवन जैसा बेशरम भी नहीं     
जो तुम्हरे तन को स्पर्श करता     
हुआ चला जाऊं,
   
समंदर भी नहीं, जिससे करती     
होगी तुम बातें,     
उन सितारों मैं से कोई भी     
सितारा नहीं     
जिन्हें गिनती होगी तुम     
सारी सारी रातें,
   
वो फूल नहीं, जिसकी पन्खुडी    
तोड़ तोड़ कर गिराती होगी तुम,     
जब कभी मेरे बारे मैं सोंचते हुए     
अपने घर के चक्कर लगाती होगी तुम,
   
मुझसे कहीं अच्छा है तुम्हारा     
वो दुपट्टा, जो छोड़ता न होगा तुम्हे    
चाहे करती होगी कितने यतन     
और वो तुम्हरे हाथों के कंगन     
तुम्हे स्वप्न से उठाते होंगे     
जब कभी सोते हुए तुम्हारे     
हाथ आपस मैं लड़ जाते होंगे 
   
वो दर्पण तुम्हे रोज़ ही देखता होगा     
जब करती होगी तुम श्रृंगार     
पर मैं तुम्हे शायद ही देख पाऊँ इस     
जीवन मैं ऐ मेरे प्रथम प्यार........ 
   
धरती भी कभी आसमा से मिल नहीं पाती     
पर क्षितिज इन दोनों को मिलाता है,     
समंदर भी दो किनारों को पास लाता है     
अब देखना है की वो मेरा इश्वर     
मुझे तुमसे मिलवाता है     
या यूँ ही एक गरीब को विरह     
की आग मैं जलाता है... ।
 
