काफ़ी दिनों से कुछ नहीं लिखा, सोंचा आज चलो कुछ लिखते हैं। आजकल काफ़ी अजीब अजीब से ख्याल मन में आ रहे हैं। बस तो उन ख्यालों पर एक विराम लगाता हूँ और अपने चहेते गानों में खो जाता हूँ:
१- खमाज
इस गाने को जब भी सुनता हूँ, आँखें अपने आप बंद हो जाती हैं और ये फयूज़न मेरी रगों में दौड़ने लगता है। ये गाना फयूज़न नाम के पाकिस्तानी बैंड के द्वारा रचित है और उन्होंने गितार और ड्रम के साथ राग खमाज को गाया है। मुझे राग नहीं पता हैं लेकिन इसका संगीत मुझे संगीत सीखने को प्रेरित करता है। रागों का संगीत और खमाज राग ।
२- अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो:
नब्बे के दशक में दूरदर्शन पर एक धारावाहिक शुरू हुआ था जिसका नाम था ‘कहकशां’। जगजीत जी ने इसकी कुछ गज़लें गायी थीं। ये उनमें से एक है। नीरज रोहिल्ला जी को धन्यवाद, इस नज़्म से मेरा परिचय करवाने के लिए॥
३- चले तो कट ही जाएगा:
मुस्सरत नासिर जी की आवाज़ ने इस गाने को वो इज्ज़त दी जो इसे शायद कभी न मिलती। इस आवाज़ में वो नशा है जिसे पुरानी से पुरानी शराब भी नहीं दे सकती।
४- लम्बी जुदाई:
इस गाने को कोई परिचय नहीं चहिये। रेशमा जी की गायी हुई हर एक हरकत शरीर में एक बिजली पैदा करती है। रेशमा जो को मेरा सादर नमन। आपने जब भी गाया बहुत अच्छा गाया। आपकी एल्बम ‘दर्द’ में मुझे दुनिया के सारे दर्द दिखे और आपकी दर्द भरी आवाज़ में मैंने उन्हें बहुत करीब से महसूस किया।
५- नज़र मुझसे मिलाती हो:
इस गाने से ही मैंने जाना की ग़ज़ल क्या होती है। मेरी ज़िन्दगी का एक पन्ना इस गाने से शुरू होता है और वो पन्ना बहुत ही हसीं है। विडियो थोड़ा भद्दा है इसलिए उसे यहाँ देने के लिए मैं क्षमा चाहूँगा।
६- थोड़ा है थोड़े की जरूरत है:
किशोर दा ज़िन्दगी की सक्चाई के साथ ये गाना गाते हैं। मैंजब भी सफलता के लिए पागल हो जाता हूँ यहीं गाना मुझे धरा पे लाता है और समझाता है की मैंने क्या क्या खोया है यहाँ तक पहुँचने में और मुझे समझाता की ये ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत है।
७- खुदा करे की मोहब्बत में:
नूरजहाँ ने इसे जिस अंदाज़ में गाया है वो कहीं और नहीं मिल सकता। तलत अज़ीज़ ने भी इसे गाया है और वो भी इसके साथ इन्साफ कर पाए हैं।
८- पहला नशा:
इसे में कभी भी सुन सकता हूँ और आमिर खान की तरह झूमने का जी भी करता है। ये गाना आपके दूसरे,तीसरे.. प्यार पर भी उतना ही अच्छा लगता है जितने पहले पर।
९- तुम पुकार लो:
तुम्हारा इंतेज़ार है….हेमंत दा की आवाज़ और फिर एक खामोशी…एक सुकून ….एक शान्ति। एक आम आदमी की आवाज़ ये गाना आज भी कहीं बजता है, तो में सब कुछ भूलकर इसकी तरफ़ बढ़ता चला जाता हूँ।
१०- ज़िन्दगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मकाम:
किशोर दा जब ज़िन्दगी की इस सक्चाई से रूबरू करवाते हैं तो लगता है की बस हम अकेले बैठे हो और अपने पुराने मकामों को याद करें और फिर एक दो आंसू गिराकर उन्हें सार्थक बनायें।
११- मिटटी दा बावा:
ये एक पंजाबी गाना है जिमें एक माँ अपने एक बच्चे के लिए तरसती है और एक मिटटी का गुड्डा बनाकर उसे याद करती है. जगजीत सर की आवाज़ में वो दर्द और भी गहरा हो जाता है।
काफ़ी गाने लिस्ट छोटी होने के कारण से छूट गए हैं। लेकिन ये गाने वो रत्न है जो मुझे अभी भी सुकून देते हैं और मेरे अंदर फिर से वो जज्बा – ऐ – मासूम पैदा करते हैं..