Tuesday, December 8, 2009

ज़िन्दगी हमारी रोज़ क्लास लेती है..

 

मै, तुम, बेटा और दीवारे….

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कभी कभी बस किसी का लिखा दिल को छू जाता है…कुछ लफ़्ज कभी नही भूलते, कुछ ज़ुमले बस जबा से लग जाते है…

ऐसी ही एक कविता मैने हाल मे ही पढी (चिट्ठाचर्चा के सौजन्य से)…और न जाने क्यू बार बार पढने को मन होता है…… मैने सोचा कि मै अपने ब्लाग के माध्यम से उन्हे प्रणाम कर सकू॥

http://tiwarimukesh.blogspot.com/2009/11/blog-post_30.html

“अक्सर,
रातों को
मैं, तुम, बेटा और दीवारें
बस इतना ही बड़ा संसार होता है
बेटे की अपनी दुनिया है / उसके अपने सपने
दीवारें कभी बोलती नही
और हमारे बीच अबोला
बस इतना ही बड़ा संसार होता है।


तुम्हारे पास है
अपने ना होने का अहसास /
बेरंग हुये सपने /
और दिनभर की खीज
मेरे पास है
दिनभर की थकान /
पसीने की बू
और वक्त से पीछे चल रहे माँ-बाप


ना,
तुमने मुझे समझने की कोशिश की
ना मैं समझ पाया तुम्हें कभी
तुम्हारे पास हैं थके-थके से प्रश्न
मेरे पास हारे हुये जवाब
अब हर शाम गुजर जाती है
तुम्हारे चेहरे पर टंगी चुप्पी पढ़ने में
रात फिर बँट जाती है
मेरे, तुम्हारे, बेटे और दीवारों के बीच…”

विराग जी की ये पन्क्तिया भी बहुत अच्छी लगी…

मत आओ मेरे जीवन में,मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा!!

“घर में लोग सिसकते हैं,
और जाने कितने भूखो मरते हैं!
कितने पापी पेट की खातिर,
जाने क्या क्या करते हैं!!
इस क्षुधा अग्नि के घर में रहकर मैं तुमको श्रंगार नहीं दे पाऊँगा!
मत आओ मेरे जीवन में,मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा!!”

मेरी चन्द त्रिवेणिया -

1- एक छटपटाहट सी हो रही है मन मे,
एक ज़माने के बाद आज अकेला बैठा हू।

डरता हू, कही तुम फ़िर से याद आ गये तो….

2- ख्वाबो की विन्डो बेतरतीब खुलती गयी,
और आपरेटिन्ग सिस्ट्म-ए-ज़िन्दगी हैन्ग हो गया।

ज़िन्दगी!! अब तो ctrl+alt+ delete भी काम नही करता….

Monday, November 30, 2009

वो गुल्लक फ़ोड आया!!

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कुछ दुआये
मै एक गुल्लक मे
रखता था..
चन्द कौडिया थी,
रहमतो मे लिपटी हुयी..
बुजुर्गो ने बरकते दी थी..

 

उस बूढे फ़कीर ने,
जब सर पे हाथ रखा,
दुआ दी कि एक अच्छे इन्सा
बने रहना…
वो सारी कौडिया मै
उसके कासे मे डाल आया…..

आज…
आज मै वो गुल्लक फ़ोड आया…….॥

Monday, November 9, 2009

गुलज़ार साब और मेरी पहली त्रिवेणी….

१- ज़िन्दगी क्या है जानने के लिये,
    ज़िन्दा रहना बहुत ज़रूरी है।

   आजतक कोई भी रहा तो नही॥

२- आओ हम सब पहन ले आईने,
    सारे देखेगे अपना ही चेहरा।

    सबको सारे हसी लगेगे यहा॥

३- लब तेरे मीर ने भी देखे है,
    पन्खुडी एक गुलाब की सी है।

    बाते सुनते गालिब हो जाते॥

४- ऐसे बिखरे है रात – दिन जैसे
    मोतियो वाला हार टूट गया।

   तुमने मुझको पिरोके रखा था॥

गुलज़ार त्रिवेणी

त्रिवेणी आखिर क्या है??

गुलज़ार खुद कहते है-

त्रिवेणी आखिर क्या है??

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काश मेरी भी ऐसी आवाज़ होती!! :)

गुलज़ार साब की आवाज़ मे उनकी इक नज़्म सुनिये –

मकान की ऊपरी मन्ज़िल पे अब कोई नही रहता,

वो कमरे बन्द है कबसे…..

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नाम सोचा ही नही था, कि है कि नही
‘अमा’ कह के बुला लिया किसी ने,
‘ए जी’ कह के बुलाया दूज़े ने,
‘अबे ओ’ यार लोग कहते है,
जो भी यू जिस किसी के जी आया,
उसने वैसे ही बस पुकार लिया॥

तुमने एक मोड पर अचानक जब,
मुझको गुलज़ार कह्के आवाज़ दी,
एक सीपी से खुल गया मोती,
मुझको एक माणी मिल गया जैसे॥
आह!! ये नाम खूबसूरत है..

फिर मुझे नाम से बुलाओ तो………

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मेरी पहली त्रिवेणी -

आजकल घन्टो आईना देखता रहता हू,
आखो के पास एक दाग सा बन रहा है।


कभी किसी ने बडे प्यार से मेरी आखे चूमी थी॥

Sunday, November 1, 2009

मै और मेरी डल ज़िन्दगी!!

 

Lonely

वो पल
जो तुमने मुझसे
उधार मागे थे..
तुम्हारा बटुआ
घर रह गया था शायद
और तुम्हे घर वापस भी जाना था... 


मेरी ज़िन्दगी भी तुम्हारे
पास ही रह गयी है..
उस दिन तुम्हे पहनने को दी थी..
उस काफ़ी हाउस का एसी कुछ 
ज्यादा ही ठन्डा था न?

 

तब से ये मागी हुयी
ज़िन्दगी पहन रहा हू
न जाने कबसे धोयी भी नही है………
समय भी नही मिलता……, आजकल
काम भी बढ गया है……
और बाम्बे मे उतनी ठन्ड भी नही पडती…

 

सच कहू………..
तो नयी लेने की हिम्मत नही रही
आजकल गारन्टी भी तो नही रहती
और मेरी फ़िटिग की मिलनी भी
बहुत मुश्किल है……

 

कभी इधर आना हो तो
लेती आना……
अगर तुम्हारी विदेशी परफ़्यूम ने
उसे खुशबुओ से ना भर दिया हो तो…..
तुम्हे तो पता है ना कि मुझपर वो
डल (dull) और सादी ज़िन्दगी कितनी सूट करती है……

लोग कहते थे कि मै उसमे अच्छा दिखता था॥……..

Saturday, October 24, 2009

इन्डीब्लागर आफ़ द मन्थ!!

ब्लागर दोस्तो!! हमरा ब्लाग पहली बार कही नामिनेट हुआ है॥ हा जी हमने खुद ही  किया था :) लेकिन अच्छा लग रहा है कि कही नामिनेट तो हुए और १८४ और महान ब्लाग्स है जिनसे काम्पटीशन है॥ आपको यदि हमारी कविताये अच्छी लगी हो, तो प्लीज़ वोट करे..

आप ५ वोट कर सकते है… मेरे साथ कुश जी और पुजा जी भी नामिनेटेड है जिन्हे आप भी जानते होगे कि वो कितना अच्छा लिखते है॥

 

 

 

देखे, विचारे और मोहर लगाये॥

http://www.indiblogger.in/vote.php?entry=723

धन्यवाद!!

(बाकी इलाहाबाद meet को फ़ालो करते रहिये, हम भी कान लगाये हुए है…ज्ञान जी कब बोलेगे, उनका बेसर्बी से इन्तज़ार है॥)

Friday, October 23, 2009

कागज़ की नाव थी, समन्दर मे बहाते रहे…….

सुबीर जी ने अभी दिवाली के मौके पर एक मुशायरे का आयोजन किया था जिस मे मै देर मे अपनी रचना भेज पाया। उनके ब्लाग से ही पढा कि उनका स्वास्थ्य ठीक नही है। काश वो जल्दी से ठीक हो और हमारे जैसे लोगो का मार्गदर्शन ऎसे ही करते है॥

ये आपके लिये सर!!!

 

“दीप जलते रहे,  झिलमिलाते रहे…… ।
एक – एक करके हम, यादो को जलाते रहे.. ॥

याद आया वो रास्ता, जो एकदम सीधा था…। 
मगर जाम लडते रहे, हमारे पैर लड्खडाते रहे..॥

गुरूर था कि, वो हमेशा मेरे साथ है…।
कागज़ की नाव थी,  समन्दर मे बहाते रहे.. ॥

कुछ पत्थर हमने, कभी आसमा की तरफ़ फेके थे..।
पथरीली ज़िन्दगी है.., ये खुदा को बताते रहे..॥

जाने कितनी दफ़ा…, कत्ल किया अपनी रूह का..।
फिर पहन कर फार्मल्स, दाग-ए-लहू छुपाते रहे…॥

दिल की कुछ ताको मे, रोशनी आजतलक नही पहुची..।
दीवाली का मौका था, ’पन्कज’ मोमबत्तिया जलाते रहे…॥”

गलतियो के लिये माफ़ करे.. ज्यादा जानकार नही हू बस लिख लेता हू…. ॥

Wednesday, October 7, 2009

सिगरेट..

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सिगरेट के धुये मे,
कुछ शक्ले दिखती है,
मुझसे बाते करती हुयी,
कुछ चुप चाप.....
और सिगरेट जलती जाती है...
जैसे वक्त जल रहा हो,

 

 

गये वक्त को मै,
ऎश की तरह झाड देता हू
और वो माटी के साथ मिल जाता है,
खो जाता है उसी मे कही......

बस होठो पर एक रुमानी
अहसास होता है,

कहते है कि वक्त को जलाने का भी
अपना ही मज़ा है......

Monday, October 5, 2009

कॉफ़ी विद मी…

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चाहता हू एक दिन
अपने साथ बैठू,

एक कॉफ़ी हो और
हम दोनो ढेर सारी बाते करे,
हँसे, खिलखिलाये ….
एक दूसरे को और जाने…

मै उससे पूछूँ कि वो
इतना गम्भीर क्यूँ है?
और बताऊँ कि क्या
मजबूरियां है मेरी,
जो मै उससे मिल नही पाता…

उससे पूछू कि क्यूँ
उसने मुझे तन्हा छोड दिया है,
झगडूं उससे…….
और कह दूं कि मुझे उसकी कोई जरूरत नही है……

मै जी सकता हू अपनी आत्मा के बिना…

लेकिन…
वो तो कही खो गया है, या
मुझ जैसा ही हो गया है……॥

Sunday, October 4, 2009

सम रैन्ड्म थिन्ग!!

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आफ़िस की मोनोटोनस और उबाऊ ज़िन्दगी से त्रस्त आकर एक लम्बी छुट्टी पर घर गया था..वो ज़िन्दगी देखने जिसने यहा तक पहुचाया है..

वो टेरेस जिसपर टहलते हुए मै अपने आप से बात करता था..वो सारी बाते… जो मै किसी से नही कर पाता था……मैने ईश्वर को हमेशा अपने पास मुझसे बात करते हुए पाया…… वो मुझमे ही कही था..उस टेरेस पर ही कही….

ज़िन्दगी बहुत धीरे चलती है वहा, इतनी धीरे की हर मन्जर डूबने का मौका देता है और यहा कोई लम्हा बीत जाने की खबर भी नही लगती..बस सिगरेट के धूए मे कभी कभी अपने आप से मुलाकात हो जाती है…और वही धूआ कुछ चेहरे दिखा देता है..

शादी के लिये बाते शुरु हो चुकी है और ज़िन्दगी की किताब पर फिर से किसी ने लिखना शुरु कर दिया है…कभी कभी मन करता है कि काश इस किताब का आखिरी पन्ना पढ सकता…

कभी कभी मन करता है कि काश कोई मुझे ज़िन्दगी के फ़ार्मूले समझा सकता क्युकि मेरे लिये ये हमेशा ही आर्ट थी……

Friday, September 11, 2009

सोशल इनवेस्टमेन्ट!!

आपने इनवेस्टमेन्ट तो काफ़ी किये होगे, क्या कभी सोशल इनवेस्टमेन्ट किया है?  

रन्ग दे एक ऐसा ही प्रयास है…ये माइक्रोक्रेडिट के सिद्धान्त पर आधारित है जिसमे आप अपना धन जरूरतमन्द लोगो के बडे सपनो मे इनवेस्ट करते है जैसे किसी की चाय की दुकान, किसी का साडी का बिजनेस……(आपने मोहम्मद यूनुस की ग्रामीन बैन्क के बारे मे तो पढा ही होगा…)

आपकी दी हुई राशि से ये लोग अपने पैरो पर खडे होते है और आप अपनी राशि पर २% सालाना इन्ट्रेस्ट भी पाते है।

आप रन्ग दे की मदद से एक सोशल इनवेस्टर बन सकते है और social borrowers की मदद कर सकते है….अगर आप कोइ NGO है या ऐसे ज़रूरतमन्द लोगो को जानते है, तो आप रन्ग दे के पार्टनर भी बन सकते है…..

सबसे बडी बात, आप कम से कम ५०० रूपये का इनवेस्टमेन्ट कर सकते है और किस जरूरतमन्द की मदद करनी है, वो भी आप स्वय निर्णय ले सकते है…

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मैने तो अपने आप को रजिस्टर कर लिया है, आप क्या सोचते है??

आभार (and hats off to): http://rangde.org/

Sunday, September 6, 2009

लेट्स स्माइल……

DSC00046आफ़िस से बाहर आता हू…….सर उठाकर खुले आसमान को जी भरकर देखता हू……बारिश की कुछ बूदे गालो पर गिरती है, कुछ आँखों पर और पलकें बन्द हो जाती है…फ़ार्मल्स के गीले होने की कोई चिन्ता नही है…आज मै खुश हूँ… बहुत दिनो के बाद…

 

 

रिक्शा वाला देखता है, मै पैदल ही चलता हूँ…… भीगता हूँ और महसूस करता हूँ कि मेरी आत्मा भीग रही है…वो जो कभी बाहर नही आती, आज उसे साफ़ करना है………

गोआ का एक द्र्श्य सामने आता है…अन्धेरी रात है, मै अपने दो दोस्तो के साथ बीच पर लेटा हूँ… सब खामोश है…सिर्फ़ एक आवाज़ है – लहरे आकर रेत को चूम रही है। हम तीनो आसमान को देख रहे है…और कोई भी उस सन्नाटे को तोडना नही चाह रहा है…

ये वही आसमान है…काफ़ी दिनो बाद नोटिस कर रहा हूँ…… बस दिन बदल गये थे, मै चाहकर भी खुश नही हो पा रहा था…आज फिर से वो कालेज वाला जोश महसूस कर रहा हूँ……. कुछ करके दिखाने वाला जोश……

कुछ खास नही हुआ है, बस मोबाइल का वाल-टेक्स्ट बदल गया है……… पहले ’स्माइल’ हुआ करता था, अभी ’लेट्स स्माइल’ है॥

यही दोस्त आज रात इन्डिया पहुच रहा है…सुबह एअरपोर्ट जाना है…..शायद इसीलिये खुश हूँ :) ………………

………………

Saturday, September 5, 2009

कि गूगल बोलता है….

जी हा, गूगल भी बोलता है॥ मेरे ज्यादा बोलने से अच्छा है कि आप ये तस्वीरे देखे -

1

 

 

 

 

 

2

 

 

 

 

3

 

 

 

 

4

 

 

 

 

6

 

 

 

5 

 

 

 

 

 

 

आप भी पूछिये और हमे भी बताईये कि आपने गूगल बाबा से क्या पूछा :)?

Tuesday, September 1, 2009

टाटा या बाटा!! कौन करेगा केस?

टाटा सन्स ने डोमेन मे अपने नाम(tata) का प्रयोग करने पर oktatabyebye.com पर केस कर दिया है। oktatabyebye.com ने लोगो से समर्थन की अपील की है।

किसी फ़ोरम मे कुछ लोग इस बारे मे बात कर रहे थे। एक भाईसाहब बोले की अगर डोमेन batatavada.com हो तो बाटा और टाटा दोनो केस कर देगे :) और एक जनाब ने तो टाटा यन्ग को भी नाम बदलने के लिये बोल दिया :)

वैसे आप किसकी तरफ़ है?

Saturday, August 15, 2009

नमस्ते भैया!!

काफ़ी समय बाद लिख रहा हू। एक हफ़्ते के लिये हमारे पास नेट नही था इसलिये हम दीन दुनिया से दूर थे:)।

कुछ दिनो पहले हमारे एक मित्र के साथ एक बडा अज़ीब वाक्या हुआ जिसे हम सोचते है तो हँसी आती है लेकिन शायद उस बेचारे के लिये ये इतना बडा मज़ाक नही है।

 

पिछले शुक्रवार को हमारे मित्र अपनी शादी के लिये लडकी देखने गये, लडकी को बताया नही गया था कि उन्हे कोई देखने आ रहा है और ये परम्परा हमारे समाज़ मे काफ़ी कॉमन है। मित्र साहब घर मे बैठे हुए थे कि लडकी कही बाहर से घर मे दाखिल हुई, उनके पिताजी ने मित्र साहब का परिचय दिया और दोनो को इनफ़ोर्मली मिलाने की कोशिश की।

 

लडकी ने मित्र जी से नमस्ते किया और बोली “नमस्ते भैया॥” :) :) और ये परम्परा भी हमारे समाज़ मे काफ़ी कॉमन है।

हाहाहाहा …

हमारे मित्र जी बहुत परेशान चल रहे है और कोई विरह गीत उन्होने कालर ट्युन भी लगा लिया है।

अब आप ही उन्हे समझाये?? :)

Sunday, August 2, 2009

द मोटरसाईकिल डायरीज…

ये फ़िल्म अर्नेस्टो गुवेरा की एक मोटरसाईकिल ट्रिप पर है जो बाद मे क्रान्तिकारी ची गुवेरा के नाम से जाने गये। अर्नेस्टो और उनके एक मित्र अलबर्टो ग्रेनाडो को एक कुष्ठ रोग के डाक्टर उनके पास रिसर्च के लिये बुलाते है। दोनो  वहा जाने के लिये मोटरसाईकिल से घूमने की योजना बनाते है और पूरे साउथ अमेरिका को घूमते हुए वहा पहुचते है। अपनी इस यात्रा मे वो अर्जेन्टीना, चिली, पेरू, कोलम्बिया और वेनेजुएला से गुजरते है।

 motorcycle

ये कहानी दो युवा लडको की कहानी है जो एडवेन्चर ढूढ रहे  है और इस ट्रिप के जरिये उसे पाने की कोशिश करते है। लेकिन कुष्ठ रोगियो तक पहुन्चने से पहले उन्हे असल ज़ीवन और लोगो का अहसास हो चुका होता है। इस ट्रिप मे वो गरीबो के हालात देखते है, उन पर हो रहे अन्याय को महसूस करते है और अपने तरीको से उनकी मदद करने की कोशिश करते है……

फ़िल्म का समापन बहुत मर्म है जब ची अस्थ्मा के बावजूद भी सिर्फ़ अपना जन्मदिन कुष्ठ रोगियो के साथ मनाने के लिये एक नदी तैर कर पार करते है जिसने उस गाव को दो भागो मे बांटा हुआ होता है – एक कुष्ठ रोगीयो का और एक निरोगियो का। ची उस नदी को पार करके विभाजन को तोड्ने की कोशिश करते है।

ये यात्रा दोनो दोस्तो को ज़िन्दगी की सच्चाई दिखाती है और शायद एक डाक्टर अर्नेस्टो गुवेरा को क्रान्तिकारी ची गुवेरा बनाती है जो बाद मे विरोधियो के द्वारा मार दिये जाते है।

Wednesday, July 29, 2009

हीरो…

ऐसे न जाने कितने लोग है, जो हमे कुछ सोन्चने के लिये बाध्य करते है.. कुछ करने के लिये। ऐसे ही एक है, आनन्द कुमार जी जो गरीबो को भी IITs के सपने दिखाते है और उन्हे पूरा करने मे अपना सब कुछ समरपित कर देते है।

कल उनके बारे मे The National  मे एक article पढा। ऐसे लोगो को पढ्कर ज़िन्दगी मे कुछ करने की इच्छा जागती है……

http://www.thenational.ae/apps/pbcs.dll/article?.AID=/20090725/FOREIGN/707249814/1001

हमारी मीडिया ऐसे लोगो को सामने क्यू नही लाती? यही लोग हमारे real assets है, हमे ऐसे लोग पैदा करने चाहिये, इन्हे आगे लाना चाहिये तभी शायद हम एक विकसित भारत के बारे मे सोच सकते है……

आनन्द जी, आपको मेरा शत शत नमन……

शादीलाईना

आज थोडी तबियत ठीक नही थी तो सुबह से घर पर हू और ब्लाग पर नियमित रूप से कुछ न कुछ ठेल रहा हू। मेरे काफ़ी दोस्तो की शादिया हो रही है। मेरी तरफ़ से उन सबको ये तोहफ़ा… कुछ शादीलाईना… :)

When a man steals your wife, there is no better revenge than to let him keep her.   

-  DavidBissonette

After marriage, husband and wife become two sides of a coin; they just can't face each other, but still they stay together.

-  Sacha Guitry

By all means marry. If you get a good wife, you'll be happy. If you get a bad one, you'll become a philosopher.

-  Socrates

The great question... which I have not been able to answer... is, "What does a woman want?

-  Dumas

I had some words with my wife, and she had some paragraphs with me.

- Sigmund Freud

"There's a way of transferring funds that is even faster than electronic banking. It's called marriage.

-  Sam Kinison

"I've had bad luck with both my wives. The first one left me, and the second one didn't."

-  James Holt McGavra

Two secrets to keep your marriage brimming
1. Whenever you're wrong, admit it,
2. Whenever you're right, shut up.

-  Patrick Murra

The most effective way to remember your wife's birthday is to forget it once...

-  Nash

My wife and I were happy for twenty years. Then we met.

-  Henny Youngman

A good wife always forgives her husband when she's wrong.

-  Rodney Dangerfield

Woman inspires us to great things, and prevents us from achieving them.

-  Anonymous

"Some people ask the secret of our long marriage. We take time to go to a restaurant two times a week. A little candlelight, dinner, soft music and dancing. She goes Tuesdays, I go Fridays."

-  Anonymous

You know what I did before I married? Anything I wanted to.

- Anonymous

First Guy (proudly): "My wife's an angel!"
Second Guy: "You're lucky, mine's still alive."

-  Anonymous

Tuesday, July 21, 2009

यदि….

ये कविता मैने पहली बार रीडर्स डाईजेस्ट मे पढी थी बस तबसे मेरे लिये ये जीवन की सच्चाई बन गयी। मैने काफ़ी ढुढा लेकिन मुझे इसका हिन्दी अनुवाद नही मिला, यदि किसी को मिले तो अवश्य देवे। मै आभारी रहूगा॥

 

IF you can keep your head when all about you
Are losing theirs and blaming it on you,

If you can trust yourself when all men doubt you,
But make allowance for their doubting too;
If you can wait and not be tired by waiting,
Or being lied about, don't deal in lies,
Or being hated, don't give way to hating,
And yet don't look too good, nor talk too wise:

If you can dream - and not make dreams your master;
If you can think - and not make thoughts your aim;
If you can meet with Triumph and Disaster
And treat those two impostors just the same;

If you can bear to hear the truth you've spoken
Twisted by knaves to make a trap for fools,
Or watch the things you gave your life to, broken,
And stoop and build 'em up with worn-out tools:

If you can make one heap of all your winnings
And risk it on one turn of pitch-and-toss,
And lose, and start again at your beginnings
And never breathe a word about your loss;
If you can force your heart and nerve and sinew
To serve your turn long after they are gone,
And so hold on when there is nothing in you
Except the Will which says to them: 'Hold on!'

If you can talk with crowds and keep your virtue,
'Or walk with Kings - nor lose the common touch,
if neither foes nor loving friends can hurt you,
If all men count with you, but none too much;
If you can fill the unforgiving minute
With sixty seconds' worth of distance run,
Yours is the Earth and everything that's in it,
And - which is more - you'll be a Man, my son!

- Rudyard Kipling  http://www.kipling.org.uk/poems_if.htm

Saturday, June 6, 2009

कौन हो तुम!!

पता नहीं कौन हो तुम मेरी
किस जन्म का है ये बन्धन
क्यों मिलती हो मुझसे
क्यों फिर चली जाती हो
क्यों मुझे सिर्फ़ तुम
सिर्फ़ तुम याद आती हो..


मैं तुम्हारे दीवानों में
एक अदना सा दीवाना हूँ........


चाँद जैसा आवारा नहीं
जो रातों मैं तुम्हरे घर
के चक्कर लगाऊ,
पवन जैसा बेशरम भी नहीं
जो तुम्हरे तन को स्पर्श करता
हुआ चला जाऊं,


समंदर भी नहीं, जिससे करती
होगी तुम बातें,
उन सितारों मैं से कोई भी
सितारा नहीं
जिन्हें गिनती होगी तुम
सारी सारी रातें,


वो फूल नहीं, जिसकी पन्खुडी
तोड़ तोड़ कर गिराती होगी तुम,
जब कभी मेरे बारे मैं सोंचते हुए
अपने घर के चक्कर लगाती होगी तुम,


मुझसे कहीं अच्छा है तुम्हारा
वो दुपट्टा, जो छोड़ता न होगा तुम्हे
चाहे करती होगी कितने यतन
और वो तुम्हरे हाथों के कंगन
तुम्हे स्वप्न से उठाते होंगे
जब कभी सोते हुए तुम्हारे
हाथ आपस मैं लड़ जाते होंगे


वो दर्पण तुम्हे रोज़ ही देखता होगा
जब करती होगी तुम श्रृंगार
पर मैं तुम्हे शायद ही देख पाऊँ इस
जीवन मैं ऐ मेरे प्रथम प्यार........


धरती भी कभी आसमा से मिल नहीं पाती
पर क्षितिज इन दोनों को मिलाता है,
समंदर भी दो किनारों को पास लाता है
अब देखना है की वो मेरा इश्वर
मुझे तुमसे मिलवाता है
या यूँ ही एक गरीब को विरह
की आग मैं जलाता है... ।

Wednesday, June 3, 2009

एक पाकिस्तानी युवा!!

मै ज्यादा नही बोलूगा आप ये video देखे अगर न देखा हो।।

 

P.S. I don’t have any right on this video. This video is just for display purpose and will be redirected to You tube. If you are the owner of this video and you have any concern, kindly let me know. I will remove this video from this post.

मै ही क्यू??

अभी कुछ दिन पहले कि ही बात है जब एक अच्छी खासी शाम को किसी कमीनी चिडिया ने मेरी नयी नयी टी शर्ट पर छी छी कर दी :( मैने हमेशा की तरह ऊपर देखा और पूछा कि मै हि क्यु??

वैसे ये सब मेरे साथ होना बडी ही आम बात है। मै हमेशा कुछ भी करने से पहले काफी दुविधा मे रहता हू और हमेशा अपने आप को समझा लेता हू कि जो मैने किया वो सही था।

अगर मै कभी सुसाइड करना चाहू जैसे ट्रेन से कटना चाहू तो ट्रेन-स्ट्राइक हो जाय। ज़हर खाना चाहू तो वो नकली हो। पन्खे से लटकना चाहू तो बिज़ली चली जाय…

ये सब ख्याल मुझे सिर्फ़ इसलिये आ रहे है क्यूकि कल मैने सालो के बाद वो करना चाहा जो मै आजतक नही कर पाया था लेकिन …

मैने कल अपनी बहुत ही प्यार से बनायी हुई orkut profile delete कर दी और सबको अलविदा भी बोल दिया। लेकिन वो अभी तक delete नही हुई है…..

४८ घन्टे से पहले मै orkut वालो को भी नही contact कर सकता ऐसा उनकी site पर लिखा हुआ है और मेरे दोस्त, मेरे प्यारे दोस्त मुझे इस बात पर ताने मार रहे है :)

Sunday, May 17, 2009

रात है जैसे अन्धा कुआ!!

कभी कभी बाम्बे, काट्ने के लिये दौडता है और कुछ भी समझ मे नही आता। ऐसे वक्त पूरी कोशिश करता हू कि दिमाग को कुछ भी सोचने का मौका ना दू। आज सुबह से तीन मूवीज़ देख चुका हू पर मन अभी भी कन्ट्रोल मे नही है।

भुपिन्दर जी का एक गाना है जो मेरी इस स्थिति को काफी अच्छे से बया करता है:-

 

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एक अकेला इस शहर मे, रात मे और दोपहर मे

आबदाना ढूढ्ता है, एक आशियाना ढूढ्ता है॥

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दिन खाली खाली बर्तन है और रात है जैसे अन्धा कुआ..

इन सूनी अन्धेरी आखो से आसू कि जगह आता है धुआ..

जीने की वजह तो कोइ नही, मरने का बहाना ढूढ्ता है॥

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इन उमर से लम्बी सड्को को, मन्ज़िल पे पहुचते देखा नही..

बस दौड्ती फिरती रहती है, हुमने तो ठहरते देखा नही..

इस अजनबी से शहर मे, जाना पहचाना ढूढ्ता है॥

एक अकेला इस शहर मे…………..

Saturday, May 16, 2009

उत्तर प्रदेश, मुझे तुझपर गर्व है!!

मैने कभी तेरे लोगो पे शक नही किया……., तेरे नेताओ पे किया। उनपर किया जिनहोने तेरे विकास के लिये अन्ग्रेजी और computer को ban करने की बात की, उनपर किया जिन्होने तुझे जातियो मे बाट दिया, उनपर किया जिन्होने विकास कि जगह मूर्तिया लगवाने का काम किया, उनपर किया जिन्होने तेरी कोख पर धर्म की होली खेलने की कोशिश की।

हर बार की तरह, इस बार भी तुने भारत को राह दिखायी है। तुने काग्रेस और राहुल गान्धी को राह दिखायी है। राहुल के पास जाति और धर्म का कोइ मुद्दा नही था, वो गाव गाव गया, तेरे लोगो के साथ खाना खाया, तेरे लोगो को समझा। उसने बोला कि जिस दिन गरीबो को ऊपर लेकर आयेगा, उस दिन भारत चमकेगा… ।

और तुने एक अछ्छे नेता की सुनी। तू जाति और धर्म से ऊपर उथी और तूने देश के लिये सोचा। आज मै खुश हू और गर्वान्वित महसूस कर रहा हू कि तुने फिर से भारत को एक राह दिखायी है…………………

कैफ़ी आज़मी ने कभी कहा था:

“अज़ाओ मे बहते थे आसू, यहा लहू तो नही,

ये कोई और जगह होगी, लखनऊ तो नही॥”

UP तुझे मेरा सलाम !!

Wednesday, April 8, 2009

अपनी धरती को पहचानिये!!

सबसे पहले आप सबको कोति कोति धन्यवाद, आप सबके प्यार और बधाइयो के लिये। मै आप सबके सामने अपने दोनो हाथ जोद्कर नतमस्तक हू। धन्यवाद..

इलेक्शन की तैयारिया जोर शोर से है, लेकिन क्या आप अपनी constituency के बारे मे जानते है।

Indicus Analytics आपके सामने हाज़िर है कुच numbers के साथ। जिन्हे data से प्यार है, उन्हे ये पसन्द आयेगा।

मैने अपने शहर के बारे मे देखा( देखे लखीमपुर खीरी के बारे मे..)। आप भी अपने शहर के बारे मे देख सकते है॥

गूगल भी आपको इस बारे मे मदद करता है

Sunday, April 5, 2009

एक और जन्मदिन !!

आज मेरा एक और जन्मदिन बीत गया। इस बार इसके साथ एक प्रयोग किया. कुच लोगो को मेरा जन्मदिन याद रहा और कुच लोगो को नही लेकिन शायद मैने अपनी ज़िन्दगी मे पहली बार उन्हे बोला कि मुझे ये खराब लगा कि उन्हे मेरा जन्मदिन याद नही रहा। इस प्रयोग से मुझे ये तो पता चला कि मै किसे अपना मानता हू। आज तक मै यही नही जानता था॥

मेरे दो चेहरे थे और एक चेहरे को सिर्फ़ मै जानता था लेकिन अभी इन दोनो चेहरो को एक दूसरे से मिलवाना है।

कुच ज्यादा ही इमोशनल हो गया। :)

लेकिन एक खुशी है, मेरे पास कुच पात्र है और एक कहानी है, मेरी अपनी कहानी।

एक दिन इसके बारे मे लिख्नना है। बस इन्तज़ार है उस पल का…

Thursday, April 2, 2009

मुशर्र्फ़ को एक भारतीय का जवाब

अभी अभी इस video को देखा और सच मे मज़ा आ गया। सोचा आप लोगो के समक्च इसे रखू। Thoda पुराना है शायद पहले से देखा हो॥

P.S. I don’t have any right on this video. This video is just for display purpose and will be redirected to You tube. If you are the owner of this video and you have any concern, kindly let me know. I will remove this video from this post.

Sunday, March 29, 2009

अर्थ आर् और आप लोगों की मदद!!

I celebrated Earth Hour yesterday by switching off lights and then in that darkness we all roommates talked and after a long time, it was a real fun. I was telling them that here in Bombay we are celebrating Earth Hour but at my native place i.e. Lakhimpur Kheri, electricity officials daily celebrate this thing and there is no time limit for that celebration.

A Help Needed--

Great Bloggers of Hindi community, kindly let me know which tool you use for blogging. I use Window Live Writer and even after wasting so much time in googling a plug in for Live Writer which can support Hindi transliteration, I am afraid to say that I didn’t get any.

So Hindi writing became a bit difficult for me as

1 – I write the post in windows Live Writer

2- then paste that post into blogger to transliterate my English words into Hindi

3 – then I again paste that post into live writer so that it can publish the post and along with that can ping to blog directories.

I find this three step way, very difficult and time consuming. Please do help me, if you have any clean and neat solution.

Dhanyawaad!!

Wednesday, March 25, 2009

कुछ ऐसे ही

काफ़ी दिनों से कुछ नहीं लिखा, सोंचा आज चलो कुछ लिखते हैं। आजकल काफ़ी अजीब अजीब से ख्याल मन में आ रहे हैं। बस तो उन ख्यालों पर एक विराम लगाता हूँ और अपने चहेते गानों में खो जाता हूँ:

१- खमाज
इस गाने को जब भी सुनता हूँ, आँखें अपने आप बंद हो जाती हैं और ये फयूज़न मेरी रगों में दौड़ने लगता है। ये गाना फयूज़न नाम के पाकिस्तानी बैंड के द्वारा रचित है और उन्होंने गितार और ड्रम के साथ राग खमाज को गाया है। मुझे राग नहीं पता हैं लेकिन इसका संगीत मुझे संगीत सीखने को प्रेरित करता है। रागों का संगीत और खमाज राग ।

२- अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो:

नब्बे के दशक में दूरदर्शन पर एक धारावाहिक शुरू हुआ था जिसका नाम था ‘कहकशां’। जगजीत जी ने इसकी कुछ गज़लें गायी थीं। ये उनमें से एक है। नीरज रोहिल्ला जी को धन्यवाद, इस नज़्म से मेरा परिचय करवाने के लिए॥

३- चले तो कट ही जाएगा:
मुस्सरत नासिर जी की आवाज़ ने इस गाने को वो इज्ज़त दी जो इसे शायद कभी न मिलती। इस आवाज़ में वो नशा है जिसे पुरानी से पुरानी शराब भी नहीं दे सकती।

४- लम्बी जुदाई:

इस गाने को कोई परिचय नहीं चहिये। रेशमा जी की गायी हुई हर एक हरकत शरीर में एक बिजली पैदा करती है। रेशमा जो को मेरा सादर नमन। आपने जब भी गाया बहुत अच्छा गाया। आपकी एल्बम ‘दर्द’ में मुझे दुनिया के सारे दर्द दिखे और आपकी दर्द भरी आवाज़ में मैंने उन्हें बहुत करीब से महसूस किया।

५- नज़र मुझसे मिलाती हो:
इस गाने से ही मैंने जाना की ग़ज़ल क्या होती है। मेरी ज़िन्दगी का एक पन्ना इस गाने से शुरू होता है और वो पन्ना बहुत ही हसीं है। विडियो थोड़ा भद्दा है इसलिए उसे यहाँ देने के लिए मैं क्षमा चाहूँगा।

६- थोड़ा है थोड़े की जरूरत है:
किशोर दा ज़िन्दगी की सक्चाई के साथ ये गाना गाते हैं। मैंजब भी सफलता के लिए पागल हो जाता हूँ यहीं गाना मुझे धरा पे लाता है और समझाता है की मैंने क्या क्या खोया है यहाँ तक पहुँचने में और मुझे समझाता की ये ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत है।


७- खुदा करे की मोहब्बत में:
नूरजहाँ ने इसे जिस अंदाज़ में गाया है वो कहीं और नहीं मिल सकता। तलत अज़ीज़ ने भी इसे गाया है और वो भी इसके साथ इन्साफ कर पाए हैं।


८- पहला नशा:

इसे में कभी भी सुन सकता हूँ और आमिर खान की तरह झूमने का जी भी करता है। ये गाना आपके दूसरे,तीसरे.. प्यार पर भी उतना ही अच्छा लगता है जितने पहले पर।


९- तुम पुकार लो:
तुम्हारा इंतेज़ार है….हेमंत दा की आवाज़ और फिर एक खामोशी…एक सुकून ….एक शान्ति। एक आम आदमी की आवाज़ ये गाना आज भी कहीं बजता है, तो में सब कुछ भूलकर इसकी तरफ़ बढ़ता चला जाता हूँ।


१०- ज़िन्दगी के सफर में गुज़र जाते हैं जो मकाम:

किशोर दा जब ज़िन्दगी की इस सक्चाई से रूबरू करवाते हैं तो लगता है की बस हम अकेले बैठे हो और अपने पुराने मकामों को याद करें और फिर एक दो आंसू गिराकर उन्हें सार्थक बनायें।


११- मिटटी दा बावा:

ये एक पंजाबी गाना है जिमें एक माँ अपने एक बच्चे के लिए तरसती है और एक मिटटी का गुड्डा बनाकर उसे याद करती है. जगजीत सर की आवाज़ में वो दर्द और भी गहरा हो जाता है।

काफ़ी गाने लिस्ट छोटी होने के कारण से छूट गए हैं। लेकिन ये गाने वो रत्न है जो मुझे अभी भी सुकून देते हैं और मेरे अंदर फिर से वो जज्बा – ऐ – मासूम पैदा करते हैं..

Monday, March 2, 2009

यादें…

 

आज थोडी तबियत ढीली होने की वजह से ऑफिस नहीं गया।  काफ़ी दिनों के बाद अपने फ्लैट में अकेला हूँ, क्यूंकि बाकी रूम मेटस ऑफिस गए हुए हैं। काफ़ी दिन हो गए हैं मुझे अकेले कहीं भी रहे हुए।  सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं... वो लोग याद आ रहे हैं जो इस ज़िन्दगी की दौड़ में कहीं छूट गए हैं। कुछ लम्हे याद आ रहे हैं....

...मैं केजी कक्षा में हूँ।  एक प्यारी सी लड़की क्लास में आती है।  उसने एक बहुत सी प्यारी सी frock पहन रखी है और उसके सर पर एक गोल टोपी है।  मैडम पूछती हैं “आज ये किसके पास बैठेगी?” हमारा हाथ सबसे पहले खड़ा होता है और बाकि बेवकूफ बच्चे हमें देख रहे होते हैं।  और... वो हमारे पास ही बैठती है।  हम साथ मैं tiffin करते हैं और एक दूसरे की बोत्तल से पानी भी पीते हैं।  इसके अलावा उसके बारे में कुछ याद नहीं....

कक्षा ९.. हमारे जीव विज्ञान के सर जिनको बच्चे प्यार से ‘छिपकली’ बुलाते हैं। क्यूँ बुलाते हैं का कोई मोटा कारण तो नहीं है हाँ कुछ बच्चों से सुना है की वो blackboard पर ‘छिपकली’ अच्छी बनाते थे। ‘ छिपकली’ सर क्लास में पढ़ा रहे हैं और हम पहली कतार मैं बैठे हुए हैं।  पिता श्री का कहना था की पहली कतार मैं बैठने वाले लड़के मेधावी बनते हैं सो हम भी बैठे हैं। हम कुछ गुनगुना रहे हैं की उन्होंने हमें गुस्से से देखा और बुलाया।  जैसे हम उनके पास गए उन्होंने... बस अब क्या बोलें..., हमें पीटना शुरू कर दिया.. कभी इधर... कभी उधर... उस वक्त हमारे दिमाग मैं बस एक बात चल रही है की आख़िर हमने क्या किया है।  काफ़ी देर के बाद याद आया की हम एक गाना गुनगुना रहे थे... “छिपकली के नाना हैं, छिपकली के हैं ससुर... dianasur, dianasur...”

स्नातक तीसरा साल ... ख़बर मिली है की ‘विनीत’ मेडिकल कॉलेज में भरती है।  हम भी लखनऊ पहुँचते हैं और हमारी आंखों के सामने वो लेता होता है।  वो लड़ रहा है एक एक साँस के लिए।  कोमा मैं है... तब हम शायद पहली बार १०८ बार किसी भगवान् का नाम, या कोई मंत्र पढ़ते हैं की शायद उससे ही बच जाए।  लेकिन मेरा दोस्त चला जाता है।  सब रो रहे हैं, उसकी मम्मी रोते हुए हमसे कह रही हैं की “अब तुम क्रिकेट किसके साथ खेलोगे?” और हमारे आंसू नहीं निकल रहे हैं।  आत्मा धिक्कार रही है की सब रो रहे हैं, तुम क्यूँ नहीं लेकिन हम समझ ही नहीं पा रहे हैं की क्या हुआ है? एक वेन मैं वो लेता हुआ है, हम भी उस वेनमैं उसके साथ बैठ जाते हैं।  वेनचलती है, हम उसको छूते हैं..उसको पकड़ कर उसके पास लेट जाते हैं..और चिल्ला चिल्ला कर रोते हैं।

स्नातक तीसरा साल ... एक लड़की, पत्र मित्र बनी है, जिसके साथ अपने सारे सुख और दुःख बाँट रहे हैं और हम दोनों एक दूसरे को पत्र लिख रहे हैं।  उसे अपनी कवितायें लिख रहे हैं और वो हमेशा की तरह बड़े ही प्यार से उन पत्रों का उत्तर भेज रही है।  इस रिश्ते को हम ‘हमराज़’ का नाम देते हैं और एक दूसरे को बिना देखे हुए बातें करते रहते हैं।  उसके सारे पत्र, गुलाबी लिफाफों के साथ अभी तक हमारे पास रखे हुए हैं।  वो अपनी शादी में हमें आमंत्रित करती है।  हमें वहां कोई भी नहीं जानता है लेकिन जैसे ही अपना नाम बताते हैं, लगता है की न जाने इस घर से कितना पुराना रिश्ता हो।  फिर ‘उसको’ देखते हैं।  वो बहुत ही सुंदर है।  उससे बातें करते हैं पर बातें जैसे ख़त्म ही नहीं होतीं।  उसकी शादी होती है। हम वहां से चले आते हैं उसकी यादों के साथ। ( अभी कुछ दिन पहले ही उसको एक प्यारा सा बेबी हुआ है और वो बेवकूफ ‘मम्मी’ बन गई है।)

MCA दूसरा साल... हमारे हॉस्टल के एक कर्मचारी की बीवी को खून की जरूरत है। हम भी पहली बार अपना खून किसी को देते हैं।  बियर पीकर वापस आते हैं और अपने dean की क्लास करते हैं। ये हमारी ज़िन्दगी का सबसे हिम्मती कारनामा है क्यूंकि उसकी क्लास मैं बियर पीकर बैठना, अपनी मौत को गले लगाने जैसा है।   Hemant की बीवी भी kushal है।

और भी कुछ लम्हे हैं, जिनके बारे मैं लिखना मुझ जैसे तुक्ष ब्लॉगर के बस की बात नहीं है।  अभी चाय पीने का जबरदस्त मन हो रहा है तो हम चाय पीने चलते हैं।  तब तक के लिए अलविदा!!

Tuesday, February 24, 2009

रिश्वत कब तक ??

हमारे एक मित्र अपनी motorcycle से जा रहे थे की एक पुलिस वाले भाईसाहेब ने उनको रोका और ५० रुपया देने के लिए बोला।  आगे जानने के लिए यहाँ पढ़ें:-

http://rendezvous-with-rdx.blogspot.com/2009/02/no-bribe-please.html

“If asked to pay bribe by State Govt Employee, contact Anti Corruption Bureau on Toll Free number – 1800222021, Email: acbwebmail@gmail.com

- ACB, Mumbai ”

Wednesday, February 11, 2009

हमारे पिताजी!!

haathबचपन में हमें जहाँ देखो, अपने दोस्तों के सामने खड़ा कर देते थे और बोलते थे  “सोनू को २० तक टेबल आती हैं”. और उनके मित्रगण, कोई तुंरत बोलता 'सोनू '२' का सुनाओ' और बस हम तान लगाकर शुरू हो जाते।  फिर तो बस रंगारंग पहाडों का फरमाईशी प्रोग्राम शुरू हो जाता।  २, ४ , ६ और हम सुनाते जा रहे हैं और कुछ तो जानबूझकर १३, १७ और १९ का सुनाने को बोलते।

याद है की दसवीं तक रोज़ लाइट जाने के बाद छत पर बैठकर अंधेरे में पहाड़े सुनाते था और मार तो हमेशा खाते था।  एक बार मकानमालकिन आंटी ने न जाने क्या घुट्टी पिला दी पिताजी को, “लड़का बड़ा हो गया, अभी तक मारते रहोगे।”  बस उसके बाद से पहाड़े सुनाना बंद हो गया इस वार्निंग के साथ की अब वो सिर्फ़ मार्कशीट देखा करेंगे।  तब से रात में लाइट का जाना अच्छा लगने लगा।

उनके साथ क्रिकेट मैच देखना हमेशा दिलचस्प होता था।  सारे प्लेयर डांट खाते थे, अजय जडेजा तो बेचारा सिर्फ़ चयूइंग गम खाने के लिए भी डांट खाता था और गालों पर व्हाइट क्रीम लगाने के लिए भी डांट।

एक दर्जी था जो उनकी बड़ी इज्ज़त करता था, कपड़े कभी अच्छे नहीं सिल पाता था पर जाने पर चाय पिलाता था।  पचास बार तो बाबु जी करता था।  बस हमें ले जाकर नपवा देते थे वहां और हमारी कातिल जवानी जैसे चिल्लाती थी की नहीं आज तो बख्श दो।

बाल कटवाने ले जाते थे तो बस जैसे उन्हें एक ही हेयर स्टाइल पता थी - ‘छोटे कर दो’ और नाई को तो जैसे वीटो पॉवर मिल जाती थी।  हमारे अमिताभ और मिथुन बनने के सपने तो उन नाइयों ने ही चूर कर डाले नहीं तो हम भी आज बॉम्बे मैं इंजिनियर की जगह बॉलीवुड में होते।

अभी ड्राइंग रूम बना नहीं है तो उसी में थोडी खेती कर लेते हैं।  माँ का कहना है की इन्हे किसान होना चहिये था, ग़लत प्रोफेशन में आ गए हैं। उस छोटे से ड्राइंग रूम भर की जमीन से क्या क्या उगा देते हैं की बस पूछिए मत और जब भी कोई नया फल लगता है या पकता है तो बुला - बुलाकर दिखाते हैं - देखो सोनू, पपीता पक गया है।  उन आखों से बहुत कुछ सीखा है मैंने।  मुझे अभी भी याद है जब एक गाय आकर पूरा खेत बरबाद कर गई थी।  मैंने उनको आँखों में उस दिन अलग रंग देखे थे – दर्द के। 

अभी कुछ दिनों पहले जब घर गया था तो अपने साथ घुमाने ले गए थे, माँ को हमेशा पता रहता है की मैं कभी मोजे और रुमाल नहीं खरीद सकता हूँ, सो वही दिलवाने ले गए थे।  वो दूकान वाले अंकल उनके साथ कभी पढ़े हुए  थे और उनको बोले देखो रोज़ इसके बारे में बोलता हूँ, आज इसे ले आया।  मुझे समझ में आ गया की ये मेरे मुँह से आधी अधूरी बातें सुनकर यहाँ सुनाते होंगे।  मैंने तुंरत ही पैर छूए।  काफ़ी देर बैठकर उन लोगों की बातें सुनी, बहुत अच्छा लगा।

उस दिन फिर से पापा की नज़रों से सब कुछ देखा जैसे वो बचपन में दिखाते थे।  वो अपने कोर्ट ले गए।  आजकल वकील लोग तख्त पे नहीं बैठते हैं, सिविल कोर्ट में भी अब केबिन बन गए हैं।  वो मुझे कोर्ट ऐसे दिखा रहे थे जैसा न जाने कौन सा हिस्टोरिक प्लेस हो और मैं भी वैसे ही देख रहा था।  सवाल भी पूछ रहा था “पापा! वो क्या है?” और जवाब  भी सुने।

किसी दिन उन्हें ये पोस्ट जरूर दिखाऊंगा, उसके लिए बस थोडी सी हिम्मत चहिये. देखिये कब तक हिम्मत जुगाड़ पता हूँ।

एक SMS पर अभी निगाह गई :

"Memories play a very confusing role...They make you laugh when you remember  the time you cried together!! But make you cry when you remember the time you laughed together.."

Sunday, February 8, 2009

एक फ़ोन कॉल और एक बेनामी रिश्ता

“पंकज! उनका कॉल आ रहा है, मैं तुम्हे १० मिनट के बाद फ़ोन करती हूँ…”
“हम्म....ठीक है।”

लेकिन अभी तक ह्रदय में ‘उनका’ शब्द गूंज रहा था. मैं ‘पंकज’ ही रह गया और उसे एक रिश्ते ने ‘उनका’ बना दिया. वही सोंचते सोंचते मैं फ़ोन रखना भूल गया और उसने शायद ‘उनका’ कॉल पिक कर लिया।

“हेलो !!”
मैं कुछ नहीं बोल सकता था क्यूंकि मुझे पता था की ‘वो’ कॉल पर है और मैं उसकी इस नई ज़िन्दगी में कोई परेशानी पैदा नहीं करना चाहता था।

“हेलो !! क्या हुआ? बोलते क्यूँ नहीं..”
इन पंक्तियों में इतना प्यार था, जिन्होंने मेरे एक ‘ब्लू लागून’ और एक बियर के नशे को एकदम गायब कर दिया। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा।

“ऐ क्या हुआ??”
मैंने फ़ोन रख दिया। उसको वापस कॉल किया और उसको बताया की लाइन पर ‘वो’ नहीं था ‘मैं’ था…

उसने पहले ‘उनसे’ बात की फिर मुझसे, और मैंने गुस्से में न जाने क्या क्या बोला उसे ?

४ साल पुराना रिश्ता अभी 'बेनाम’ हो चुका था और मेरे पास हमेशा की तरह कहने को कुछ भी नहीं था।

मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ !!

कुछ वर्ष पहले मैंने धर्मवीर भारती जी की 'गुनाहों का देवता' पढ़ी थी। बहुत ज्यादा पसंद तो नहीं आई थी लेकिन उनकी नारी पात्र 'सुधा' ने बस जादू सा कर दिया था :)। उन्होंने उस पुस्तक में एक कविता के माध्यम से एक रिश्ते को समझाने की कोशिश की थी। वो कविता किसी अंग्रेज़ी कविता का हिन्दी अनुवाद था। मैंने इसकी मूल प्रति को काफ़ी ढूँढा लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है। क्या आपको पता है?

"मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ, न ! मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ ।

फिर भी मैं उदास रहती हूँ, जब तुम पास नहीं होते हो।

और मैं उस चमकदार नीले आकाश से भी इर्ष्या करती हूँ,

जिसके नीचे तुम खड़े होगे और जिसके सितारे तुम्हे देख सकते हैं। "

"मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ, फिर भी तुम्हरी बोलती हुई आँखें;

जिनकी नीलिमा में गहराई, चमक और अभिव्यक्ति है -

मेरी निर्निमेष पलकों और जागते अर्धरात्रि के आकाश में नाच जाती हैं।

और किसी की आंखों के बारे में ऐसा नहीं होता...."

"न....... मुझे मालूम है की मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ, लेकिन फिर भी

कोई शायद मेरे साफ़ दिल पर विश्वास नही करेगा।

और अक्सर मैंने देखा है, की लोग मुझे देखकर मुस्कुरा देते हैं,

क्यूंकि मैं उधर एकटक देखती रहती हूँ, जिधर से तुम आया करते हो। "

-- Taken From 'Gunhaon Ka Devta'

इमोशनल अत्याचार

2655311426_ffdd156bec अभी अभी देव डी देखकर आया हूँ। इस फ़िल्म में शरत चंद्र के देवदास को आधुनिक रूप से दिखाने की कोशिश की है। मुझे इस फ़िल्म ने काफ़ी कुछ सोंचने पर मजबूर किया। हम देवदास से देव डी तक आ चुके हैं। हमारा आज का देवदास ड्रग और वोदका में जीता है। आज की चंद्रमुखी उन पुराने कोठों की जगह, नए युग के रेड लाइट एरिया में रहती है। हम सच में काफ़ी आगे आ चुके हैं।

कभी कभी मेरा भी मन करता था की इस तरीके से नशे में खो जाऊं की सब कुछ भूल जाऊं, सारी जिम्मेदारियां, सारे दुःख सब कुछ। सुबह से शाम तक बस कुछ भी न याद रहे, बस चलता रहूँ बिना किसी मंजिल को सोंचे हुए। चलता रहूँ जब तक थक न जाऊं और जैसे थकूं , फिर से नशा लिया और फिर चल दिए। चलता रहूँ जब तक, या तो ये दुनिया ख़त्म हो जाए या मैं। जो भी देखूं वो सब कुछ एकदम नया हो, कभी पहाड़, कभी समुद्र, कभी सूर्योदय तो कभी पूरा चाँद। सब कुछ ऐसे देखूं जैसे कभी न देखा हो, सब कुछ ऐसे सुनूं जैसे कभी न सुना हो।

फिर मैंने इन खानाबदोश फिरंगियों को गंगा किनारे पागलों के जैसे बैठा देखा, मुझे जिज्ञासा हुई ये जानने की की आख़िर इन्हे इस गंगा घाट से मिल क्या जाता है। मैंने बनारस की वो गलियां देखीं, जो मैंने सिर्फ़ कुछ किताबों में पढ़ी थीं और मुझे देखकर काफ़ी आश्चर्य हुआ की ये लोग उन गलियों के किनारों पे बनी सरायों में अपने घर के जैसे रहते हैं। वहां की चाय की दुकानों पर रेट चार्ट, इंग्लिश, चाइनीज और फ्रेंच में लिखे होते हैं। हमारा भारतीय संगीत वहीँ पर जीता है। वहां की म्यूजिक शोप्स पर जितने अच्छे गिटार होते हैं उतने अच्छे सितार, ढोलक और बांसुरी और ये फिरंगी लोग उनमें डूब जाते हैं। इन लोगों को देखकर मुझे लगा की जब ये लोग नशे और सेक्स से ऊब जाते हैं और जब ये चीज़ें भी इन्हे शान्ति नहीं दे पातीं तब इन्हे गंगा की आरती में सुकून दीखता है, तब इन्हे संगीत में सुकून दीखता है। तब इन्हे योग से शान्ति मिलती है।

फिर हम क्यूँ उस तरफ़ जा रहे हैं, जो राहें वो लोग छोड़ चुके हैं ? जाने हम में से कितने आज भी शरतचंद्र के देवदास को समझ सकते हैं? शरत चंद्र के नारी पात्रों को समझ सकते हैं?????

मजे की बात ये है की मैं ये सब तब लिख रहा हूँ जब मैंने ख़ुद दो बियर पी रखी हैं

Friday, February 6, 2009

देर से आया लेकिन दुरुस्त आया .....

जी हां, मैं आ चुका हूँ, आप सब लोगों को फिर से तकलीफ देने। काफ़ी दिनों तक मेरी रचनाओं ने आपकी फीड को बढाया नहीं होगा और आप खुश होंगे। वो मुझे पता है।

मैंने २ फरवरी को SCJP 1.6 (Sun Certified Java Programmer) ८६% के साथ पास किया और मेरा कुछ दिन तक न लिखना और अपने आप को थोड़ा समय देना काम आया। अगर आपको इस परीक्षा के विषय में कुछ जानना है तो इसे पढ़ें

अभी कुछ ज्यादा मेरे पास लिखने को है नहीं। बस एक पुस्तक मेला लगा था, हमने भी तीन किताबें ले डालीं:

१- दा व्हाइट टाइगर  - अरविन्द अदिगा

२- दा बुक ऑफ़ understanding ओशो

3- Head First JSP and Servlets

अब बस इन्हे पढ़ना शुरू करना है, वो हम भी नहीं जानते की कब करेंगे :)। अभी के लिए इतना ही है, आप चाहें तो अपने दिल पर पत्थर रखकर (क्यूंकि मैं वापस आ गया हूँ ), मुझे बधाई दे सकते हैं। :)

अलविदा, जल्दी ही कुछ अच्छे के साथ आता हूँ .