Sunday, August 8, 2010

'सच' क्या होता है?

'सच' क्या होता है? कैसा दीखता है 'सच'? 

कश्मीर के बदलते हालातों पर सन्डे टाइम्स की स्पेशल रिपोर्ट है 'डेस्परेट हाउसवाइफ़्स'.. वो पढ़ता हूँ.. रोते बिलखते चेहरे हैं.. सलवार कमीज में पत्थर फेंकती औरते हैं... मेरा नजरिया बनने वाला  ही होता है कि गौतम भाई की पोस्ट पढ़ता हूँ.. 'भारतीय कुत्तों वापस जाओ' के नारे हैं...   पत्थर खाते पुलिसवाले हैं... फूटे सर पर हैंडीप्लास्ट लगाये भीड़ के सामने खड़ा एसपी है... सच बैलेंस्ड होता लगता है कि फिर शायदा जी की पोस्ट पढ़ता हूँ और कहीं गहरे, इक अनजान अँधेरे में डूबता जाता हूँ.... एक जबरदस्त तलब होती है छोडी हुयी सिगरेट को अंगीकार करने की..

इस दुनिया में सच की भी पोलिशिंग होती है.. 

क्या कोई दुनिया है इन सब सहमति- असहमति, वादों -विवादों के परे, जहाँ सच सिर्फ 'सच' होते हों?

 

P.S. कुछ दिनों में पहलगाम- पटनीटोप- कटरा जाना है... जम्मू – कश्मीर की वादियों के सच को अपनी आँखों से महसूस करना चाहता हूँ... लेकिन तब तक वादियों में सच बचेगा... ...वादियाँ खुद बचेंगी? मेरा जाना बचेगा?

कमबख्त ये सब लिखते लिखते सिगरेट की तलब भी भीतर से ऊपर और ऊपर चढती जाती है वैसे ही जैसे आज के दिन ये सारे सच मेरे ऊपर बहुत ऊपर चढकर बैठे हैं… ॥

19 comments:

kshama said...

Sach jaan ke use sweekaar kar lena bhi ek tapasya hai...bahut kam log saty ko jaisa hai,waisa sweekar kar pate hain...warna ham jo dekhna chahte hain,wahi dekhte hain.

mukti said...

ए देखो ! फ्रस्टेट होकर सिगरेट मत पीने लग जाना. हम अभी तुम्हारी दी हुयी ये लिंक पढकर आते हैं.

mukti said...

दोनों पोस्टें पढीं मैंने. मन थोड़ा व्यथित है.
ये सच है कि कश्मीर में जो कुछ भी हो रहा है उसके बीच भारतीय सेना का धैर्य बनाए रखना कितना मुश्किल होगा, हम सिर्फ इसकी कल्पना कर सकते हैं.
आशा है कि तुम वहाँ जाकर सच को और करीब से जान सकोगे. वैसे तो गौतम ने जो बात लिखी है, मैं भी उसी पर यकीन करना चाहूँगी. एक ओर से तो बर्बरता है, कम से कम दूसरी तरफ से ना हो यही सोचती हूँ.

अपूर्व said...

जिंदगी के कितने ही ऐसे पहलू होते हैं..जिनके बारे मे अपनी अधूरी राय के मुताबिक फ़ैसला सुनाते वक्त हमे खुद अंदाजा नही होता है कि हम कहाँ पर गलत हैं..ज्यादातर मौकों पर अंत तक पता नही चलता कि हम गलत भी हैं..

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

एक चीज़ जो बिलकुल झूठ है पंकज.... वो है सिगरेट और उससे मिलने वाला सुकून !
रही बात सच की, तो दोस्त देइर आर शेड्स ऑफ़ ग्रे! नथिंग इज़ ब्लैक एंड व्हाईट!
(विद द एक्स्सेप्शन ऑफ़ सिगरेट ऑफ़ कोर्स!)
क्या कहते हो....?
=====================
कश्मीर का तो कोई समाधान मेरे पास नहीं, हां सिगरेट से ध्यान बांटने का उपाय:
फिल्लौर फ़िल्म फेस्टिवल!!!!!

Anonymous said...

sach kya hai? your words are so loud and clear ....truth lies in our thoughts...truth is you and me..have you ever noticed the way children ask questions? ..why is the sky blue?? ...similar our thoughts are so pure and divine
they need answers to enjoy the fullness of life...

ekaant me bethna apne aapse baat karna woh such hai....apne aap me such dhoondna bhi ek mazahai.."keep on seeking" for answers...you will find that the search can be very regarding. :) Violence (be it in any city)(let peace prevails)

Aur hanji ciggy ..Big No! Happy JOURNEY!

Rangnath Singh said...

कश्मीर एक ऐसा दूध है जिसमें तरह-तरह की खटाई पड़ चुकी है। अब उसे किसी भी तरह उसी पुराने रूप में वापस नहीं लाया जा सकता। इस मुद्दे का कोई स्थायी राजनीतिक हल भी नहीं दिखता। एकमात्र उपाय है पुराने सांस्कृतिक वातावरण के पुनर्निमाण का प्रयास। भारत सरकार कभी भी इसके प्रति गंभीर नहीं रही है। उसे सेना पर जरूरत से ज्यादा भरोसा रहा है। कश्मीर की संस्कृति में लगने वाले दीमक की तरफ बहुत कम ध्यान दिया गया। जिसका नतीजा गाहे-बगाहे दिखता रहता है।

Amrendra Nath Tripathi said...

सब सियासत का खेल है बन्धु !
सियासत का खेल व्यक्ति से लेकर समाज तक फैला हुआ है |
और सच ?
घातक वर्तमान को देखकर लगता है कि भूल ही जाना होगा इसे . जाने कितनी सिगरेटें ख़त्म हो जायेंगी पर झूठ कहाँ ख़त्म होने का !
यह भी एक सापेक्षिक परिभाषा है |
एक निवेदन मात्र है , सिगरेट को इस हेतु मत सुलगाया करें , सुलगती जिन्दगी अच्छी नहीं लगती | आप जितना जागेंगे , बेचैनी और असंतोष उतना ही बढ़ेगा , इसे बैलेंस करना होगा | किसी की पीड़ा कोई साझा नहीं कर सकता पर उस जैसा कुछ साक्षात कर सकता है | निवेदन पर गौर कीजिएगा | आभार !

प्रवीण पाण्डेय said...

सच संभवतः बहुत रूखा होता है। यह सब न पढ़ने को मिलता यदि राज्य जल नहीं रहा होता।
सच तो यह है कि कैंसर पनपने दिया गया हैं और बरनॉल लगाया जा रहा है। चीत्कार तो उसी का है।

कुश said...

घटनाये सही या गलत नहीं होती.. नजरिया होता है.. इसी पर कहूँगा अपनी बात.. जल्दी में नहीं निपटाना चाहता

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

सच के कितने रूप हो सकते हैं, हर एंगल से आपको सच एक अलग तरह का नजर आता है। यही सच कश्नीर का भी है, हम सब के लिए वो भारत का एक अभिन्न हिस्सा है, पाकिस्तान वालों के लिए उनका और कश्मीरियों को लगता है कि वे दोनों देशों को जबरदस्ती ढो रहे हैं, उनका तो एक अलग देश है।

मेरी मां के लिए कश्मीर वो जन्नत है, जहां उन्होंने शादी के बाद की सबसे खूबसूरत छुट्टियां गुजारी हैं। पापा के लिए आज भी वो फिल्मों की सबसे खूबसूरत लोकेशन है...जहां उन लोगों ने हवाई अड्डे पर दिलीप कुमार को देखा था, मां तो एकदम सेंटिया गई थी।

मेरे दोस्त के लिए जो कोल्ड ड्रिंक कंपनी का नोर्थ हैड है, कश्मीर बिजनेस का बहुत बड़ा पोटेंशियल स्टेट है। आंकड़ों की नजर से कश्मीर (जम्मू के अलावा) में 99 फीसदी मुस्लिम है, लगभग सभी हिन्दू कश्मीर छोड़ चुके हैं।

मैं जब से चीजों को समझने लगी हूं और अपना एक नजरिया रखने लगी हूं, तब से कश्मीर एक ऐसा अशांत राज्य है, जहां लगातार हिंसक वारदातें होती रहती हैं, अकसर स्कूल और कालेज जाते समय सोचती थी कि कश्मीरी बच्चे भी इतने ही आराम से घर से निकल कर स्कूल कालेज पहुंच पाते होंगे या रास्ते में कोई बम उनका रास्ता हमेशा के लिए बंद कर देगा।

कश्मीर से विस्थापित हुए दिल्ली में हमारे फैमिली डाक्टर रहे डाक्टर कॉल के लिए वो उनका घर है, जहां अब वो साल छमाही सिर्फ ये जानने के लिए जा पाते हैं कि घर के खंडहर में से इस बार क्या-क्या बचा है। बम धमाकों और राकेट लांचरों के बीच कभी छत तो कभी दीवार तो कभी दरवाजा गायब मिलता है।
....क्या सच के इतने एंगल काफी नहीं है

abhi said...

क्या कहें दोस्त हम

richa said...

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं... एक वो जो सामने होता है, हमें दिखता है या दिखाया जाता है... और एक वो जिससे हम रु-बा-रु नहीं होते, जो हमें नहीं दिखता... और हम सिर्फ़ सिक्के के एक पहलू को जान के अपनी राय बना लेते हैं, एक धारणा कायम कर लेते हैं और बस उसे ही सच मानने लगते हैं... पता नहीं पर शायद सच ये है की सच हम कभी जानना या समझना ही नहीं चाहते... बस चल पड़ते हैं अपनी अपनी धारणाओं का परचम उठाये किसी वाद-विवाद का हिस्सा बनने...
और जहाँ तक सीमा पर तैनात जवानों की बात है तो क्या सीमा पार एक दुश्मन काफ़ी नहीं की हम भी उन पर ही पत्थर उछालें... हाँ, सच शायद तब पता चले जब वहाँ जा कर, उनके बीच रह कर, चौबीसों घंटे गोली बारूद के बीच अपनी जन्नत जैसी धरती को अपनों के ही खून से रोज़ नहाते देखें... वो भयानक सच देखने की हिम्मत शायद हम में तो नहीं है... पर इतनी इज्ज़त तो हम उन सैनिकों को दे ही सकते हैं की उन पर भरोसा रखें... क्या हो गर उनका भरोसा और हिम्मत भी टूट जाये... क्या एक दिन भी चैन से सो पायेंगे तब हम ?

Bhawna 'SATHI' said...

khi jindgi sulagti hai to khi sigrate...

Udan Tashtari said...

दुखद स्थितियाँ हैं....


हाँ, मगर सिगरेट के धुऎँ से क्या हासिल...मत जाना उस धुंधलके के आगोश में फिर से...कुछ भी साफ नहीं देखने देता.

varsha said...

सच ही तो है कैसे झेलम निर्विकार बह रही है और चिनार खिल खिला रहा है और यदि हैं तो कवियों ने नदी, पेड़, पहाड़ को लेकर इतनी संवेदनाएं क्यों रच दी हैं ???
paridrashya dhuan-dhuan hai aur aapka dhuan ise leelnewala nahin.

डॉ .अनुराग said...

सच को तटस्थ दृष्टि से देखना अनिवार्य है.......कभी कभी कुछ बाते हमें वक़्त के एक मोड़ पे समझ में आती है

ghughutibasuti said...

पंकज सच ऐसे ही किसी महान व्यक्ति की महानता से बनते हैं, जो अपनी जिद के कारण देश को एक कभी न बुझने वाली आग में झोंक गए। अब यह नासूर लाइलाज बन गया है।
घुघूती बासूती

अनूप शुक्ल said...

ये भी बांच लिये। सिगरेट सुलगी है क्या अभी तक!