आसमान तब भी उतना ही बड़ा था… बारिशें तब भी पूरा ही भिगोतीं थीं… वो पानी के बताशे तब भी लार गिरवाते थे… और वो आइसक्रीम तो उफ़्फ़…
अस्थमा मरीज होने के कारण ठंडी चीज़ें खाना मना था… मतलब घर वालो के सामने खाना मना था… बाहर तो बस कुल्फियों के दौर चलते थे… तबियत खराब होने पर पुछाई होती थी कि क्या खाया, कब खाया… तो हम कोई हरिश्चन्द्र थोडे ही थे…
सपनो की एक दुनिया थी जहा के हम सिकंदर थे… सपनो मे हम स्ट्रीट हॉक की बाईक चलाते थे… तो कभी एक ओवर मे छह छ्कके मारते थे… आस पास काफ़ी काल्पनिक पात्र थे- सुपर कमांडो ध्रुव तब इसलिये अच्छा लगता था कि उसके पास कोई स्पेशल पावर नही थी और वो हमारे जैसा आम इन्सान ही था… ईश्वर जैसे काल्पनिक पात्र से तो हम घन्टो बतियाते रहते थे और बात बात पर कुछ न कुछ माँगा करते थे…
फ़ूफ़ा जी इरीगेशन डिपार्ट्मेन्ट मे इन्जीनियर है… हमे लगता था कि बडे पैसे वाले है… एक बार चुपके से खत लिखकर दांत चियारते हुये कुछ बोर्ड गेम्स की ख्वाहिश जाहिर कर दी… बोर्ड गेम्स तो आये पर माता श्री ने हमारी अच्छी क्लास ली और इन ख्वाहिशो को वहीं विराम लगा… अभी कुछ दिन पहले बनारस गया था… बोर्ड गेम्स की उमर तो निकल गयी थी… फ़ूफ़ा जी बोले चलो आज तुम्हे ज़िन्दगी की सच्चाई दिखाये… कुछ फ़िलोसोफ़िकल मूड मे थे… नही तो हम कुछ अज़ीब से मूड मे रहे होगे जो उन्होने पढ लिया होगा…
जो भी हो, थोडी देर मे हम लोग मणिकर्णिका घाट पर खड़े थे… लाशें धू धू करके जल रही थी… लोग बिलख रहे थे… वहीँ कुछ लोग लकड़ियाँ बेच रहे थे… चन्दन की वीआईपी लकड़ियाँ भी थी… फ़ूफ़ा जी हमको समझा रहे थे कि ये कटु है लेकिन सत्य है… सबको यही आना है…
और हम सोच रहे थे कि ख्वाहिशे भी कैसी कैसी… कुछ ख्वाहिशे जो जल रही है और कुछ वही तराजुओ पर तौली जा रही है…
ज़िन्दगी की इस रेलगाड़ी में ख्वाहिशो को हर प्लेट्फ़ार्म पर चढ़ते-उतरते देखा है… बुद्धा की तरह मैं भी पशोपेश में हूँ कि ज़िन्दगी का लक्ष्य क्या होना चाहिये?
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अपनी पहली कविता जो मैने ८-९ साल की उम्र मे लिखी थी और जो लखीमपुर खीरी के एक लोकल डेली मे छपी थी… बडे बडे कविगण किसी बात का कोई शक न करे… उस जमाने मे वो पेपर वकीलो को फ़्री मे मिलता है… यानी उसे कोई नही पढता था… वैसे पढता उसे अभी भी कोई नही है :)
मेरे घर मे आयी टीवी
मैने उसमे देखी बीवी
’चित्रहार’ मे आया गाना
कल – परसो तुम भी ले आना॥
सब – पढ्ते है उपन्यास
सोमवार को आया ’उपन्यास’,
मंगलवार को आये ’हमराही’
बुधवार को ’तलाश’ की बारी
गुरुवार को ’बानो – बेगम’
शुक्रवार को ’संघर्ष’ का कार्यक्रम
नाट्क देखो बडा विशाल,
शनिवार को आया ’मशाल’,
समाचार मे आया टैंकर
रविवार को आये ’अम्बेडकर’
फिर बच्चो कि चुनिया मुनिया
सोमवार को ’नन्ही दुनिया’॥
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नवम्बर २००६ मे पहली पोस्ट डालने के बाद आज अप्रैल २०१० मे हमने सैकड़ा पूरा किया है… अपने आलसीपने पर फ़िर कभी बात करते है… फ़िलहाल बधाई के अलावा आप हमारी गुल्लक मे अपने तजुर्बे की कौडिया डाल सकते है…
ज़िन्दगी का लक्ष्य क्या होना चाहिये?
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28 comments:
सबसे पहले तो १०० वीं पोस्ट के लिए धमाकेदार बधाई...
दूसरी बधाई...इतनी प्यारी सी कविता के लिए जिसे तुमने तब लिखा जब तुम छुटकू थे....
बहुत ही मज़ा आया पढ़ कर....
और बाकी एक ट्रक बधाई...इस पूरी पोस्ट के लिए....
इसके साथ ही बधाई का कोटा यही समाप्त होता है...
खुश रहो ..!!
दी..
Nice one.... khwahishon ki status report is very touching...
N i can still recall those all programs on DD1 which u mentioned in ur poem :)
and congrates a lot of century :)
पहले तो बधाई ले ही लो सैकड़े की इसके पहले की तुम हिमालय के लिए प्रस्थान करो. ऐसे विचार जब मन में आने लगें तो झटक कर निकाल दिया करो, यह सब बढ़ती उम्र की निशानियाँ है भई..कहाँ इस झंझट में उलझे हो. इसे शमशान वैराग्य भी कह कर पुकारा है ज्ञानियों ने (ज्ञानदत्त जी ने नहीं)
उद्देश्य बस इतना रहे कि खुश रहो और सबको खुश रखो..बाकी सब बढ़िया चलता रहेगा.
हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
वाह! ख्वाहिशों की स्टेटस रिपो्र्ट मजेदार है। तुम्हारी तो बाकी भी सारी पोस्टें बांचनी होंगी अब तो। सहज, सरल और बिन्दास लेखन! बचपन की कविता तो मजेदार है। और भी लिखीं होंगी। उनको भी पोस्ट करो। १०० वीं पोस्ट के लिये बधाई!
100 vi post ki badhai...ant me kavia ki tukbandi achhi hai.
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
अनगिन बधाइयाँ दोस्त...अनगिन पोस्टें भी हो जाएँ एक दिन...!!!
मै तो पचास-बावन मे ही हाफ गया..:)
1. बहुत बधाई 100वीं पोस्ट के लिये ।
2. कविता बहुत ही अच्छी लिखी थी । उस उम्र में भी विचार उमड़ते हैं । मैं 11 साल में लिखी अपनी पहली कविता पढ़वाऊँगा ।
3. ख्वाहिशें उमड़ती है, उमड़ने दो । हर एक के पीछे कारण होता है । मत रोको । मर्यादा भविष्य में कचोटेगी ।
आलसीपने कि भी हद होती है यार.. चार साल और सिर्फ सौ पोस्ट!! नहुत नाइंसाफी है.. उस पर भी चाहते हो कि बधाई दूँ? धिक्कार है... :)
वैसे आजकल एक नई किताब उठाया हूँ, "Who will cry, When you'll die".. यूँ तो पुरानी किताब है, पर मेरे हाथ बस अभी लगी है.. कुछ दिन पहले एक किताब और पढ़ी थी, "जहँ जहँ चरण पड़े गौतम के".. कभी मिले तो जरूर पढना..किसी अन्य भाषा का अनुवादित है सो साहित्यिक दृष्टि से अति उत्तम तो नहीं है पर दर्शन के हिसाब से परफेक्ट है..
@अदा दी
धन्यवाद आपकी सारी बधाईयो के लिये :)
@Priti
At least, you noticed that those were some great serials ever shown on television.. Its nice to see you here in my private workplace ;)
@समीर जी
’हिमालय’ के तो नाम से बस एक और ख्वाहिश जाग जाती है.. वहा जाकर सत्य की खोज करने की.. :) और उम्र तो बढ ही रही है.. हे हे हे
अपनी खुशियो के मायने ढूढ रहा हू... दूसरो को दी हुयी खुशियो से कभी कभार मुझे खुशी जरूर मिल जाती है... बाकी आपकी बात सर आँखों पर.. कभी मौका लगे तो ’खुशी क्या है’, उस पर भी कुछ लिख दीजिये.. थोडी तलाश आसान हो :D
@अनूप जी
बहुत बहुत धन्यवाद!! बधाई स्वीकार करते है.. सवाल का जवाब ढूढने मे मदद भी चाहिये थी? :)
@संजय भास्कर और दिलीप जी
धन्यवाद आप दोनो का..
@श्रीष
:) कछुआ बनना ज्यादा अच्छा है... सुस्ता लो फ़िर लिखना जब तक हाफ न जाओ..
वैसे ’सेन्चुअरी’ इतना भी कोई बहुत बडा मकाम नही है.. मकाम होगी हर वो पोस्टे जो तुममे अमूलचूल परिवर्तन लायेगी और तुम्हारे भीतर के अच्छे इन्सान को जीवित रखेगी..
@प्रवीण जी
धन्यवाद, आपकी कविता का इन्तज़ार रहेगा...
@पीडी
सबसे पहले मेरे आलसीपने पर ’:)’... जरूर पढूगा.. किस बारे मे है ये किताबे?
वैसे नेक्स्ट ’तरकश’ खरीद रहा हू, सतीश पन्चम जी के लेख से प्रभावित होकर... क्या खतरनाक स्ट्रगल किया है ’जावेद अख्तर’ जी ने... मुझे उनके बारे मे और पढना है..
सैकड़ा मारने की बधाई, कुछ इसी तरह के आलसी अपन भी हैं बंधु।
कविता में तब के सीरियल्स के नाम बढ़िया पिरोए गए हैं।
ख्वाहिशों को खुला छोड़ रखिए ताकि वे इसी तरह उतरती चढ़ती रहें। ख्वाहिशों की हदें बांध लेंगे तो खुद भी खुले न रहेंगे……
ख्वाइशें इतनी की हर ख्वाइश पर दम निकले :)१००इ पोस्ट की बधाई और बचपन की कविता बहुत मजेदार लगी :)
Hello ji,
Loads of wishes :) 100 posts :) Wow!!
1) I loved the title of this post
2) Poem == Fantastic
3) You used good verbiage and write marvellous!
Congrats once again :)
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
100 par hardik badhai, aj mera pehla din aur aapka 100th post.
quite Ironical shamshan mein bhi VIP or 'cattle class' hota hai, kahrid-farokt hoti hai..
aim should be to be a good human being, khshi ander se aati hai, bahar dhoondhoge to gham hi milenge
umeed krti hu ki aap ki 1000 post v padhne ko milegi dost...jivan ka laskhya yhi khavhishe hoti hai.jo junun paida krti hai jine ka vrna jivan ke antim satya ko jante hue v log yu jinda dili se jite na..
ओ तेरे की... ये पोस्ट कैसे छूट गई ? आजकल तो हम आपके नियमित पाठक हो गये हैं...100वीं पोस्ट की बधाई. हमारे विचार मैचिंग-मैचिंग हैं...है न? देखो एक ही दिन एक जैसी बातें कर बैठे. और ये उड़नतस्तरी की ज्यादा उम्र वाली बात में मत आना...मुझे देखो 31 साल की हो गई हूँ...पर उत्साह वैसा ही है...यूँ तो मैं लगती नहीं इत्ती बड़ी है न.
वैसे चार साल में 100 पोस्ट तो निश्चित ही महान आलसीपने की निशानी है.
प्रशंसनीय ।
"ख्वाहिशो की स्टेटस रिपोर्ट"-iski riport kabhi mukkaml nahi chap pati kuch na kuch baki hi rahti hai........
पहली बार आया और पहली बार में ही प्रभावित हुआ। 100 वीं पोस्ट के लिए बधाई। वैसे कभी कभी आलसी पन भी अच्छा रहता है। जिदंग़ी का लक्ष्य बस जीना होता है बस जीना। और अब तो आना जाना लगा रहेगा भाई इतना अच्छा जो लिखते हो।
सौवीं पोस्ट के लिये बधाइयां.
ज़िन्दगी की इस रेलगाड़ी में ख्वाहिशो को हर प्लेट्फ़ार्म पर चढ़ते-उतरते देखा है… बुद्धा की तरह मैं भी पशोपेश में हूँ कि ज़िन्दगी का लक्ष्य क्या होना चाहिये? छोटी बड़ी ख्वाहिशे,अनगिनित हमेशा बड़ती कभी कम नहीं होती.डॉ साहिब भी कहते है ख्वाहिशो का कारखाना है दिल..लगातार manufacturing होती रहती है.कोई डिमांड supply का rule apply नहीं होता..
फिर वज़ा-ए-एहतियात से रुकने लगा है दम
बरसों हुए हैं चाक गिरेबाँ किये हुए
The decorum of restraint is suffocating
I wish I could tear my clothes in agony like before
Ghalibs lines for all of us who are suffocated by the ways of life.And our standard response ;
“ग़ालिब” हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्या-ए-तूफ़ाँ किये हुए
Ghalib, Do not bother me, for with a storm of tears in my eyes
I am sitting here , with a mind made up, to unleash a hurricane at will
Your posts are always inspiring.Simple and true to life.Keep it up !!
वो पानी के बताशे तब भी लार गिरवाते थे…..... bahut hi accha.. aapke blog par aaake bahut achchha laga....
१६ अप्रैल को जो बात सोची थी वो आज २ मई को कर ही डाली। तुम्हारी सारी पुरानी पोस्टें बांच डालीं। बहुत अच्छा लगा।
बढ़ाई हो अनूप जी..:)
सोचते हैं कि इसे भी बज्ज बना ही दिया जाए.. क्या कहते हो पंकज?? :P
@PD: आज अनूप जी मेरे इनबाक्स मे छाये हुये है... लेकिन सच मे मै इनका शुक्रगुज़ार हू मुझे कुछ बहुत ही अच्छी पोस्टे पढवाने के लिये...
उन सारी पोस्ट्स को मिलाकर एक पोस्ट बनती है.. आयेगी वो पोस्ट भी :)
जिंदगी का लक्ष्य मैं बताऊँ? छोडो यार तुम्हारी जिंदगी है मैं क्यों दखल दूं :)
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