दोस्ती एक ऐसा रिश्ता होता है जो रेडीमेड नही आता… इस दुनिया मे कदम रखते ही हमे कुछ रिश्ते बनेबनाये मिल जाते है लेकिन हमे दोस्ती के रंग और साईज़ खुद ढूढने होते है… यहाँ तक कि हमसफ़र भी ज्यादातर घर वाले ही तय करते है, पर दोस्त… दोस्त तो हमे खुद ही ढूढने होते है… इस खोज मे कभी कभी ऐसे लोग मिलते है जो हमारी रिक्त्ता (वोइड) को भरते है और कुछ ऐसे भी मिलते है जो उन छेदो मे उँगलियाँ डाले रहने के शौकीन होते है…
आवारगी
दोस्ती का एक किस्सा मै घरवालो से अक्सर सुनता रहता हू… काफ़ी धुंधला धुंधला मुझे भी याद है… जब एक पूरा दिन रिन्कू और मोनू के साथ मै अपनी लखीमपुर खीरी की गलियो मे घूमता रहा था… उम्र कुछ ८-९ साल के आस पास थी और न जाने कहाँ से कुछ बड़े नोट हमारे हाथ आ गये थे… बारिश हो रही थी और एक रिक्शे पर हम तीनो बैठ्कर यायावरी के मज़े ले रहे थे…। जहां मन मे आया रुकते थे… जो मन मे आया खाते थे… उम्र के साथ साथ इच्छाये भी कम थी और वो दिन बहुत लम्बा… बस तीन दोस्त सब कुछ उसी दिन पा लेना चाहते थे…
दिन के बाद एक रात थी और उस रात की एक सुबह भी थी… आँख खुली तो मेरे आस पास वो दोनो बैठे हुये थे और मुझे बडे प्यार से देख रहे थे। मम्मी तिल्ली का तेल और मोम मेरी छाती पर घिस रही थी… मेरी साँस फूल रही थी… अस्थमा का एक छोटा सा अटैक था जो मुझे आजतक याद है…
उस दिन किसी ने हिमालय पर चलने की बात भी की थी। शायद रिक्शे वाले ने कुछ समझा दिया होगा नही तो उस दिन देश को तीन सुधी ’स्वामी’ और मिल गये होते…
विनीत
दोस्ती के असल मायने मुझे खुद संजय गाँधी पोस्टग्रेजुएट इन्स्टियूट ऑफ़ मेडिकल साइन्सेज मे समझ आये थे जब मै वहाँ विनीत से मिलने गया था। उसे दिमागी बुखार था और मुझे लगता था कि उसके पास दिमाग ही नही है…
उस दिन वो एकदम शान्त लेटा हुआ था… डाक्टर्स ने कहा था कि वो कोमा मे है… कोमा एक बडी ज़हीन स्टेट है, इन्सान ज़िन्दगी से दूर रहकर भी ज़िन्दगी को करीब से देखता रहता है… और देखता ही रहता है… उसकी तो आँखें बन्द थी और एक ओक्सिजन मास्क उसे एक एलीयन का लुक दे रहा था… उसे उस हालात मे देखते ही मेरा सारा मज़ाक कही हवा हो गया था… मै और शिरीष बस उसके पास ही बैठे रहे थे… उसको देखते रहे थे… ये वही ’विनीत’ था जो ऑटोरिक्शा से उतरते वक्त सबसे पीछे रह जाता था और हमेशा पूरे पैसे उसे ही देने पडते थे… हाँ, उसके बाद वो तीन-तीन रुपयो के लिये गोमती से नीचे फ़ेकने की धमकिया जरूर देता रहता था…
उस दिन तकरीबन २० साल के, वो दो लडके न जाने किस किस भगवान को याद कर रहे थे, जाने कौन कौन से मन्त्र पढ रहे थे… बस एक ही तमन्ना थी कि वो कमीना बिस्तर से उठ जाये, और हमे गोमती मे फ़ेन्क दे…
लेकिन वो नही उठा… मेरी उन जवान आँखों ने उन जवान साँसों को धीरे धीरे थमते हुये देखा था… और इन सब कुछ मे मै शान्त था.. मेरे आस-पास सब रो रहे थे और मै सिर्फ़ सबको देख रहा था… बस देख रहा था… चिल्लाते, भागते, रोते हुये लोगो को…
उस वक्त मै कोमा मे था…
ये वो समय था जब दोस्ती को कंधो पे शमशान तक छोडा था… दोस्ती को छूआ था… दोस्त के कानो मे दोस्ती के कुछ जुमले भी छोडे थे जैसे “$%$%^&!, चला गया न?”…
मासूम दोस्ती
NITR हॉस्टल मे दोस्ती के मायने बडे सिम्पल थे… २ रुपये की छोटी गोल्ड जलती थी और फ़िर दोस्त दोस्ती के कश लेते थे… उस गोल्ड ने वहाँ मुझे ऐसे चन्द लोगो से मिलाया था जो कहीं न कहीं से मुझे कम्पलीट करते थे…
ये वो लोग थे जिन्होने अपनी अपनी स्कालरशिप और एजुकेशन लोन को वोद्का की बोतलो मे बहा दिया था… जो पीने के बाद जितनी जल्दी गालीगलौज करते थे, उतनी ही जल्दी रोते भी थे… वो ‘बार’ मे एक दूसरे को पीने के नाम पर चैलेन्ज करते थे और फ़िर हॉस्टल जाते हुए एक दूसरे को संभालते थे… ये कभी सडको पर पडे मिलते थे तो कभी हॉस्टल के गार्डेन की खुदी हुयी क्यारियो मे… ये हर लम्हा जीते थे… लेकिन ये सभी उस जहां के सिकन्दर थे.. सब एक से एक गुणी और सब अपने अपने क्षेत्रो के धुरन्धर… लेकिन सब कहीं न कहीं से बहुत अधूरे… और एक दूसरे का साथ उन्हे पूरा करता था।
कालेज छोडते वक्त तो इन गधो ने हद कर दी थी… ऑटो मे सामान के साथ ये सारे बैठ जाते थे और फ़िर ऑटो एक बीयर शाप के बाहर रुकता था… सब टल्ली होते थे और फ़िर आंसूओं से पूरा रेलवे प्लेटफ़ार्म भीग जाता था… पैसे लेकर रोने वाली रुदालियाँ भी ऐसे न रोती हो, जैसे ये लोग एक बीयर मे रोते थे और सेन्टीमेन्ट्स तो बस पूछिये मत।
वो कालेज छोडना अभी भी याद है… वो ’रुदालियाँ’ अभी भी याद है… बस अब उस बात के लिये आंसू नही आते बल्कि अपनी हरकतो पर हंसी आती है… गोया, वो हमारी मासूमियत थी या दोस्ती का एक्स्प्लोरेशन?… जो भी था, बहुत प्यारा था… और बहुत ही मासूम।
बोतल मे समुद्र
कैम्पस सेलेक्शन शुरु होने मे एक महीना था…और उसी समय ’राउत्रेय’ के भाई की शादी थी। हम सबको तो जाना ही था… आदतन कमीने लोग राउरकेला से कटक तक विदआउट टिकेट गये। वहां से हमे केनरापाडा के एक गाँव मे जाना था… साथ के काफ़ी लोगो का गाँव का ये पहला अनुभव था…
उडीसा के किसी गाँव का ये मेरा पहला अनुभव था। वहाँ हिन्दी समझने वाले नाममात्र लोग थे और मुझे सबसे बाते करनी थी… कोशिशे की… और कई जगह सफ़ल भी रहा। खैर…
शादी हुयी… सो-काल्ड शहरी लडके नागिन की धुनो पर गाँव की कीचड से सनी गलियो मे लोट लोट कर नाचे… और उस गाँव मे सेलीब्रिटी बन गये… अगली सुबह भैया ने हम लोगो के डेडीकेशन से खुश होकर हमे एक पारादीप ट्रिप स्पान्सर की… दोपहर को कुछ मोटरसाईकिले पारादीप के लिये रवाना हो गयी…
पारादीप मे मैने पहली बार समुद्र देखा था… उसे बाहों मे भरने की कोशिश भी की थी… उसकी बातो को समझने की कोशिश भी की थी… ’सी-राक्स’ पर बैठे हुये मै घंटो ’सी-हमिंग’ सुनता रहा था… और समुद्र की हर लहर मुझसे बीयर की एक घूँट मांगने आती थी… मै एक बूँद दे देता था और वो चली जाती थी जाकर वो बाकी लहरो को बताती थी और फ़िर सब एक एक करके मेरे पास आती थी।
मै भारत की जमी के एक छोर पर खडा होकर काफ़ी खुश था… इस सिरे के बाद से दूर दूर तक बंगाल की खाडी थी… पैरो के नीचे की ज़मीन वहाँ खत्म हो जाती थी और आसमान अकेला हो जाता था…
उस दिन हमने उस समुद्र को बोतल मे कैद कर लिया था… फ़िर हमने उन बोतलो को एक साथ दूर समुद्र के पार फेंका … कोशिश बस इतनी थी कि वो बोतले भारत के बाहर गिरे…
सारी की सारी वही समुद्र मे ही गिरी और खेलने लगी लहरो के साथ… और हमने इस बात की कोई परवाह नही की कि बोतल मे समुद्र था या समुद्र मे बोतले……
दोस्ती के कुछ फ़ेसबुकिये ज़ुमले-
Anurag Arya: जिंदगी का मतलब......
जेब में चंद रुपये ...
दो पुरानी यामहा ओर एक खुली सड़क है ,
जिंदगी का मतलब....
जिंदगी का मतलब....
इम्तिहान से पहले की रात ,कभी समझ न आने वाली किताब
ओर पाँच बेवकूफों के बीच बंटी एक सिगरेट है ,
जिंदगी का मतलब
जिंदगी का मतलब
कुछ ग्रीटिंग्स कार्ड्स ,कुछ बेहूदा कविताये.....
लड़किया ओर सिर्फ़ लड़किया है ,
जिंदगी का मतलब
जिंदगी का मतलब
सुबह ३.३० बजे की भूख ......
होस्टल के कमरे में रखा हिटर्स ओर एक मैगी नुडल्स है ,
जिंदगी का मतलब
जिंदगी का मतलब
सर्दियों की एक शाम ,धीमी बारिश ,चार दोस्त
ओर गर्म पानी में मिली व्हिस्की है ,
जिंदगी का मतलब ...
जिंदगी का मतलब ...
आधी रात को बजे एक मोबाइल में बरसो से रूठे किसी दोस्त की नशे में रुंधी आवाज है
जिंदगी का मतलब ......................................दोस्ती है
जिंदगी का मतलब ......................................दोस्ती है
Kush Vaishnav: दोस्ती तो वो है कि 'यार गाडी धीरे चला.. '
और सच्ची दोस्ती वो है कि 'भगा साले आगे स्विफ्ट में मस्त माल है..':)
और सच्ची दोस्ती वो है कि 'भगा साले आगे स्विफ्ट में मस्त माल है..':)
29 comments:
सभी पीसेस बहुत उम्दा...खास तौर पर ’बोतल मे समुद्र’ में कल्पनाशीलता को सलाम!
अहा,
पढ़ते गये, यादें उभरती गयीं मनस पटल पर ।
उल्हड़ बेखौफ ज़िन्दगी ।
दोस्तों के लिये बनायी, मनायी और लुटायी जिन्दगी ।
हज़ार बार याद आयी जिन्दगी ।
Its really nice... a great mixture of emotions... small stories but says a lot :)
Specially loved - tin rupayon ke liye gomati me fenkne ki dhamki n rudaliya
Keeps writing..
ऐसे ही आवारा नहीं हो...आवारगी अवध के पानी में है, जो हमलोगों के शरीर में खून बनकर बहती है. मैंने भी बहुत आवारगी की है, उन्नाव के एक छोटे से स्टेशन मगरवारा में और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में...पर लड़कों के जैसी मस्तियाँ हम लड़कियाँ नहीं कर पातीं...खासकर इलाहाबाद जैसे टॉउन कल्चर वाले शहर में...तो हमने न व्हिस्की, बीयर और वोदका पी और न मोटर बाइक्स पर शहर को नापा, पर मस्ती बहुत की...आज तुम्हारी यादें पढ़कर दोस्तों के साथ किये गये मज़े याद आ गये...
और एक लाइन मेरी मनपसन्द...
"---और समुद्र की हर लहर मुझसे बीयर की एक घूँट मांगने आती थी… मै एक बूँद दे देता था और वो चली जाती थी जाकर वो बाकी लहरो को बताती थी और फ़िर सब एक एक करके मेरे पास आती थी।"
पंकज जी सुभानाल्लाह ......!!
आज तो सारे रिकार्ड तोड़ दिए ......!!
अर्श जी ने एक बार मेरी नज्मों पे कहा था एक ही काफी थी क़त्ल करने के लिए ...एक साथ चार चार .....???
किसकी तारीफ करूँ और किसकी न करूँ .....लाजवाब प्रस्तुति .......!!
कुछ लाजवाब जुमले .......
@ उस वक्त मै कोमा मे था…
@दोस्त के कानो मे दोस्ती के कुछ जुमले भी छोडे थे जैसे “$%$%^&!, चला गया न?”…
@ सब टल्ली होते थे और फ़िर आंसूओं से पूरा रेलवे प्लेटफ़ार्म भीग जाता था… पैसे लेकर रोने वाली रुदालियाँ भी ऐसे न रोती हो,
@ और हमने इस बात की कोई परवाह नही की कि बोतल मे समुद्र था या समुद्र मे बोतले……
waah....bahut khoob
शानदार।
सभी पीस शानदार।
भावनाओं को शब्दों में पिरोते हुए बढ़िया लेखन।
यादों को अच्छा समेटा है बंधु।
पसंद आया।
जिन्दगी के कुछ हसीं लम्हें ....मेरी कहानी चल रही है पूरी होते ही चिपकाऊंगा कहीं....फ़िलहाल इस पोस्ट का लिंक बिना पूछे आपसे face book पे शेअर करता हूँ........शुक्रिया....
दोस्ती की काकटेल ....वाकई नशा कर गयी ..सभी यादे ज़िन्दगी के मायने बताती है ...पारादीप पढ़ते पढ़ते वही का नजारा घूम गया ,मुझे वहां का समुन्द्र बहुत पसंद है ....बहुत कुछ याद दिला देती है तुम्हारी लिखी यह यादे ..ठीक एक कोलाज की तरह जो कई रंग इनके साथ हमारे जहन में छोड़ जाती है ...शुक्रिया इस को पढवाने के लिए ...बहुत सी पंक्तियाँ कई समय तक याद रहेगी विशेष कर "मै एक बूँद दे देता था और वो चली जाती थी जाकर वो बाकी लहरो को बताती थी और फ़िर सब एक एक करके मेरे पास आती थी।"
उटपटांग ख़्वाब और ख्वाहिशों की एक साझी दुनिया ...दुनिया जहान सारे दोस्तों के साथ हम अक्ल के दुसमन बने ....बेवकूफी की साखों पे मटरगस्ती करते हउवे...फ्यूचर प्लान करते हैं....
एक और मिला जो मेरे अधूरेपन को कुछ पूरा करेगा। अरे डियर! यही तो तुमने भी लिख छोड़ा है .. यह टिप्पणी यहाँ, इस बॉक्स में पूरी है। बायीं ओर खिसकेगी और अधूरी हो जाएगी। ये इनकम्प्लीट छूट जाएगा।
.. कविताओं वाले ब्लॉग की हौसला अफजाई से 'तंग' हो कर यहाँ आया। पाया कि कभी कभी तंगी में आटा गीला, धुत्त! आँखें गीली करना ठीक होता है।
..पूरा काव्य है। अनुभूतियों की बारिश समेटे सिगरेट के छ्ल्ले उड़ाए जा रहा है।
अपने पास तो कुल जमा पूंजी यही है भाई...कुछ बंटी सिगरेट ...कुछ कटिंग चाय ...गुजरात की मिलावटी शराब में बांटे गए फलसफे ...उस कोकटेल का नशा अब महँगी वाइन में नहीं मिलता .....अस्पताल के बिस्तर पे आंसुओ से लदे दोस्त को भी हमने देखा है ....ओर आधी रात को काम छोड़कर अपनी gaadi दौडाते दोस्त को .भी...खून के रिश्तो से भी ज्यादा कीमती है ये रिश्ते ...
dost...bhut khub.tusi dil jeet liye ho bs.mujhe to aap dil ke enginier lgte ho...
एक किस्सा हम भी जोड़ते जाते हैं.. मेरे दोस्त मेरा सुसाइडल नोट पढ़ कर उसका और मेरा मजाक उडा रहे थे..
apne dost ko marte hue dekhna......
waqayi dukhad hota hai
aapki har baat har kahani aur sansmaran dil ko chhu gaya ..
botal mein samudra khas pasand aayi
...................
ये बात ! और छेड़ो थोडा...
इस अल्मा मैटर में हमारे कॉलेज का भी नाम है... और पोस्ट में हमारी कहानी...
बहुत जमा पढ़ना।
@ PD - पांड़े, पाण्डेय, पाण्डे - कुछ बोलो। पंड़वा बोलने पर जरूर मुंह सूजेगा! :)
पूरा पढ़ गया। सीधी-सच्ची-मासूम अभिव्यक्ति अच्छी लगी।
अरे पंकज बहुत ही लाजवाब, बेमिसाल और धमाल...
सारे के सारे...
सच में, हमें भी अपने बिंदास दिन याद आ गये....
वैसे यही वो दिन हैं जो सबसे खुशनुमां हैं बाद में तो ...चक्की पिसिंग एंड पिसिंग एंड पिसिंग...:)
बहुत पसंद आई ये प्रस्तुति...
खुश रहो...
शानदार कॉकटेल! खूब चढ़ी सुबह-सुबह!
बह गये पूरे बह गये हम तो इस दोस्ती के उफ़ान भरे तूफ़ान में... बेहतरीन
Hello :)
Kya likhte hain aap!!!
Main saara kal nahi padd paayi thi time ki kammi ki wajah se issliye aaj pura padaa...
Itne saare palo ko aapne jo likha hai wo sachh mein umdaah hai :)
Ek-2 cheez ko ek-2 episode ki tarah sundar shabdo mein bayaan karna...shayaad issi ko "art" kehte hai :)
Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com
वन ऑफ़ योर बेस्ट कहूँगी मैं इसे. हॉस्टल के कमरों की एक मिली जुली सी खुशबू होती है जो तुम्हारी इस पोस्ट से भी आ रही है. बहुत खूबसूरत लिखा है...खास तौर से लहरों का वर्णन. बेहद पसंद आई पोस्ट. नागिन डांस... :D भई वो तो बारात की जान होता है. क्या खूब लिखा है पंकज. जियो!
BAHUT SUNDAR RACHNA
SHEKHAR KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
bhaut acha likhte ho yaar... dost aisa laga jaise jiwan ke woh din phir se reel dar reel khulte ja rahe hain..
THREE IDIOTS bhi aapki sacchi aur saral lekhni ke aage fail hain. kasam se....
और समुद्र की हर लहर मुझसे बीयर की एक घूँट मांगने आती थी… मै एक बूँद दे देता था और वो चली जाती थी जाकर वो बाकी लहरो को बताती थी और फ़िर सब एक एक करके मेरे पास आती थी।
bahut khub.....
फ़िर पढ़ गये। फ़िर बहुत अच्छा लगा। सुन्दर! वाह!
आदेश ठाकुर
समंदर को बीयर पिला दी, हम तो ढूँढते हैं कि कोई प्यासे को पिलाए।
शब्द मौन रह गए। ध्वनि गले के नीचे ही रह गई।
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