Sunday, February 21, 2010

स्वप्न!!

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तुम्हे क्या कहूं ख़ुद ही बताओ,
अपने नैनो की भाषा
हमें भी समझाओ,

शायर की ग़ज़ल कहूं या कहूं
'पंकज' की कविता,
आंखों को तेरी कमल कहूं
या सूर्योदय मैं सविता ।

झील सी इन आंखों को हल्के हल्के,
उठाने के बाद जैसे ही देखती हो,
हल्का सा मुस्कुराकर ,
जब कुछ कहती हो ।
पता नही क्यों कोई
झकझोरता है दिल को,
लगता है की हेमंत में आया हो
पवन का झोंका,
नस-नस में होती है चुभन
हृदय कहता है अब स्पर्श
कर ही लूँ तेरा तन,
स्पर्श करने से हाथ में आती
नही हो,
फिसलती हो ऐसे ॥

जैसे मैंने स्पर्श किया हो कोई स्वप्न!!
कोई स्वप्न...!!

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पुरानी हसीन यादो मे से कुछ यादे है जो ऐश्वर्य राय से जुडी है :) जवानी की दहलीज पर पाँव थे और अपने दोस्तो की गर्लफ़्रेडस मे इन्डायरेक्टली चर्चे…… वो कविताये, जो मै ऐश के लिये लिखता था, वो मेरे कमीने दोस्त उनके नामो के साथ उनकी  गर्लफ़्रेडस को देते थे… (सिर्फ़ कमीना बोलकर मै उन्हे बख्श रहा हू :))

एक डायरी थी जिसके हर एक पेज पर ऐश की फोटो थी…… एक बार उनका पता हाथ लग गया तो पिता जी की हार्ड अर्न्ड कमाई से वो डायरी उन्हे कोरियर कर दी गयी…उस जमाने मे कोरियर भी शायद बडी चीज थी…पता नही कि डायरी उन्हे मिली भी कि नही, पर एक अच्छा खासा कलेक्शन हाथ से गया :)

तब बस ’नीली’ या ’झील सी’ आँखे ही कविताओ मे बधती थी…ये सब कुछ ऊपर लिखी ’झील सी’ आँखो का एक्स्प्लेनेशन है….. :)

साफ़्टवेयर लाइन मे इसे प्रोएक्टिवनेस बोलते है!!! :)

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18 comments:

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

उनकी आँखों को कमल कहते हैं।

@स्पर्श करने से हाथ मैं आती
नही हो,
फिसलती हो ऐसे ॥

जैसे मैंने स्पर्श किया हो कोई स्वप्न!!
कोई स्वप्न...!!

आप की लेखनी सशक्त है। बहुत सुखद अनुभूति हुई यहाँ आ कर। जरा फागुन की ओर भी दृष्टिपात करें कविवर !
इंटरनेट के आम पर बसंत आना चाहिए।
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- 'हेमंत मैं ', 'नस नस मैं', 'हाथ मैं' में 'मैं' को 'में' कर दीजिए।
- ह्र्दय को हृदय
- ऐशवर्य - ऐश्वर्य
- पाव - पाँव
- आख - आँख

डिम्पल मल्होत्रा said...

हमारी ऐसी ही इक कलेक्शन teachers के हाथ पड़ गयी और हमे वापिस कभी नसीब न हुई..ofcourse ऐशवर्य राय नहीं किसी और की थी वो..

Arun sathi said...

sundar
जैसे मैंने स्पर्श किया हो कोई स्वप्न!!
कोई स्वप्न...

Mithilesh dubey said...

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति लगी ।

Apanatva said...

zindagee ka ye bhee ek thour hota hai aata hai chala jata hai yade chod jata hai .

acchee lagee kavita.......

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@गिरिजेश जी

धन्यवाद, त्रुटिया बताने के लिये। सन्शोधन कर दिया गया है..

मै हिन्दी मे लिखने के लिये विनडोस लाईव राईटर का प्रयोग करता हू, कुछ अल्फ़ाज अभी भी उससे लिख नही पाता मसलन 'क्ष',’ज्ञ’, ये ’चन्द्रबिन्दी’ भी..

बहुत ही अच्छा हो कि अगर कोई स्पेसिफ़िक पोस्ट इन्हे लिखने के बारे मे बताये...अभी यहा इन कैरेक्टर्स को लिखने के लिये ’ब्लागर’ का सहारा लेना पडा।

वैसे ये कोई बहाने नही है..आगे से ध्यान रखा जायेगा.. आपका कोटि कोटि आभार!!

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@डिम्पल
थोडा टार्च फ़ेकिये कौन थे वो खुशनसीब इन्सान :) अच्छा है आपकी कलेक्शन टीचर के पास गयी, हमारी न जाने किसके पास गयी है... :)

बज़ से ज्ञानदत्त जी-

Gyan Dutt Pandey - भगवान करें डायरी किसी सुपात्र के पास गई हो।

डॉ .अनुराग said...

गोया अभिषेक को फॉरवर्ड कर रहे है ......

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@अनुराग जी

हा हा!! हम ’सीक्रेट अड्मायरर’ ही अच्छे ;)

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूबसूरत एहसाह हैं इस रचना में .... बहुत अच्छी लगी ...

श्रद्धा जैन said...

स्पर्श करने से हाथ मैं आती
नही हो,
फिसलती हो ऐसे ॥

जैसे मैंने स्पर्श किया हो कोई स्वप्न!!
कोई स्वप्न...!!


bahut sunder kavita

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अभिव्यक्ति की शैली अच्छी है.
अच्छा लगा पढ़कर.

रंजू भाटिया said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति भाव हैं इस रचना के शुक्रिया

ज्योति सिंह said...

boonde nahi sitare tapke hai kahkasha se ,
bahut sundar rachna

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति लगी ।

अनूप शुक्ल said...

वाह! लेकिन ये बताओ कि ये आंखे कब सी झील सी चली आ रही हैं जबकि आजकल की झीलें कित्ती कूड़ा-क़चरा सी हो गयी हैं! :)

क्ष=kSh
ज्ञ=j~j

सागर said...

mast likhele ho guru

Anonymous said...

haha Badiya :) Shandaar pradarshan.. bada rangeen likhte ho bhai -Sambhav