याद है, तुमने जब मुझे
भरी रोड पर ’स्टेचू’ बोला था,
वो लम्हा फ़्रीज़ हो गया था,
सिर्फ़ तुम्हारे एक ’पास’ के इन्तजार मे.....
आज जब ज़िन्दगी भागती है,
हर एक लम्हे पर पाव रखकर....
मै मजबूर लम्हो के बीच,
खडा सोचता हू, कि
तुम आओ और ’स्टेचू’ बोल दो....
और इस बार कोई ’पास’ नही.......
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P.S. सभी चाहने वालो को ’वैलेन्टाईन्स डे’ की शुभकामनाये… स्पेशली डा अनुराग को, जो आज के ही शुभ मौके पर विवाह के शुभ बन्धन मे बधे थे……
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21 comments:
लाजवाब अभिवुअक्ति है डा. अनुराग को विवाह की वर्षगाँठ पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
बहुत सुन्दर लगी आपकी यह रचना भाव से और लफ़्ज़ों से ...डाक्टर अनुराग जी को बहुत बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएं
सुन्दर अहसासों की उम्दा बानगी!
Aapkee rachana ke bhav ateet se judehai ......
aur ateet to yado ka khazana hee samete hai ........Dr Anurag ji ko meree aur se bhee Badhai ........
kitni gahree baat hai, bhagti zindagi me ek masoom chah......
dr anurag ko shubhkamnayen
बहुत अच्छे भाव .....सुंदर रचना .....!!
'Buzz' se aapka pyar..
Gyan Dutt Pandey - अभी तक खड़े हो! गुंजाइश रखो कि पास कहने वाले भूल भी सकते हैं! :-(
vijay..... .... - kya yaar...bachoon ke game khelte rehte hoo....:)
shreesh pathak - बेहद शानदार भाई..! बेहद,,..!
..धीरे धीरे तुम्हे भी ये वारल बीमारी लग रही है ....ये शायरी का रोग वैसे मोहब्बत के साथ कम्पली मेंटरी भी मिलता है !तुम्हारी ये आज़ाद नज़्म मैंने अपने एक दोस्त को फॉरवर्ड की है ...जिनको नज्मे इकठ्ठा करने का शौक है .....वे कहते है ..सोफ्टवेयर इंजिनियर गर इस कदर लिखेगे तो आने वाले समय में बाहर के देशो को इस काबिलियत को भी सर्टिफिकेट में लगाना पड़ेगा .....
वैसे जोक्स अपार्ट ....
तुम्हारी ये नज़्म ...तुम्हारे बेस्ट में से एक है .....
ओर हाँ एक बड़ा सा शुक्रिया फेंका है उस स्टेचू को तोड़ने के वास्ते .....
बेहतरीन ...लाजवाब अभिव्यक्ति .... गुज़रे हुवे वक़्त के लम्हों को आज में जीने की चाहत ..... ग़ज़ब का लिखा है ...
बहुत ही सुन्दर कविता जिसने मन को छू लिया.
ओह । शानदार
मै मजबूर लम्हो के बीच,
खडा सोचता हू, कि
तुम आओ और ’स्टेचू’ बोल दो....
और इस बार कोई ’पास’ नही....
अरे वाह!!क्या बात है!!!
aaj phir se ek baar"statue" bol do,, kitna rahasya chhupa huaa hai iss baat me, chote bache jo statue aur paas wala simple game khelte hain, usko bhi apne nichodd ke aur itne pyaare sabdo me bayan kiya hai, kisi ne statue nahi kaha mujhe aur pappu "pass" nahi huaa pankaj ji,. bahut sundar rachna sir ji
याद है, तुमने जब मुझे
भरी रोड पर ’स्टेचू’ बोला था,
वो लम्हा फ़्रीज़ हो गया था,
सिर्फ़ तुम्हारे एक ’पास’ के इन्तजार मे.....
आज जब ज़िन्दगी भागती है,
हर एक लम्हे पर पाव रखकर....
मै मजबूर लम्हो के बीच,
खडा सोचता हू, कि
तुम आओ और ’स्टेचू’ बोल दो....
और इस बार कोई ’पास’ नही.......
_________________________________________________kya baat hai..bhai..kya baat hai!!
बहुत सुन्दर लगी आपकी यह रचना भाव से और लफ़्ज़ों से ...डाक्टर अनुराग जी को बहुत बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएं
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
पहले ही पढ़े थे इसको लेकिन उस स्टेचू हो गये थे! अभी पास मिला तो कह रहे हैं- वाह!
स्टैचू और पास बोलने तक लगता है कि जीवनी को बागडोर हम उनके हाथों दे बैठे हैं ।
:)
simply amazing... वैसे पहले भी पढ़ी है ये नज़्म ऑरकुट पर गुलज़ार साब की कम्युनिटी में पर तब कोई कमेन्ट नहीं करा था :) पसंद तब भी इतनी ही आई थी...
वाह! एक बार फ़िर से वाह!
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