Sunday, February 8, 2009

मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ !!

कुछ वर्ष पहले मैंने धर्मवीर भारती जी की 'गुनाहों का देवता' पढ़ी थी। बहुत ज्यादा पसंद तो नहीं आई थी लेकिन उनकी नारी पात्र 'सुधा' ने बस जादू सा कर दिया था :)। उन्होंने उस पुस्तक में एक कविता के माध्यम से एक रिश्ते को समझाने की कोशिश की थी। वो कविता किसी अंग्रेज़ी कविता का हिन्दी अनुवाद था। मैंने इसकी मूल प्रति को काफ़ी ढूँढा लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है। क्या आपको पता है?

"मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ, न ! मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ ।

फिर भी मैं उदास रहती हूँ, जब तुम पास नहीं होते हो।

और मैं उस चमकदार नीले आकाश से भी इर्ष्या करती हूँ,

जिसके नीचे तुम खड़े होगे और जिसके सितारे तुम्हे देख सकते हैं। "

"मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ, फिर भी तुम्हरी बोलती हुई आँखें;

जिनकी नीलिमा में गहराई, चमक और अभिव्यक्ति है -

मेरी निर्निमेष पलकों और जागते अर्धरात्रि के आकाश में नाच जाती हैं।

और किसी की आंखों के बारे में ऐसा नहीं होता...."

"न....... मुझे मालूम है की मैं तुम्हे प्यार नहीं करती हूँ, लेकिन फिर भी

कोई शायद मेरे साफ़ दिल पर विश्वास नही करेगा।

और अक्सर मैंने देखा है, की लोग मुझे देखकर मुस्कुरा देते हैं,

क्यूंकि मैं उधर एकटक देखती रहती हूँ, जिधर से तुम आया करते हो। "

-- Taken From 'Gunhaon Ka Devta'

5 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

ओह यदि आप ऐसी पुस्तकों के प्रशंसक हैं तो आप अपना भी बहुत कुछ लिख सकते हैं। आपके अपने लिखे को नियमित उकेरें ब्लॉग पर, सफलता आपकी प्रतीक्षा में है।

ताऊ रामपुरिया said...

ज्ञानद्त जी सही कह रहे हैं.

रामराम.

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

जी.. आपकी दिखाई राह पर चलने की अवश्य कोशिश करूंगा.
धन्यवाद आप दोनों को

मनीषा पांडे said...

बहुत सुंदर कविता है। उपन्‍यास बुरा नहीं था, पर 16 साल की उम्र में पढ़ने के लिए अच्‍छा है। इस उम्र में नहीं उससे साझा नहीं हो पाता। और हो भी कैसे, जिंदगी ही कहां इतनी भोली, मासूम सी रह जाती है ना? हां और ये भी सच है कि सुधा का चरित्र याद रह जाता है। एक बंद, चोट खाए समाजों में जाने कितनी सुधाएं और कितने चंदर होंगे, जो कभी जान ही न सके कि उनका मन उनसे क्‍या कहता था। क्‍या चाहते थे वो?

अनूप शुक्ल said...

वसीम बरेलवी का एक शेर है:
"मोहब्बत में बुरी नीयत से कुछ भी सोचा नहीं जाता
कहा जाता है उसे बेवफ़ा, बेवफ़ा समझा नहीं जाता।"