अभी अभी देव डी देखकर आया हूँ। इस फ़िल्म में शरत चंद्र के देवदास को आधुनिक रूप से दिखाने की कोशिश की है। मुझे इस फ़िल्म ने काफ़ी कुछ सोंचने पर मजबूर किया। हम देवदास से देव डी तक आ चुके हैं। हमारा आज का देवदास ड्रग और वोदका में जीता है। आज की चंद्रमुखी उन पुराने कोठों की जगह, नए युग के रेड लाइट एरिया में रहती है। हम सच में काफ़ी आगे आ चुके हैं।
कभी कभी मेरा भी मन करता था की इस तरीके से नशे में खो जाऊं की सब कुछ भूल जाऊं, सारी जिम्मेदारियां, सारे दुःख सब कुछ। सुबह से शाम तक बस कुछ भी न याद रहे, बस चलता रहूँ बिना किसी मंजिल को सोंचे हुए। चलता रहूँ जब तक थक न जाऊं और जैसे थकूं , फिर से नशा लिया और फिर चल दिए। चलता रहूँ जब तक, या तो ये दुनिया ख़त्म हो जाए या मैं। जो भी देखूं वो सब कुछ एकदम नया हो, कभी पहाड़, कभी समुद्र, कभी सूर्योदय तो कभी पूरा चाँद। सब कुछ ऐसे देखूं जैसे कभी न देखा हो, सब कुछ ऐसे सुनूं जैसे कभी न सुना हो।
फिर मैंने इन खानाबदोश फिरंगियों को गंगा किनारे पागलों के जैसे बैठा देखा, मुझे जिज्ञासा हुई ये जानने की की आख़िर इन्हे इस गंगा घाट से मिल क्या जाता है। मैंने बनारस की वो गलियां देखीं, जो मैंने सिर्फ़ कुछ किताबों में पढ़ी थीं और मुझे देखकर काफ़ी आश्चर्य हुआ की ये लोग उन गलियों के किनारों पे बनी सरायों में अपने घर के जैसे रहते हैं। वहां की चाय की दुकानों पर रेट चार्ट, इंग्लिश, चाइनीज और फ्रेंच में लिखे होते हैं। हमारा भारतीय संगीत वहीँ पर जीता है। वहां की म्यूजिक शोप्स पर जितने अच्छे गिटार होते हैं उतने अच्छे सितार, ढोलक और बांसुरी और ये फिरंगी लोग उनमें डूब जाते हैं। इन लोगों को देखकर मुझे लगा की जब ये लोग नशे और सेक्स से ऊब जाते हैं और जब ये चीज़ें भी इन्हे शान्ति नहीं दे पातीं तब इन्हे गंगा की आरती में सुकून दीखता है, तब इन्हे संगीत में सुकून दीखता है। तब इन्हे योग से शान्ति मिलती है।
फिर हम क्यूँ उस तरफ़ जा रहे हैं, जो राहें वो लोग छोड़ चुके हैं ? जाने हम में से कितने आज भी शरतचंद्र के देवदास को समझ सकते हैं? शरत चंद्र के नारी पात्रों को समझ सकते हैं?????
मजे की बात ये है की मैं ये सब तब लिख रहा हूँ जब मैंने ख़ुद दो बियर पी रखी हैं
5 comments:
स्वागत है आपका
you are amajing
pehli baar aapka blog dekha...kamaal likhte hai... bahut badhaai
ये सब अजीब जिंदगी के अनसुलझे सवाल हैं। कोई नहीं जानता इनका उत्तर। शायद ये शांति, जिसकी मन हमेशा तलाश में होता है, कहीं बाहर नहीं, अपने भीतर ही होती है। कस्तूरी कुंडल बसै की तरह। िफर भी मन जिंदगी भर प्यार की खोज तो करता रहता है ना?
दो बीयर की बोतल का कमाल! धमाल! अब कैसा हाल?
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