सिगरेट के धुये मे,
कुछ शक्ले दिखती है,
मुझसे बाते करती हुयी,
कुछ चुप चाप.....
और सिगरेट जलती जाती है...
जैसे वक्त जल रहा हो,
गये वक्त को मै,
ऎश की तरह झाड देता हू
और वो माटी के साथ मिल जाता है,
खो जाता है उसी मे कही......
बस होठो पर एक रुमानी
अहसास होता है,
कहते है कि वक्त को जलाने का भी
अपना ही मज़ा है......
11 comments:
गहरी सोच लिये शानदार रचना
उफ़्फ़ क्या क्या न कह डाला आपने ये कह कर कि वक्त को जलाने का अपना ही मजा है....
अरे भाई जी यूं समय को ना जलाइये
कहते है कि वक्त को जलाने का भी
अपना ही मज़ा है......
Bas inhin do panktiyon ne kavita ko ucch shreni mein la khda kiya .....!!
jaise aapne meri nazm pe kahaa end sarahniy hai usi tarah aapka bhi end lajwaab hai ......!!
वक़्त हमें जलाता है जी :) पर आपकी रचना बहुत पसंद आई ..खासकर बस होठो पर एक रुमानी
अहसास होता है, कहते है कि वक्त को जलाने का भी
अपना ही मज़ा है...... बहुत खूब यही रूमानी एहसास रहे ....
कहते है कि वक्त को जलाने का भी
अपना ही मज़ा है......
वाह वाह बहुत उम्दा ।
एक सिगरेट को इस नज़रिए से कभी जाना नही था. शुरुआती कुछ पंक्तियाँ ही पढ़ के ही खूब महसूस हुआ, और कविता का अंत तो...
My favoritr line is " Bus kuch rumani ehsaas reh jata hai"...waise to main kabhi gujre waqt ke bare me sonchta nahi per kabhi kabhar jab kuch panktiyan padhne ko mil jati jisme joi apne past ke bare me sonch raha hota hai to main sonchne lagta hun ki kya main sahi ker raha hun....tumhari is line ne fir se sonchne per mmajboor ker diya...
Sahi kehte hain ki inspiration kahin se abhi aa sakti hai n tumahri cirgrette se aa gayi....well written
कहते है कि वक्त को जलाने का भी
अपना ही मज़ा है....
काफ़ी देर से जला रही हूँ :) gud one again !!!
अभी तक सुलग रही है भाई!
आपकी लिखी रचना को मेरी धरोहर ब्लॉग पर आज मंगलवार 18 फरवरी 2020 को साझा की गई है
सदर
मेरी धरोहर
https://4yashoda.blogspot.com
Post a Comment