Sunday, October 4, 2009

सम रैन्ड्म थिन्ग!!

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आफ़िस की मोनोटोनस और उबाऊ ज़िन्दगी से त्रस्त आकर एक लम्बी छुट्टी पर घर गया था..वो ज़िन्दगी देखने जिसने यहा तक पहुचाया है..

वो टेरेस जिसपर टहलते हुए मै अपने आप से बात करता था..वो सारी बाते… जो मै किसी से नही कर पाता था……मैने ईश्वर को हमेशा अपने पास मुझसे बात करते हुए पाया…… वो मुझमे ही कही था..उस टेरेस पर ही कही….

ज़िन्दगी बहुत धीरे चलती है वहा, इतनी धीरे की हर मन्जर डूबने का मौका देता है और यहा कोई लम्हा बीत जाने की खबर भी नही लगती..बस सिगरेट के धूए मे कभी कभी अपने आप से मुलाकात हो जाती है…और वही धूआ कुछ चेहरे दिखा देता है..

शादी के लिये बाते शुरु हो चुकी है और ज़िन्दगी की किताब पर फिर से किसी ने लिखना शुरु कर दिया है…कभी कभी मन करता है कि काश इस किताब का आखिरी पन्ना पढ सकता…

कभी कभी मन करता है कि काश कोई मुझे ज़िन्दगी के फ़ार्मूले समझा सकता क्युकि मेरे लिये ये हमेशा ही आर्ट थी……

6 comments:

@ngel ~ said...

As I said your poems are really good - they are simple , lines are catchy , images are taken from contemporary society , diction is taken from our day to day life as you use english words also. And what is most significant is that though it is a personal poem at one point it is generalised and one can easily connect himself with the poem.

I loved the line - Kash koi mujhey zindagi ke farmule samjha jaata kyunki mere liye toh zindagi hamesha se arts thi...
Keep writing ! :) tc!

रंजू भाटिया said...

कभी कभी मन करता है कि काश इस किताब का आखिरी पन्ना पढ सकता… कभी कभी मन करता है कि काश कोई मुझे ज़िन्दगी के फ़ार्मूले समझा सकता क्युकि मेरे लिये ये हमेशा ही आर्ट थी……

कमाल का लिखते हैं आप ...कभी ज़िन्दगी ने मौका दिया तो आपसे जरुर मिलना चाहूंगी क्यों की मेरा मन भी इस स्टुपिड ज़िन्दगी की किताब का आखिरी पन्ना पढना चाहता है ...

Sominya said...

Wow..beautiful..

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@Ranjana ji

meri khushnaseebi hogi aapse milna...abhi abhi aapka ye comment dekha...aur aaj hi padha tha ki aapki tabiyat najook hai... khayal rakhen.. aur oopar walene chaha to jaldi hi milenge :)

मनीषा पांडे said...

मेरे लिये ये हमेशा ही आर्ट थी……
आर्ट का कोई फॉर्मूला होता है क्‍या ? फॉर्मूले होते तो कला कभी बड़ी और महान हो ही नहीं पाती। यही तो है वो कि उसका कोई नियम नहीं। वो आकाश सी अनंत है और हवा सी निर्बंध। कितना सुंदर होता कि जिंदगी भी ठीक ऐसी ही होती, पर चूंकि ये मुमकिन नहीं, तब भी कोई बना बनाया फॉर्मूला न ही हो तो बेहतर। सिर्फ अपने दिल की सुनो। वो झूठ नहीं कहता, गलती तब होती है जब दिल की सुन नहीं पाते।

अनूप शुक्ल said...

तुम्हारे रैंडम थाट्स बहुत सुन्दर लगते हैं! प्यारे से दुलारे से!