Sunday, December 12, 2010

लाईफ़ इन सेक्टर्स…

atomic किसी सेक्टर के एक कफ़े कॉफ़ी डे में घुंघराले बालों वाला एक लडका, एक खूबसूरत आँखों वाली लडकी की तस्वीर टिसू पेपर पर बना रहा है। तस्वीर कुछ यूं बनती है कि लडकी तुरंत ही अपने पैरों से उसे फ़ुटबाल की तरह किक मारती है। घुंघराले बालों वाला लडका, कबाब में हड्डी बने एक और लडके की तरफ़ देख मुस्कराते हुये कहता है कि “देखा! आजकल आर्ट की कोई  इज्जत नहीं दोस्त…”| फ़िर लडकी की तरफ़ देखकर बशीर साहेब का एक शेर कहता है:-

कोई हाथ भी न मिलायेगा जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नये मिजाज का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो ॥

 

 

इसी नये मिजाज के शहर के किसी और सेक्टर में, मोमो की एक दुकान के पास इस शहरी समीकरण के लिये एक नया लडका, दूसरे से पूछता है कि “यहाँ मोमो कुछ ज्यादा ही नहीं चलते?””जिस शहर में चिंकियां चलतीं हैं दोस्त, वहाँ मोमो भी चलते हैं”

सामने नेक्स्ट के एक बडे शोरूम में बाहर रखी एलईडी पर धौला कुआँ रेप केस की ब्रेकिंग न्यूज आ रही है… अपोजिशन पार्टी के कार्यकर्ता हाथों में बैनर लिये प्रोटेस्ट कर रहे हैं – Save North East Girls

”शुक्र है, मुझे इन दोनो में से किसी का भी ’शौक’ नहीं!” नया लडका न्यूज देखते हुये बुदबुदाता है…

पास ही खडी कार से एक गाना बाहर आ रहा है - गल मिट्ठी मिट्ठी बोल…

 

कार की आगे वाली सीट पर एक लडका और एक लडकी के बैठे होने का आभास होता है। कार के काले शीशे चढे हुये हैं और इस गाने की आवाज के अलावा, उन शीशों के पीछे कुछ बनते, कुछ टूटते रिश्तों की कोई भी आवाज बाहर नहीं आती… बस सामने रखी एलईडी पर इस ब्रेकिंग न्यूज के वक्त ऎड बढ जाते हैं। बाजार को अभी भी इन खबरों का ’शौक’ है। नया लडका कार के काले शीशों से नजरें हटा कर मोमो को देखता है फ़िर नजरों को एलईडी की तरफ़ मोड देता  है। प्रियंका चोपडा कह रही हैं - व्हाई शुड ब्वॉयेज हैव ऑल द फ़न…

 

पास ही किसी और सेक्टर में एक बीयर शॉप के पास तीन कारें रुकती हैं… उनमें से तीन लडके उतरते हैं… काली पॉलीथीन में छुपी बीयर की बोतलें लेते हैं और फ़िर एक ही कार में बंद हो जाते हैं। बीयर की दुकान वाला नये ग्राहक से बडे गर्व से कहता है “सर बडी अजीब जगह है ये। यहाँ लोग कम हैं और कारें ज्यादा” नया ग्राहक मुस्कुराता है “अपनी ही दुकान पर पीकर बैठे हो? कितने पैसे हुये?” “सर यहाँ मकान और जमीनें कितनी भी मँहगी हो, कुछ चीज़ें बडी सस्ती हैं”

“क्या?” मुसकुराते हुए…

“अमीर लोग, गरीबों की ज़िंदगी और एल्कोहल…”

 

कार में बैठे लडके बीयर की बोतल फ़ोडने के लिये लड रहे हैं… कार का दरवाजा खुलता है… बीयर की बोतलों के फ़ूटने की आवाज के पीछे कार के म्यूजिक सिस्टम से आती एक दबी सी हल्की सी गाने की आवाज है…

ये शहर है अमन का, यहाँ की फ़िज़ा है निराली,
यहाँ पे सब शांति शांति है……

 

बीयर की बोतलों के काँच अभी भी जमीन पर दूर दूर तक बिखरे पडे हैं……

34 comments:

shikha varshney said...

आखिर आ ही गए :) स्वागत है .
और आते ही धमाका ..........
पर यहाँ सब शांति शांति है ..
एकदम मोमो सी दिलचस्प,और स्वादिष्ट रचना.

abhi said...

क्या बात है राईटर साहब...सही में आते ही धमाका..
"टाईट पोस्ट" :)

Majaal said...

दिल पर मत लीजिये जनाब, सब निभा जाइए,
पीना का शौक है तो पीजिये, वर्ना ग़म खा जाइए ;)

लिखते रहिये ...

Shekhar Suman said...

बहुत दिन बाद दिखे....
स्वागत है एक बार फिर...बड़ा ही धाँसू लिखा है इस बार तो....
बधाइयाँ जी...
मैंने अपना पुराना ब्लॉग खो दिया है..
कृपया मेरे नए ब्लॉग को फोलो करें... मेरा नया बसेरा.......

प्रवीण पाण्डेय said...

अब मुम्बई छोड़ कर गुड़गाँव पहुँच गये हैं, तो सांस्कृतिक बिजलियाँ झेलिये। गुड़गाँव में बहुत कुछ गुड़ भी मिल जायेगा।

monali said...

Wapasi.. wo bhi beer ki bottle ko fodne k sath :D

Nice post :)

स्वप्निल तिवारी said...

acchi post hai pankaj bhai...nabz sahi pakdi hai..

Ria Sharma said...

Hmmmmm...

Puja Upadhyay said...

दिल्ली के किरदार इतने अलग अलग है कि तुम्हारे जैसी बस एक निगाह की कमी थी. अब आ ही गए हो तो अलग अलग रंग देखने को मिलेंगे.
मुझे तो दिल्ली हमेशा गुलाबी चश्मे से ही दिखती है.

mukti said...

क्या बात है ! एकदम दिल्लियाना पोस्ट है. वेलकम टू दिल्ली एन ब्लॉगवर्ल्ड सर जी. एकदम चंगे लग रहे हो.
अभी पोस्ट के बारे में कुछ और नहीं लिखेंगे. अभी तो स्वाद लेने दो बस जी चोखी पोस्ट की :-)

rashmi ravija said...

हम्म क्यूँ कहते हैं..'देर आए दुरुस्त आए " कहने का मन तो था....'देखा इतनी देर से आए तो भूल गए लिखना' पर कहावत सही है...:)

जबरदस्त कोलाज़ है....लिखते रहो..अलग अंदाज़ में दिल्ली देखने को मिलेगी.

sonal said...

एक रचना ढेर सारे बिम्ब ... हर टुकडा अपने में पूरा और साथ जुड़ कर धमाल ...बहुत खूब

दीपक बाबा said...

सुसरा बियर की बोतले फोड़ने के लिए भी बहुते इन्तेज़ार करवाया.........

इन्तेज़ार का फल मीठा है.... निराशा नहीं हुई....

ज़ल्दी जल्दी आया कीजिए.

जयरामजी की

दर्पण साह said...

Welcome Aboard:
है अब इस म'अमूरे में, केहत-ए-ग़म-उल्फ़त, असद.
हम ने यह माना, कि दिल्ली में रहें, खायेंगे क्या?

Abhishek Ojha said...

आज फिर खबर आई है... कुछ खबरें तो इतनी कॉमन हो गयी हैं कि बिन उनके हेडलाइन ही नहीं बन पाएगी. फ़्रोंट पेज में से तीन-चार टोपिक ऐसे हैं जिनपर एक खबर तो रोज आ ही जानी है.

सागर said...

बड़ी कहावत थोड़ी जल्दी लिख गए ....कहावत कुछ यूँ है "जितने पैर हैं, उससे ज्यादा पहिये हैं "

नए आये हो बाबू, चौकन्ने तो रहोगे ही.... फिर आदत लग जाएगी... कल तक हम भी पटना से संसद के बारे में सोचते थे... आज वो सड़क से ज्यादा कुछ नहीं लगता.

Sankalp... said...

पंकज,

उस घुंघराले बालों वाले लड़के ने उसके दो दिन बाद ही अपने बाल कटवा लिये।
वो सुन्दर आँखों वाली लड़की आज भी बिना किसी बात के उससे लड़ती है और वो लड़का आज भी उसकी बेकारण नोक झोंक पर मुस्कुराता है...

इस शहर की तो आदत है दोस्त...यहाँ नोर्थ ईस्ट की लड़कियों और मोमो दोनों को ही खा जाने वाली नज़रों से देखा जाता है। नज़र नहीं नज़रिया बदलने की ज़रुरत है...

और हाँ... शराब और शबाब की इस नगरी में शक्ति प्रदर्शन सत्ता के गलियारों से लेकर सड़क पर खड़े हवलदारों तक सर चढ़ कर बोलता है..

मैं और तुम सिर्फ़ आम आदमी हैं।

वेलकम तो एन. सी. आर.!!!

डिम्पल मल्होत्रा said...

दर्पण और सागर सब आपको delhi में welcome कर रहे है कि डरा रहे है ;)

Manoj K said...

आपकी यह ताज़ा पोस्ट मेरे लिए यह खुशखबर लायी है कि आप अब और नज़दीक हैं. संकल्प से मिलने दिल्ली आना है, खूब जमेगी जब मिल बैठेंगे तीन यार, आप मैं और....


संकल्प

प्रिया said...

तो मान मनौती के बाद पधारे है आप.......जरा नारियल फोड़ने दीजिये




हम भी दिल्ली का प्रसाद लेकर जा रहे हैं...खतरनाक प्रसाद है....दूर से माथा टिका ले तो चलेगा :-)

anjule shyam said...
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anjule shyam said...

कोई हाथ भी न मिलायेगा जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नये मिजाज का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो ..
ये मिजाज तयं कोंन करता है हम आप ही ना....बेहतर है हम कहीं भी खुद का शहर ले के चलें...शायद नए शहर में सिफत होने का ये दर्द है...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

हमने ते अभी तक यही सीखा...

दिल मिले ना मिले हाथ मिलाते रहिए
यह नया शहर है कुछ दोस्त बनाए रहिए

JAGDISH BALI said...
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JAGDISH BALI said...

रोचक !

डॉ .अनुराग said...

अभी सिर्फ एक हिस्से का चेहरा है .....दरअसल हर शहर के कई चेहरे होते है....आहिस्ता आहिस्ता आप उनसे रूबरू होते है....जब जान पहचान बढती है तो कई सूरते प्यारी भी लगने लगती है उनका मिजाज़ भी.....फिलहाल जेकेट ओर सूट खरीदो.....

कुश said...

दिल्ली शहर है ये प्यारे..

अपूर्व said...

तो शहर की घड़कती नब्ज पर उंगलियाँ रखे हो..एक अजब शहर है..एक लम्बा सफ़र..किसी के सपनों की रोमानी ख्वाहिशों से किसी के सपनों की डरावनी हकीकत तक का..वैसे किसी शहर के पास जुबाँ नही होती..मगर भाषा होती है अपनी..शहर के पास आँखें नही होती..मगर ख्वाब होते हैं..यही शहर कभी अमीरी के मँहगे नशे मे इतना धुत्त हो जाता है कि गाड़ी फूटपाथ पर सोने वालों की गर्दन पर से निकाल देता है..तो यही शहर मुफ़लिसी के सस्ते नशे मे भी उतना ही शिद्दत से डूबता है कि उन्ही फूटपाथ पर लड़खड़ाते हुए रातें किसी नाली मे डुबो कर पड़ा रहता है..चुपचाप..शहर की खामोशी को सुनना..रात की वीरानगी भरी व्यस्तता मे..कुछ दास्तां मिलेगी..शायद शहर की कुछ अनकही दास्तानें शायद तुम्हारे लबों के इंतजार मे हों..
..सुबह चाय के ग्लास मे डुबो के खाना शहर को..इससे पहले कि शहर तुम्हे खा ले..
..वैसे उम्मीद है कि काफ़ी कुछ सैटल हो गया होगा..

Gyan Dutt Pandey said...

सुना है बड़ा अजीब शहर है वह। शराब की दुकाने हैं पर चलते चले जाओ, मिठाई जैसी कन्वेंशनल चीज की दुकान नहीं दीखती।

Bhawna 'SATHI' said...

jhansu hai jnab...lge rhiye,avi or intjar hai hme,es se v acha padhne ka..

Samsung 3G Mobile said...

Main aapko blog ko jab bhi internet par aata hu to jarur padhta hun.

अनूप शुक्ल said...

खूब! बहुत खूब!

Domain For Sale said...

बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई

कंचन सिंह चौहान said...

ये शहरों की फितरत है कि वो नये चेहरों को परेशान ही करते। हैरत और अजनबियत का अहसास जाने क्यों देने लगते हैं। मन में आने लगता है कि

जिंदगी कैसे कटेगी क़ैफ
रात कटती नज़र नही आती

मगर जैसा कि डॉ० साहब ने कहा थोड़े दिन में इन्ही में से कुछ चेहरे बड़े खूबसूरत, बड़े अपने से लगने लगते हैं और शहर भी...! फिर इतना अपना कि छोड़ के जाने के नाम से जी डरता है।

शुभकामनाएं।