Sunday, January 3, 2010

तन्हाई का फ़ैशन…

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आजकल तन्हाई का फ़ैशन है। मेरे हम उम्र दोस्त जिनके तकरीबन १०० से ज्यादा फ़ेसबुक फ़्रेन्ड्स है और तकरीबन उससे ज्यादा कान्टेक्ट्स सेल फ़ोन मे है, तन्हा है..और उन्हे नही पता कि ऎसा क्यू है?

कभी कभी मै भी सेन्टियाता हू तो पूरी कान्टेक्ट लिस्ट छान डालता हू, बात करने वाला कोई नही मिलता। कभी कभी लगता है कि “मै कौन हू? किसलिये धरती पर आया हू और मेरा मक्सद क्या है?” कभी कभी हिमालय अपनी तरफ़ साधू बनने के लिये बुलाता है और कभी कभी ये जिप्सी समुदाय प्रभावित करता है..कभी कभी सात्विक ज़िन्दगी अपनी तरफ़ खीचती है और कभी कभी ’हेडोनिज़्म’ समझने का मन करता है..कभी ओशो अपनी तरफ़ खीचते है तो कभी ये राबिन शर्मा..

आज की युवा जेनेरेशन इतनी ट्र्ब्लड क्यू है? कही पढा है कि क्रिस्टीन हास्लर ने इस पर एक बुक लिखी है ”20 something, 20 everything”..पढ्नी है लेकिन मै आपसे पूछता हू कि ऐसा क्यू है??

क्यू मेरे फ़ेसबुक के सारे साईड ऎड्स ’Are you Single?’ बोलते है..क्यू मेरे सेलफ़ोन पर इस तरीके के मेसेज आते रहते है-

“Tired of sitting alone on a Saturday night??? Wanna know when will you find the Love of your life? To know SMS LUV (Ur Name) to blah blah”

“Ab Akelapan Chodiye aur Chat kijiye. Dial … for Yuvika, …. for siya..blah blah”

“Someone Somewhere is Made for Me?? When Will I find My True Love?? SMS LUV (Ur Name) to blah blah”

क्या आजकल सब कुछ बिकाऊ है, इन्सान का अकेलापन भी? आज का युवा ट्र्ब्ल्ड है, कन्फ़्यूज्ड है, अकेला है और बोरड(Bored) है…

इसके लिये कौन से कारक जिम्मेदार है??

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P.S. २-३ दिन से फ़्लैट मे अकेला हू, रूममेट्स घर गये हुए है तो काफ़ी समय मिल गया एक इन्ट्रोस्पेक्शन के लिये..काफ़ी दिनो के बाद आज हिन्दी ब्लाग्स पढ्ने का समय मिला..बहुत तकलीफ़ हुई, यहा आता था लोगो से सीखने लेकिन ये दुनिया भी हमारी असल दुनिया ही निकली..वही ग्रुपिज़्म, वही जाति, धर्म, लिन्ग और भासा विवाद…मन छुब्ध है..

अदा दी ने एक अलग मिसाल दी है… हैट्स आफ़ दी..

कल से ज़िन्दगी की एक नयी शुरुआत कर रहा हू, नये ओर्गेनाईज़ेशन मे पहला दिन है..आप लोगो के आश्रीवाद की कामना है… और सबको मेरी तरफ़ से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये…

23 comments:

Arvind Mishra said...

बहुत शुभकामनाएं ......अनुभव जिन्दगी की थाती हैं उन्हें बटोरते चलिए काम आयेगें !

रश्मि प्रभा... said...

ज़िम्मेदार है हमारी विस्तृत लालसा, भौतिकवादी होना........भावनाओं को हमने सूली पर चढ़ा दिया है

Udan Tashtari said...

सही कहा!



’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

उत्कर्षों के उच्च शिखर पर चढ़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।

nidhi said...

sach me tanhaayi ka fashion hai.....darasal tanhaai bhut faayedemand cheez hojaati hai khaskar tb jb umr ho prem dhoondhne ki,tb kha jaa skta hai na,"bhut akela/akeli hu,mere saath rho".aksar log akelepan ki leela me doobte utarte gazal,kaveeta banchte,tanhaayi ka gungaan karte firte hain lekin ye lekh padh kar mza aagya kyunki mujhe akelepan ki marketing se sath chahne-paane vaale logo se humesha koft hoti rhi hai.dekho marketing ke zmaane me logo ne dil ke khaali kone bhi bech daale........

nidhi said...

dher saare log janm janm se or janm janm tk tanhaayi pr kaveeta..gazal khte rhe hain lein ye aalekh padh kar mza aagya.tanhaayi darasal kitni fayedemand cheez ho jaati hai na khaaskar tb jb kisi ka balki kisi khaas ka sath chaahiye hota hai.."bhut akela/akeli hun main mere saath rho",sach marketing ke is dor me yuva dil ke khaali kone ko bhi bech ke khaane lage hain .mujhe humesha hi akelepan ke chaaro or chakrati baato se koft hoti hai aj ye lekh pdh kr mza aagya..arre in akele..ghutte logo se kaho na..darvaza kholo.. bahar niklo or puri duniya ke ho jao..mazedar ,sateek lekh tha

रावेंद्रकुमार रवि said...

नए वर्ष पर मधु-मुस्कान खिलानेवाली शुभकामनाएँ!

सही संयुक्ताक्षर "श्रृ" या "शृ"

FONT लिखने के चौबीस ढंग

संपादक : "सरस पायस"

@ngel ~ said...

pankaj ye aap hi ne kaha tha shayad - loneliness is a disease.
and - wo gaane ki panktiyan yaad hain ... sabhi akele hain yahan...
Loneliness has become one of the epidemic of Modern Age... log bimari se kam isse jyada marte hain. But what we need to do is "be with ourselves" when nobody is with us. Khair , ye sab dusron ko kehna aasan hai and I know this :)

डॉ .अनुराग said...

वक़्त बड़ा जालिम है .....इसके एक पन्ने पर जो इन्सान फ़रिश्ता नजर आता है .अगले पन्ने पर उसी भीड़ का हिस्सा ......आज सुबह तक शायद कुछ चेहरे भीड़ में मिल गए होगे.....यश बड़ी जालिम चीज है ...खैर अब तुम्हारी परेशानी पर .....
कल टाइम्स ऑफ़ इंडिया का स्पेशल एडिशन बांच रहा था ...अब बच्चा बड़े होते ही अकेलेपन ढूंढने लगता है .परिवार भीड़ सा लगता है ....इंडी पेंडेंसी शुरुआत में बड़ी किक देती है .फिर काटने लगती है ...कहते है ये मूड की बात है ..अपुन से कभी अकेले नहीं रहा गया ...वैसे ये वर्चुवल वर्ल्ड है....यहाँ तनहा भी हो....ओर भीड़ में भी....

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

वाह!! दिल ले गयी ये बात।

"वक़्त बड़ा जालिम है .....इसके एक पन्ने पर जो इन्सान फ़रिश्ता नजर आता है .अगले पन्ने पर उसी भीड़ का हिस्सा ......आज सुबह तक शायद कुछ चेहरे भीड़ में मिल गए होगे...."

समस्याये और भी है..शायद जेनेरेशन गैप बहुत बढ गया है..काफ़ी जनता है जो मिडिल वर्ग से हाई मिडिल क्लास की तरफ़ बढी है, लेकिन सिर्फ़ वही बढे है उनके पैरेन्ट्स अभी भी वही है और रिश्तेदार भी...मोबाईल ने भी हर समय उपलबध रहकर एक सेचुरेशन की स्थिति ला दी है..पहले वो एक चिट्ठी ही जीवन जीने का जोश भर देती थी..आजकल की जेनेरेशन को सबसे आगे चलना है..अगर रुककर थोडा आस पास देख ले तब भी इससे बच सकते है..किसी का कमेन्ट देखा था रश्मि जी के ब्लाग पर..शायद वही सच्चाई है -

"सब अपने अपने में मस्त हैं...इसीलिए तो अकेलापन है!"

सौम्या सही कहती हो समझाना बहुत आसान है और अपनाना बहुत मुशकिल..

Asha Joglekar said...

बच्चे आप की तनहाई का जिम्मे वार और कोई कैसे हो सकता है । ईश्वर करे िस नये काम में आपको ढेर सारा सुकून और बहुत से दोस्त मिलें और खूब काम कि तनहाई बचे ही ना । आशिर्वाद देने के लिये ही तो होते हैं बुजुर्ग ।

Asha Joglekar said...

और हां एक अच्छा जीवन साथी भी ।

सुशील कुमार जोशी said...

हाँ कुछ हट के ही हो !!

बात दिल ले जाये कोई बात नहीं
देखना बात बात मे कोई दिल ना ले जाये

बधाई !!

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@आशा जी
ये मेरी बात नही, आजकल की बहुत कामन बात है और ये युवा वर्ग अभी नेट पर ही रिश्ते ढूढता है, घर मे बैठे मा बाप से इसकी बाते चन्द मिनटो मे खत्म हो जाती है..जेनेरेशन गैप भी है आखिर..

जीवनसाथी मिलते ही सूचित करता हू :) ..शुक्रिया..

@ngel ~ said...

Generation gap per itna focus hai to ek baat kahungi- agar parents co-operate kare is baat mein ki - thoda hum jhukte hain thoda aap log jhuko... tab ye problem reh hi nahi jaayegi...
On the basis of ur psyco - analysis I can make out y u r emphasizing this fact "generation gap" :P
Well sach me shaadi akelepan ka solution nahi hai ...
bcz - loneliness is a state of mind . koi ise door karne mein aapki help nahi kar sakta... :)
nice topic for discussion.
tc!

स्वप्न मञ्जूषा said...

पंकज,
हम इस पोस्ट को देख ही नहीं पाए थे...
देर हो गयी, ..बुरा लग रहा है..तुम अकेले थे और हम आये नहीं..
आशा ही नहीं विश्वास है..तुम एकदम ठीक होगे...होना ही चाहिए.....
मेरा भाई...और उदास हो ही नहीं सकता...
खुश रहो..
दी..

Chandan Kumar Jha said...

कामयाब पोस्ट………!!!

संजय भास्‍कर said...

मेरा भाई...और उदास हो ही नहीं सकता...
खुश रहो..

TRIPURARI said...

आजकल तन्हाई का फ़ैशन है।
मैं भी आजकल कुछ इसी सोच से गुज़र रहा हूँ दोस्त | कुछ आराम मिला | कुछ बेचैनी भी | शुक्रिया |

संजय भास्‍कर said...

वक़्त बड़ा जालिम है .....इसके एक पन्ने पर जो इन्सान फ़रिश्ता नजर आता है .अगले पन्ने पर उसी भीड़ का हिस्सा ......आज सुबह तक शायद कुछ चेहरे भीड़ में मिल गए होगे.....यश बड़ी जालिम चीज है ..

अनूप शुक्ल said...

आज इस वक्त आप हैं,हम हैं
कल कहां होंगे कह नहीं सकते।
जिंदगी ऐसी नदी है जिसमें
देर तक साथ बह नहीं सकते।


रमानाथजी की ये पंक्तियां याद आ गयीं तन्हाई-कथा बांचकर!
http://hindini.com/fursatiya/archives/64

अनूप शुक्ल said...

इस पर पहले भी टिपिया चुका हूं! ब्लॉगजगत में एक से एक बेहतरीन पोस्टें हैं एक से एक शानदार लेख/कवितायें हैं। मौका मिले तो उनको पढ़ो! यहां बहुत कुछ कूड़ा है लेकिन सब कुछ नहीं। काम भर का कंचन भी है यहां भाई!

तुम्हारा ब्लॉग पढ़ने का बहुत दिन से मन था। आज इस पोस्ट के पहले सब बांच डाली। मुझे तो कहीं ब्लॉगजगत खराब नहीं लगता! :)

प्रिया said...

aapka lekhan bahut damdaar hai...khush hoon ki kuch sachche log bache hain shayad....padh kar hi ek jwaar sa uthta hai...sagar ki lahron jaise.....jane kaha tak jana hain unhe bhi nahi pata mujhe bhi......har baar sahil ji badal jaata hai