Tuesday, December 8, 2009

मै, तुम, बेटा और दीवारे….

2902978898_05ff656c5e

कभी कभी बस किसी का लिखा दिल को छू जाता है…कुछ लफ़्ज कभी नही भूलते, कुछ ज़ुमले बस जबा से लग जाते है…

ऐसी ही एक कविता मैने हाल मे ही पढी (चिट्ठाचर्चा के सौजन्य से)…और न जाने क्यू बार बार पढने को मन होता है…… मैने सोचा कि मै अपने ब्लाग के माध्यम से उन्हे प्रणाम कर सकू॥

http://tiwarimukesh.blogspot.com/2009/11/blog-post_30.html

“अक्सर,
रातों को
मैं, तुम, बेटा और दीवारें
बस इतना ही बड़ा संसार होता है
बेटे की अपनी दुनिया है / उसके अपने सपने
दीवारें कभी बोलती नही
और हमारे बीच अबोला
बस इतना ही बड़ा संसार होता है।


तुम्हारे पास है
अपने ना होने का अहसास /
बेरंग हुये सपने /
और दिनभर की खीज
मेरे पास है
दिनभर की थकान /
पसीने की बू
और वक्त से पीछे चल रहे माँ-बाप


ना,
तुमने मुझे समझने की कोशिश की
ना मैं समझ पाया तुम्हें कभी
तुम्हारे पास हैं थके-थके से प्रश्न
मेरे पास हारे हुये जवाब
अब हर शाम गुजर जाती है
तुम्हारे चेहरे पर टंगी चुप्पी पढ़ने में
रात फिर बँट जाती है
मेरे, तुम्हारे, बेटे और दीवारों के बीच…”

विराग जी की ये पन्क्तिया भी बहुत अच्छी लगी…

मत आओ मेरे जीवन में,मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा!!

“घर में लोग सिसकते हैं,
और जाने कितने भूखो मरते हैं!
कितने पापी पेट की खातिर,
जाने क्या क्या करते हैं!!
इस क्षुधा अग्नि के घर में रहकर मैं तुमको श्रंगार नहीं दे पाऊँगा!
मत आओ मेरे जीवन में,मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा!!”

मेरी चन्द त्रिवेणिया -

1- एक छटपटाहट सी हो रही है मन मे,
एक ज़माने के बाद आज अकेला बैठा हू।

डरता हू, कही तुम फ़िर से याद आ गये तो….

2- ख्वाबो की विन्डो बेतरतीब खुलती गयी,
और आपरेटिन्ग सिस्ट्म-ए-ज़िन्दगी हैन्ग हो गया।

ज़िन्दगी!! अब तो ctrl+alt+ delete भी काम नही करता….

10 comments:

मुकेश कुमार तिवारी said...

प्रिय पंकज,

उजली जिन्दगी के एक पहलू से रू-ब-रू कराती कविता को मैंने ना जाने कितनी बार जिया है। एक ओर दिनभर दुनिया को अपनी मुट्ठी में कैद करने वाला इन्सान जब घर की चारदीवारी में जब खुद को अकेला पाता है परिस्थितियों से जूझते हुये निपट निसहाय, एकाकी तब वह अपने आप को बंटा हुआ पाता है......

इस सच को स्वीकार करके ही कोई रास्ता खोजा जा सकता है और नकारते हुये जीवन के पथ पर भटकाव के सिवाय कुछ और हासिल नही होता, ऐसा मेरा मत है।

यह कविता आपको पसंद आयी और उसे आपने अपने ब्लॉग पर जगह दी, धन्यवाद।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

रश्मि प्रभा... said...

जिन कविताओं को, जिन एहसासों को आपने उधृत किया है.........सच में दिल तक उतर गए

Asha Joglekar said...

वाह , कविताएं बहुत सुंदर है और आपकी त्रिवेणीयां भी । खास कर ये .
ख्वाबो की विन्डो बेतरतीब खुलती गयी,
और आपरेटिन्ग सिस्ट्म-ए-ज़िन्दगी हैन्ग हो गया। ज़िन्दगी!! अब तो ctrl+alt+ delete भी काम नही करता….

कविता रावत said...

Bahut achhi kavitayen ki prastuti ke lelye dhanavaad....

दर्पण साह said...

क छटपटाहट सी हो रही है मन मे,
एक ज़माने के बाद आज अकेला बैठा हू।
डरता हू, कही तुम फ़िर से याद आ गये तो….
Treveniya hamesha hi mujhe prabhavit karti hain...

Aapki ne bhi bhi kiya.
Mano kahi aur se bhi nai koplein phoot rahin hon...
..Fir Intensity ki kise dar. Wo bhi aa jaiyegi.
Practice makes Object Perfect.

Aap bahut pehle se jude hue hain mere blog ke saath aur main bhi.

Kavita ne bahut bahut prabhavit kiya. Ise share karne ke liye dhanyavaad.

अनूप शुक्ल said...

मुकेश तिवारी जी मेरे पसंदीदा कवि हैं। आपको भी उनकी कविता अच्छी लगी। आपकी पहली त्रिवेणी पढ़कर हंसी सी आ गयी। जय हो। लिखते रहें।

TRIPURARI said...

बहुत अच्छा लगा | पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ मगर अब हमेशा आना पड़ेगा ऐसा लगता है |

डिम्पल मल्होत्रा said...

post padh ke likhne ki halat nahi hai...kuch dukh sa raha hai,,,

संजय भास्‍कर said...

Bahut achhi kavitayen ki prastuti ke lelye dhanavaad...

अनूप शुक्ल said...

वाह! आज ऐसा लगा कि चिट्ठाचर्चा की भी कोई उपयोगिता है!