आज थोडी तबियत ढीली होने की वजह से ऑफिस नहीं गया। काफ़ी दिनों के बाद अपने फ्लैट में अकेला हूँ, क्यूंकि बाकी रूम मेटस ऑफिस गए हुए हैं। काफ़ी दिन हो गए हैं मुझे अकेले कहीं भी रहे हुए। सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं... वो लोग याद आ रहे हैं जो इस ज़िन्दगी की दौड़ में कहीं छूट गए हैं। कुछ लम्हे याद आ रहे हैं....
...मैं केजी कक्षा में हूँ। एक प्यारी सी लड़की क्लास में आती है। उसने एक बहुत सी प्यारी सी frock पहन रखी है और उसके सर पर एक गोल टोपी है। मैडम पूछती हैं “आज ये किसके पास बैठेगी?” हमारा हाथ सबसे पहले खड़ा होता है और बाकि बेवकूफ बच्चे हमें देख रहे होते हैं। और... वो हमारे पास ही बैठती है। हम साथ मैं tiffin करते हैं और एक दूसरे की बोत्तल से पानी भी पीते हैं। इसके अलावा उसके बारे में कुछ याद नहीं....
कक्षा ९.. हमारे जीव विज्ञान के सर जिनको बच्चे प्यार से ‘छिपकली’ बुलाते हैं। क्यूँ बुलाते हैं का कोई मोटा कारण तो नहीं है हाँ कुछ बच्चों से सुना है की वो blackboard पर ‘छिपकली’ अच्छी बनाते थे। ‘ छिपकली’ सर क्लास में पढ़ा रहे हैं और हम पहली कतार मैं बैठे हुए हैं। पिता श्री का कहना था की पहली कतार मैं बैठने वाले लड़के मेधावी बनते हैं सो हम भी बैठे हैं। हम कुछ गुनगुना रहे हैं की उन्होंने हमें गुस्से से देखा और बुलाया। जैसे हम उनके पास गए उन्होंने... बस अब क्या बोलें..., हमें पीटना शुरू कर दिया.. कभी इधर... कभी उधर... उस वक्त हमारे दिमाग मैं बस एक बात चल रही है की आख़िर हमने क्या किया है। काफ़ी देर के बाद याद आया की हम एक गाना गुनगुना रहे थे... “छिपकली के नाना हैं, छिपकली के हैं ससुर... dianasur, dianasur...”
स्नातक तीसरा साल ... ख़बर मिली है की ‘विनीत’ मेडिकल कॉलेज में भरती है। हम भी लखनऊ पहुँचते हैं और हमारी आंखों के सामने वो लेता होता है। वो लड़ रहा है एक एक साँस के लिए। कोमा मैं है... तब हम शायद पहली बार १०८ बार किसी भगवान् का नाम, या कोई मंत्र पढ़ते हैं की शायद उससे ही बच जाए। लेकिन मेरा दोस्त चला जाता है। सब रो रहे हैं, उसकी मम्मी रोते हुए हमसे कह रही हैं की “अब तुम क्रिकेट किसके साथ खेलोगे?” और हमारे आंसू नहीं निकल रहे हैं। आत्मा धिक्कार रही है की सब रो रहे हैं, तुम क्यूँ नहीं लेकिन हम समझ ही नहीं पा रहे हैं की क्या हुआ है? एक वेन मैं वो लेता हुआ है, हम भी उस वेनमैं उसके साथ बैठ जाते हैं। वेनचलती है, हम उसको छूते हैं..उसको पकड़ कर उसके पास लेट जाते हैं..और चिल्ला चिल्ला कर रोते हैं।
स्नातक तीसरा साल ... एक लड़की, पत्र मित्र बनी है, जिसके साथ अपने सारे सुख और दुःख बाँट रहे हैं और हम दोनों एक दूसरे को पत्र लिख रहे हैं। उसे अपनी कवितायें लिख रहे हैं और वो हमेशा की तरह बड़े ही प्यार से उन पत्रों का उत्तर भेज रही है। इस रिश्ते को हम ‘हमराज़’ का नाम देते हैं और एक दूसरे को बिना देखे हुए बातें करते रहते हैं। उसके सारे पत्र, गुलाबी लिफाफों के साथ अभी तक हमारे पास रखे हुए हैं। वो अपनी शादी में हमें आमंत्रित करती है। हमें वहां कोई भी नहीं जानता है लेकिन जैसे ही अपना नाम बताते हैं, लगता है की न जाने इस घर से कितना पुराना रिश्ता हो। फिर ‘उसको’ देखते हैं। वो बहुत ही सुंदर है। उससे बातें करते हैं पर बातें जैसे ख़त्म ही नहीं होतीं। उसकी शादी होती है। हम वहां से चले आते हैं उसकी यादों के साथ। ( अभी कुछ दिन पहले ही उसको एक प्यारा सा बेबी हुआ है और वो बेवकूफ ‘मम्मी’ बन गई है।)
MCA दूसरा साल... हमारे हॉस्टल के एक कर्मचारी की बीवी को खून की जरूरत है। हम भी पहली बार अपना खून किसी को देते हैं। बियर पीकर वापस आते हैं और अपने dean की क्लास करते हैं। ये हमारी ज़िन्दगी का सबसे हिम्मती कारनामा है क्यूंकि उसकी क्लास मैं बियर पीकर बैठना, अपनी मौत को गले लगाने जैसा है। Hemant की बीवी भी kushal है।
और भी कुछ लम्हे हैं, जिनके बारे मैं लिखना मुझ जैसे तुक्ष ब्लॉगर के बस की बात नहीं है। अभी चाय पीने का जबरदस्त मन हो रहा है तो हम चाय पीने चलते हैं। तब तक के लिए अलविदा!!
9 comments:
ज़िन्दगी की ढेर साड़ी यादें होती हैं ...खट्टी मीठी ...अपनी यादों से रूबरू कराया ...बहुत अच्छा लगा पढ़कर
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बढ़िया रहत है ऐसे ही यादों में खो जाना!! अच्छा लगा पढ़कर.
सुन्दर, मेरा भी चाय पीने का मन हो रहा है। पर यह छोटेलाल (चपरासी) जाने कहां गया।
अकेले बैठे मेरे मन में भी ऐसे ख्याल आते हैं।
होली की बधाई और घणी रामराम.
hey these are really touching moment... even I could feel them :)
"छिपकली के नाना हैं, छिपकली हैं ससुर.."
आहा क्या गाना याद दिलाये मित्र.. एक और गीत याद आ रहा है..
"कोई करामात ऐसी नहीं जो इनको नहीं आती..
लोगों ये हैं करामाती.. करामाती.. करामाती.." :)
एक सवाल भी है, क्या एक बियर इतनी भी चढती है कि सामने वाले को पता चल जाए कि कुछ पी रखा है? अपना अनुभव तो ऐसा नहीं है.. :) दो-तीन बियर तो यूँ ही गटक लेते हैं.. ;)
कितना सुंदर, भोला-भाला, प्यारा-प्यारा। मैंने तुम्हारे ब्लॉग पर ही कहीं कहा था शायद कि इंसान यादों की गठरी है। देखो न, कितनी सारी प्यारी यादें।
और हां, बचपन से ही लक्षण प्रकट हो गए थे हां? लड़की क्लास में आते ही हाथ उठाते हैं जनाब कि वो मेरे पास बैठेगी। नालायक :)
सुन्दर! बहुत सुन्दर! सिलसिलेवार तरीके से पढ़ने का यही फ़ायदा होता है। सब कड़ियां जुड़ती सी लगती हैं। पुरानी पोस्टों से कुछ जुड़ा भी। बेवकूफ़ का जिक्र पहले भी आ चुका है न!
Nice blog thanks foor posting
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