Wednesday, March 13, 2013

नोट्स…

पीडी


पीडी एयरपोर्ट के बाहर खडा है…

वो हवा में हाथ हिलाता है मैं भी हाथ दिखाकर जवाब देता हूँ… और याद करने की कोशिश करता हूँ कि पीडी से कैसे परिचय हुआ? ब्लॉग से तो हुआ लेकिन कब, ये याद नहीं आता…

पहली मुलाकात याद आती है जब पीडी को गुडगांव आना था। उस सुबह मैं बहुत गहरी नींद में था और सुबह सुबह उसे लेने सेक्टर ४० मार्केट गया। फ़िर हम काफ़ी देर साथ बैठे.. कुछेक कप चाय पी और फ़िर दुनियादारी की कुछ बातें। दूसरी, जब मैं और सागर रिक्शे पर आगे बैठे थे और पीडी को उल्टा पीछे बिठा दिया था। रास्ते भर सागर उसे छेडता रहा.. रात में फ़िर गिटार को छेडा और उसके बाद दोनो भले मानसों ने मिलकर संगीत के रागों को भी जमकर तोडा छेडा..

बहुत पहले जब मैं बॉम्बे में था तब बातों बातों में हमने एक बाईक ट्रिप प्लॉन की थी। कह सकते हैं  मोटरसाईकिल डायरीज की तर्ज पर लेकिन उसका कुछ हो नहीं पाया। इस बार मुझे वीजा इंटरव्यू के लिये चेन्नई जाना था। मैंने दो दिन अपने पास और रख लिये और पीडी से फ़िर बात की। बात सिर्फ़ दो मिनट हुयी। सवाल था दो दिन.. एक बाईक ट्रिप… पांडिचेरी…? जवाब में पीडी हाथ हिला रहा है… मैं फ़िर हाथ उठाकर जवाब देता हूँ…

पांडिचेरी

सुबह से बारिश हो रही थी। चाय पीने के बाद हमने सोच लियाBike था कि भीगते हुये भी जाना हुआ तो जायेंगे। फ़िर बारिश हल्की हुयी… पीडी ने बाईक निकाली और हम निकल पडे सडक पर।

सडक, जिसके साथ साथ समंदर चलता था। समंदर, जिसके साथ साथ आसमान। आसमान, जिसके सहारे बारिश भरे बादल धीमे धीमे लेकिन बढते जाते थे। …और बाईक पर पीछे बैठा मैं, उन बादलो के पीछे बैठे ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि दुनिया सच में कितनी खूबसूरत है…

 

 

लॉस्ट इन ट्रांसलेशन @चेन्नई

१) उत्तर भारतीयों से इस शहर के काफ़ी किस्से सुने थे। शहर में जाता हूँ तो थोडी देर तो लगता है कि मैं भी Bill Murray साहेब की तरह लॉस्ट इन ट्रांसलेशन हो गया हूँ। भाषा जरूरी चीज़ प्यार में नहीं होती होगी, एक शहर में तो होती है खासकर तब जब आपको एक ऑटो वाले को फ़ोन करके ये कहना होता है कि जहाँ तुमने मुझे छोडा है वहाँ से सीधे सी.सी.डी. के सामने आ जाओ। ५ मिनट मेहनत करता हूँ… हारने पर एक सवाल उस बी़च (Beach) के कुछेक खोमचे वालों की झोली में फ़ेंकता हूँ.. हिंदी? एक भुट्टे वाला मुझे देखता है.. टूटी-फ़ूटी हिंदी में बात करता है मुझसे फ़ोन लेकर उस ऑटो वाले को जो मेरा इंतजार कर रहा है, उसे तमिल में कुछ समझाता है। मुस्कराता है और मुझे फ़ोन दे देता है। ऑटो वाला जबतक उस जगह पहुँचे, वो मेरे लिये भुट्टा भी तैयार कर चुका है… हिंदी में पैसे भी ले चुका है।

 

२) दोपहर में वीज़ा इंटरव्यू है। मेरे टाईम के अल्गोरिदम हमेशा गडबड रहते हैं। पीडी उन्हे सही बिठाने की कोशिश करता है लेकिन रास्ते में ट्रैफ़िक ज्यादा है। फ़िर कन्सलॆट को छावनी बना रखा है। यूट्यूब पर कोई वीडियो आया था, कुछेक आहत लोगों ने यहाँ तोडफ़ोड तो क्या, फ़ोटो खिंचवाने की कोशिश की होगी!… मेन रास्ता बंद है.. काफ़ी घूमकर जाना है। मैं पीडी से जाने को कहता हूँ। ट्रैफ़िक बहुत ज्यादा है… फ़्लाईओवर का एक सिरा वहीं खत्म  होता है। सडक के दूसरी तरफ़ यूएस कन्सोलेट है… मैं वैसे ही लेट हूँ… मुझे एक ही रास्ता दिखता है सडक कैसे भी पार करनी है। जैसे-तैसे आधी दूर पहुँचता हूँ… तब लगता है आगे जाना बहुत मुश्किल है। तभी पीछे से एक आवाज आती है। एक आईसक्रीम वाला काफ़ी कुछ तमिल में और बाकी इशारे से चिल्लाते हुये मुझसे कुछ कह रहा है। मुझे समझ आता है कि सडक क्रॉस करने का कोई रास्ता थोडा और आगे से है… उसे जल्दी जल्दी थैंक्यू बोलता हूँ वो पूरे हक से नाराज होता है… मैं सॉरी बोलकर आगे भागता हूँ… सामने एक सब-वे है… सडक के इस पार से उस पार तक जाने का एक अंडरग्राउंड रास्ता… भागते हुये मन ही मन उस भलमानस को धन्यवाद देते हुये मैं सोचता हूँ कि भाषा सच में इतनी जरूरी है?

12 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

दो दिन पहले पीडी के साथ बहुत समय बिताया, बहुत बातें की और जमकर खाना खाया, अब कुछ भी याद नहीं आ रहा है सिवाय इसके कि पीडी अच्छा लड़का है।

देवांशु निगम said...

...और वो भूल गए मियां, जब तुम अपने डॉक्यूमेंट की एक इम्पोर्टेंट फाइल यहीं गुडगाँव भूल गए थे , उसकी कहानी भी तो बताओ या नोट्स भी संभाल के लिखते हो :) :) :)

बाकी पीडी से सेक्टर ४० वाले घर की मुलाक़ात तो ग़दर थी !!!! और ये तो हम पहले ही कह चुके हैं "प्रशांत प्रियदर्शी एक बहुत अच्छे इंसान हैं " | जिस पर अनूप जी का कहना था कि "अफवाहों पर ध्यान ना दें" :) :) :) :)

लिखे बढ़िया हो मालिक :) :) :)

PD said...

क्या कहें? पढने के बाद कई बातें अचानक से सामने आ गई. वे बिठाये गए जिन्दगी के कुछ बेहतरीन दिन, जिसे फिर से जीना चाहूँगा. फिलहाल उन सब बातों का सिरा पकड़ने कि कोशिश कर रहा हूँ.

shikha varshney said...

हम तो बस दोनों हथेलियों में ठुड्डी टिकाये पढ़ते रहे तुम्हारा नोट. कभी कभी एक वक़्त का खाना ही छोड़कर लिख दिया करो.
और ये पी डी ...कभी मिलेंगे तो बताएँगे कैसा है. फ़ोन पर तो खासा शरारती लगता है:).

मुकेश कुमार सिन्हा said...

badhiya laga, mast..

mukti said...

ओह, ये पोस्ट पढ़कर मैं कितनी भावुक हो गयी हूँ, पूछो मत :)
दोस्तों की खिंचाई करना हमारा दोस्तसिद्ध अधिकार है. बहुत अच्छा लग रहा है इतने दिनों बाद तुम्हारी लिखी कोई पोस्ट पढ़ना.

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

@2715807488129157863.0
Nahin maalik.. bhoole nahi.. sab kuch nahi likhna tha jaise 'guldaste ka rahasya' :).. thanks kam padega dost un documents ko sahi salamat hamare paas pahunchwane ke liye.. isliye nahin likha..

monali said...

Kis khushi me likhe ho?? :P

अजय कुमार झा said...

अबे तुम लोग इत्ता सन्नाट लिखने के लिए ही ई सब कर जाते हो बे ...इत्ता हसीन हसीन किसी के साथ कईसे हो सकता है..पूरा फ़िल्लम वाला नशा दे दिए हो ..अईसे ही लिखते रहे नू बाबू ..त आमिरवा पिक्चरे बना के छोडेगा /...उंम्म्माह ! हमारी तरफ़ से पूरी टोली को :)

दर्पण साह said...

तुम्हें और पढने का मन है दोस्त।

डॉ .अनुराग said...

किसी का आज किसी का बीता हुआ कल है

सागर said...

जब लेखक लिखना बंद कर देता है तब उसके पास दुनिया को दिखाने के लिए कुछ भी नहीं रहता, सिवा अपने चेहरे के !

--- Nirmal Verma Aap ke liye.