tag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post1165652737496844912..comments2023-10-24T13:30:59.724+05:30Comments on होकर भी नहीं होना..: क्या हम एक मूर्ख समाज है??Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)http://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-32463669644488797242010-05-07T10:59:30.748+05:302010-05-07T10:59:30.748+05:30Thanks Pankaj for the link to my blog.I feel its n...Thanks Pankaj for the link to my blog.I feel its not so much about a mob mentality as it is about prisoner's dillema. Having a 100 million people look at the same limited resources does put us in a tighter spot when trying to take a moral high ground.<br />Our minds are constantly trained from childhood that if you don't grab it someone else will.I think the way we look at things since our childhood needs to change.rajnishhttps://www.blogger.com/profile/16699086352920794966noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-12508146030596434382010-05-06T12:42:54.197+05:302010-05-06T12:42:54.197+05:30@pankaj
haan ..ye bhi sahi kahaa.. aaj bhi log j...@pankaj <br /><br />haan ..ye bhi sahi kahaa.. aaj bhi log jaati aur dharm ko aadhar m,aan kar voting karte hain .. :( bheed ke saath chalne ka jazba jaise koot koot kar bhara gaya ho .. :( yani hum personally kayar hain aur samaaj ke taur par moorkh hain .. ye achha nishkarsh nikla..स्वप्निल तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/17439788358212302769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-47016861583665572502010-05-05T21:59:06.248+05:302010-05-05T21:59:06.248+05:30@अर्कजेश जी:
"We are individually irresponsib...@अर्कजेश जी:<br />"We are individually irresponsible and confused, which makes us collectively foolish as a society."<br />आपका ये कथ्य और इस कथ्य को समझाने के लिये दिये गये उदाहरण भीतर तक झकझोरते है..<br /><br />@प्रवीण जी:<br />यही कन्फ़्यूजन मेरी थी.. तभी नैश के कान्सेप्ट को ब्राड करके देखने की कोशिश की थी लेकिन टिप्प्णियो ने काफ़ी खिडकी/दरवाजे खोले और बन्द भी किये.. :( आपके हंच पर ही यकीन करना सही होगा.. बी पाजिटिव..Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-40955841784419005272010-05-05T21:07:12.231+05:302010-05-05T21:07:12.231+05:30यह एक ऐसी पहेली है कि समझ नहीं आयी । यदि व्यक्ति अ...यह एक ऐसी पहेली है कि समझ नहीं आयी । यदि व्यक्ति अधिक योग्य हैं तो मतभेद भी अधिक होंगे । तब आप सामूहिक योग्यता कैसे स्थापित करेंगे । मूर्खों को तो हाँका जा सकता है पर योग्य तो नहीं हाँके जा सकेंगे ।<br />विजय, मुझे लगता है, अन्ततः सच और सरल की होगी । पर कैसे, यह नहीं बता सकता । मेरा हंच कहता है ।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-63605111191222117402010-05-05T17:41:35.910+05:302010-05-05T17:41:35.910+05:30समूह का भला और अपना भला एक हो ऐसा बहुत कम ही होता ...समूह का भला और अपना भला एक हो ऐसा बहुत कम ही होता है .... वैसे अधिकतर हम कायर ही होते हैं ... आवेश या देखा देखी में भीड़ से जुड़ जाते हैं .... और अपने आप को बुधीजीवी कह कर अलग भी रह्न चाहते हैं ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-30196390685567656782010-05-05T01:14:50.321+05:302010-05-05T01:14:50.321+05:30इसे मैं इस तरह कहना चाहता हूँ
We are individuall...इसे मैं इस तरह कहना चाहता हूँ <br /><br />We are individually irresponsible and confused, which makes us collectively foolish as a society.<br /><br />भीड व्यक्तियों का असली चेहरा सामने ला देती है । हिंसा के लिए लोग सामूहिक हो जाते हैं । <br />किसी को मारना हो , अपमानित करना हो या अलग - थलग करना हो तो भीड इकट्ठी हो जाती है । मैं नहीं समझता कि इस भीड समूह में कोई स्मार्ट लोग होते हैं । इन्हें स्मार्ट नहीं कहा जा सकता । अभी व्यक्ति को स्मार्ट होना शेष है । और यह तभी हो सकता है जब व्यक्ति उन्मादी सिद्धांतों से उबर सकेगा । <br />मैं यहॉं किसी आंदोलन की नहीं सिर्फ स्वत: स्फूर्त ढंग से इकट्ठा हो जाते लोगों की बात कर रहा हूँ । <br /><br />किसी की दुर्घटना हो गई हो किसी की मदद करनी हो तो भीड छंट जाती है । अच्छे कामों के लिए जो लोग एक बडा समूह नहीं बना पाते वही बुरे कामों के लिए एक जुट हो जाते हैं । <br /><br />समाज में स्मार्ट लोग अल्पसंख्यक हैं और कभी उस तरह एकजुट भी नहीं होते जैंसा कि जातीय , धार्मिक या क्षेत्रीय चेतना से सम्पन्न उन्मादी लोग हो जाया करते हैं । <br /><br />इसलिए इंडिविजुअजली स्मार्ट कहना एक भ्रम है । कुछ लोग हो सकते हैं । बस । बाकी लोगों को मिथकीय चेतना संचालित करती हैं । चेतन या अचेतन रूप से । <br /><br />इस संदर्भ में मुझे रंगे सियार की कहानी याद आती है । जो शेर का चोला धारण करके जंगल के जानवरों को बेवकूफ बना रहा था लेकिन सियारों की बोली सुनकर अपनी औकात में आ गया था ।अर्कजेशhttp://arkjesh.blogspot.com/2010/05/1.htmlnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-28206095052241203322010-05-04T23:48:14.788+05:302010-05-04T23:48:14.788+05:30यहाँ प्रॉब्लम सिर्फ़ ये नहीं है कि एक समाज के तौर ...यहाँ प्रॉब्लम सिर्फ़ ये नहीं है कि एक समाज के तौर पे हम मूर्ख हैं प्रॉब्लम ये है कि हम सिर्फ़ और सिर्फ़ बातें करते हैं... बड़े बड़े मुद्दों पर... उन्हें सुलझाने की पहल कोई नहीं करना चाहता... किसी के पास फ़ुर्सत नहीं है... थोड़ी फ़ुर्सत मिले तो चंद मुद्दों पे बहस कर लो... बातें कर लो... हाँ में हाँ मिला लो... और बस चल दो आगे... फिर अगली फ़ुर्सत में एक और मुद्दा एक और बहस...<br />सबसे सरल है पानी की तरह किसी की भी आकृति धारण करना... और सबसे बड़ी बात हमें कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता किसी भी बात से... हमारे लिये सब "चलता है"... सबसे आसान है कहना "छोड़ो यार... हमें क्या... क्यूँ दूसरों की प्रोब्लेम्स में इंटरफियर करें..."<br />हम मूर्ख ही नहीं कायर भी हैं, आलसी भी और स्वार्थी भी... व्यक्तिगत तौर पर शायद थोड़े कम और जब भीड़ का हिस्सा हो जाते हैं तो थोड़े ज़्यादा...richahttps://www.blogger.com/profile/17341853830091317236noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-15400411901643128712010-05-04T20:46:23.909+05:302010-05-04T20:46:23.909+05:30कैसे खुद सड़क पे खड़े हो के अनजानी लड़कियों को घूरते...कैसे खुद सड़क पे खड़े हो के अनजानी लड़कियों को घूरते हउवे,कमेंट्स करने के<br />बाद घर की लड़कियों को परम्परा में रहने की शिख देते हैं.जरा गौर फरमाइए.<br /><br />एक सवाल परंपरा के ठेकेदारों से...जिनको उसकी हत्...या पे कोई अफ़सोस नहीं और<br />यहाँ वे इसे सही ठहरा रहे हैं उनसे...<br /><br />औरत और इज्जत कब अलग होंगे ?<br />क्या इज्जत को ढ़ोने का सारा ठीक औरतों के<br />सर ही क्यों?<br />जरा ये बोझ मर्दों के सर भी तो हो...anjule shyamhttps://www.blogger.com/profile/01568560988024144863noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-43538398705148883672010-05-04T20:34:40.847+05:302010-05-04T20:34:40.847+05:30@स्वप्निल:
तुम्हारी बात से सहमत हूँ कि हम कायर भी ...@स्वप्निल:<br />तुम्हारी बात से सहमत हूँ कि हम कायर भी है.. लेकिन मुझे बताओ कि हममे से कितने लोग अभी भी जाति और मजहब के लिये वोटिग नही करते है? वहाँ किसका डर है? नेता हमे मूर्ख बनाते है और हम बन जाते है.. तभी हम मूर्ख समाज है.. मुझे इसे कायर समाज मानने मे भी कोई परेशानी नही है लेकिन मुझे लगता है कि हम खुद कायर है... समाज नही.. समाज तो बुली है..<br /><br />@आराधना:<br />वाह, मास मेन्टेलिटी की जो बात तुमने की उससे सहमत हू और अरिन्दम चौधरी की तरह मै भी गाँधी जी को मैनेजमेन्ट गुरु मानता हूँ.. ये उनके ही बस की बात थी जो इस कायर/ मूर्ख समाज को वो अहिंसा जैसा पाठ समझा पाये..<br /><br />@ज्ञान जी:<br />सही कहा आपने.. शायद समूह अपने साथ कई लोगो को पाकर खुद को बलवान समझने लगते है और फ़िर व्यक्तिगत चेतना को भूलकर समूह की भावनाओ के साथ बह जाते है...<br /><br />@आशा जी: <br />बहुत दिन बाद आना हुआ आपका.. केरल यात्रा के बारे मे पढा मैने... आपने नेतृत्व वाली बात सही कही और इसका एक उदाहरण स्वयं ज्ञान जी हैं जिन्होने एक सामूहिक चेतना को जगाया और गंगा जी के एक किनारे को साफ़ करने के लिये एक जनसमूह को तैयार किया और उस किनारे को साफ़ करवाये... उस चेतन समूह की एक फ़ोटो भी उनके <a href="http://gyanduttpandey.wordpress.com/" rel="nofollow">नये ब्लाग</a> पर है :)Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-49492603703116888822010-05-04T20:06:43.705+05:302010-05-04T20:06:43.705+05:30समूह को नियंत्रित करने के लिये एक सशक्त और सही विच...समूह को नियंत्रित करने के लिये एक सशक्त और सही विचार धारा केनायक की जरूरत होती है । तभी समूह एक ताकत के रूप में उभरता है । जैसे लोग गांधी जी के पीछे चल पडे थे । वही अगर कोई घटिया नेतृत्व उस समय हावी हो जाता है तो पूरा सनूह विध्वंसक नकारातमक प्रवृत्ती को अपना लेता है । हमस्वयंतोऐसे नकारात्मक कार्योंसेबचेंही साथ ही लोगों को भी सकारात्मकता की तरफ प्रेरित करें ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-43332735431724375842010-05-04T16:44:32.499+05:302010-05-04T16:44:32.499+05:30समूह बहुत वीयर्ड (weird) व्यवहार करते पाये जाते है...समूह बहुत वीयर्ड (weird) व्यवहार करते पाये जाते हैं! <br />उसमें होने पर कभी कभी अपने पर शर्म आती है।Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-92115766165962326062010-05-04T11:54:32.635+05:302010-05-04T11:54:32.635+05:30जब हम समूह में होते हैं, तो सामूहिक चेतना (मास में...जब हम समूह में होते हैं, तो सामूहिक चेतना (मास मेंटेलिटी) से संचालित होने लगते हैं और हमारी व्यक्तिगत चेतना कहीं खो सी जाती है. पर, हमेशा समूह मूर्खतापूर्ण हरकतें करता है, ऐसा नहीं है. अगर व्यक्तिगत चेतना को बनाये रखते हुये सामूहिक चेतना के साथ चलें तो ये मुश्किल हल हो जायेगी. गाँधी जी ने ये बात अच्छी तरह समझ ली थी, इसीलिये उन्होंने चौरीचौरा काण्ड के चलते आन्दोलन को रोक दिया था. वे समझ गये थे कि अभी लोगों की व्यक्तिगत चेतना उस स्तर तक नहीं पहुँची है कि वे सामूहिक आन्दोलन के लिये तैयार हो सकें. इसीलिये उन्होंने आन्दोलन को स्थगित करके चरित्र-निर्माण का कार्य आरम्भ किया.<br />इस पोस्ट की आखिरी लाइनें इसी से मिलती-जुलती हैं.aradhanahttp://draradhana.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-44149878044589986982010-05-04T11:11:13.749+05:302010-05-04T11:11:13.749+05:30पंकज
आदमी बंद कमरे में तो लीक से हट के चलने कि सोच...पंकज<br />आदमी बंद कमरे में तो लीक से हट के चलने कि सोच लेता है ..लेकिन जब बाहर भीड़ के सामने चलने कि बात आती है तो एक बार डर जाता है ..कि कहीं वह अकेला न रह जाये...हम मूर्ख समाज नहीं.. हम कायर समाज हैं ..मुझे ऐसा लगता है .. पोस्ट तुम्हारी रात में पढ़ी थी .. प्रतिक्रिया अब दे रहा हूँ .. क्यूंकि प्रतिक्रिया देते वक़्त बिजली गुल हो गयी थी .. :)स्वप्निल तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/17439788358212302769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-67175521821629284752010-05-04T08:57:14.281+05:302010-05-04T08:57:14.281+05:30"चलता है" वाली फिलोसोफी का त्याग ज़रूरी ..."चलता है" वाली फिलोसोफी का त्याग ज़रूरी है..कुशhttps://www.blogger.com/profile/04654390193678034280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-35471348101573508732010-05-04T08:00:45.077+05:302010-05-04T08:00:45.077+05:30@Priya...
एक लेख पढ़ा था 'भारतवर्षोन्ती कैसे ह...@Priya...<br />एक लेख पढ़ा था 'भारतवर्षोन्ती कैसे हो सकती है?' (भारतेंदु हरिश्चंद्र ) वहाँ पे आपके विचारों से उलट बात कही गयी है...दर्पण साहhttps://www.blogger.com/profile/14814812908956777870noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-66162891735023341552010-05-04T07:57:23.302+05:302010-05-04T07:57:23.302+05:30बहुत ही सारगर्भित,Brain storming.
मेनेजमेंट का Se...बहुत ही सारगर्भित,Brain storming.<br /><br />मेनेजमेंट का Session याद आ गया... <b>'Difference b'ween Group and team'.</b>दर्पण साहhttps://www.blogger.com/profile/14814812908956777870noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-3118943656649006102010-05-04T07:35:41.481+05:302010-05-04T07:35:41.481+05:30@Priya:
I had obviously missed the 'leader-fo...@Priya: <br />I had obviously missed the 'leader-follower' angle. Thanks for putting some light from that angle too..<br /><br />@मास्साब:<br />बज़ का आपने अच्छा उदाहरण दिया.. कहते है कि आजकल ट्विटर मूवीज को हिट/फ़्लाप बनाता है.. समय ही नही लगता किसी एक की बात को रिट्वीट करने मे.. और कितनी ही बार हम रिट्वीट करने से पहले सोचते है कि हम अपने फ़ालोवर्स को किधर भेज रहे है.. ज्ञान जी ने शायद एक बार किसी बज पर कहा था कि ये 'कलेक्टिव कैकोफ़ोनी' ज्यादा क्रियेट कर रहा है...<br /><br />@अरविन्द मिश्रा:<br />प्रोफ़ेसर नैश को जब एक ’बार’ मे बैठकर एक सफ़ल समूह को परिभाषित करते हुये सुना तो लगा कि इसकी फ़ीजिबिलिटी एनालिसिस की जाय.. आपकी एनालिसिस को भी पढता हू और उससे जरूरी प्वाइन्ट्स उठाता हू.. :)Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)https://www.blogger.com/profile/01559824889850765136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-56437176272680886102010-05-04T07:22:00.550+05:302010-05-04T07:22:00.550+05:30अच्छी विचारणीय प्रस्तुती के लिए धन्यवाद /अच्छी विचारणीय प्रस्तुती के लिए धन्यवाद /honesty project democracyhttps://www.blogger.com/profile/02935419766380607042noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-2759224822426848872010-05-04T06:39:57.180+05:302010-05-04T06:39:57.180+05:30यही संरचना है..बदलाव की उम्मीद हाल फिलहाल कम ही है...यही संरचना है..बदलाव की उम्मीद हाल फिलहाल कम ही है और पीडी तो किनारा काट ही लिए हैं. :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-48886833275320415072010-05-04T06:32:18.147+05:302010-05-04T06:32:18.147+05:30कितनी मार्के की बात कही है आपने ..यह संयोग ही है ...कितनी मार्के की बात कही है आपने ..यह संयोग ही है की मेरे मन में अनायास ही ये भाव कई दिनों से आ रहे हैं -<br />"ज्यादातर व्यक्ति ठीक होते हैं लेकिन समुदाय के साथ होकर वे गलती कर बैठते हैं -<br />एक व्यक्ति के रूप में मैंने ज्यादातर मुसल्मानों को अच्छा पाया है मगर इस्लाम के साथ हुडकर वे इस्लामिक हो जाते हैं ..."<br />आश्चर्य हुआ की व्यक्ति और समूह से जुड़ा एक चिंतन यहाँ भी चल रहा है !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-11753059307231671272010-05-04T04:34:19.972+05:302010-05-04T04:34:19.972+05:30पंकज !
जब हम समूह में होते हैं......तो उन तथाकथित ...पंकज !<br />जब हम समूह में होते हैं......तो उन तथाकथित बुद्धिजीविओं में भिन्न भिन्न विचार समूहों के लोग होते हैं !<br />बुज्ज कई मायनों में इन्ही समूहों का प्रतिनिधित्व करता दीख पड़ता है |<br /><br />...पर इस बात से समूह का महत्त्व ख़त्म नहीं हो जाता है |<br /><br />कभी एक निश्चित बज्ज के विषय में कड़ाई से विषय -नियंत्रण करने की कोशिश करिए |<br /><br />.....कभी भी 50 -100 कमेंट्स ना हो पायेंगे !<br />:-)प्रवीण त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/02126789872105792906noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-75748657652976879922010-05-04T00:33:04.731+05:302010-05-04T00:33:04.731+05:30We are individually smart but collectively foolish...We are individually smart but collectively foolish as a society......Absolutely right...I think....we all want to be leader nobody want to be follower...kyonki bheek ki alag pahchaan nahi hoti aur leader ki hoti hai....so I think everyone is fighting own-self and others too for getting recognition.प्रियाhttps://www.blogger.com/profile/04663779807108466146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5611884776630699552.post-6119828399936056102010-05-04T00:27:12.347+05:302010-05-04T00:27:12.347+05:30मुझे पूरा तो यकीन है कि मैं अकेले भी मूरख ही हूँ.मुझे पूरा तो यकीन है कि मैं अकेले भी मूरख ही हूँ.PDhttps://www.blogger.com/profile/17633631138207427889noreply@blogger.com